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अब कमेटी की अनुशंसा पर बनेंगे सीनियर एडवोकेट, दिशा-निर्देश जारी

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (हि.स.)| अब सीनियर एडवोकेट का दर्जा देना केवल जजों का अधिकार नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रभावी होंगे। जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आर एफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने आज इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने के लिए एक स्थायी कमेटी होगी जो वकीलों का इंटरव्यू लेगी और फुल कोर्ट को अपनी अनुशंसा भेजेगी।

ये कमेटी मानदंडों के आधार पर अपनी अनुशंसा भेजेगी। इस कमेटी में चीफ जस्टिस, दो वरिष्ठतम जजों, अटार्नी जनरल होंगे। कमेटी की अनुशंसा पर फुल कोर्ट फैसला करेगी। कमेटी वकीलों की क्षमता और उनकी पर्सनैलिटी का टेस्ट करेगी। सुप्रीम कोर्ट के इस दिशानिर्देश के मुताबिक दुर्व्यवहार की शिकायत के मामले में फुल कोर्ट सीनियर एडवोकेट का दर्जा छीन भी सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कोर्ट के बाहर वकीलों ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह को बधाईयां दीं। इंदिरा जय सिंह ने ही सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने वाले एडवोकेट एक्ट की धारा 16 को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को इस मामले पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच को रेफर किया था। याचिकाकर्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि जब वकीलों को सीनियर कानून दर्जा दिया जाता है तो उसमें भेदभाव किया जाता है। याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की धारा 14 और 15 काम उल्लंघन कर रही है। इस मामले पर करीब एक साल नौ महीने तक सुनवाई चली।

इससे पहले पिछले साल 21 अक्टूबर को पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच इस मामले को बंद कर रही थी। जब इंदिरा जय सिंह ने सीनियर वकीलों को दर्जा देते समय अंक देने संबंधी एक प्रस्ताव दिया तो बेंच ने उसे सिरे से नकार दिया।

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