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आत्मचिंतन से मिटेंगे व्यवस्था के दोष : प्रधानमंत्री

नई दिल्ली, 21 सितम्बर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को यहां समय के साथ सहकारिता के क्षेत्र में आने वाले दोषों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि यह एक भावना का विषय है केवल एक व्यवस्था नहीं है| इसलिए हमें सहकार को लेकर आत्मचिंतन करते रहना चाहिए। 

प्रधानमंत्री सहकार भारती के संस्थापक लक्ष्मणराव माधवराव इनामदार की जन्मशताब्दी पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि समय के साथ व्यवस्थाओं में दोष आता है| ऐसे में ‘आत्म चिंतन करते रहना चाहिये।’

उन्होंने कहा कि हर व्यवस्था को चलाने के लिए नियमों की आवश्यकता होती है। हम केवल इस व्यवस्था के बीच में बैठने को ही सहकारिता मानते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ सहकारिता व्यवस्था नहीं भाव है| इसलिये इसके लिए संस्कार की आवश्यकता है। अगर हम भाव पर जोर देंगे तो व्यवस्था के दोष समाप्त हो जायेंगे।’’

सहकार को नये क्षेत्रों तक ले जाने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें वहां जाना है ‘जहां सहकार की हवा तक नहीं पहुंची।’ उन्होंने कहा कि सहकार विदेश से आया विचार नहीं है| इसलिए यह भारत के लिए उत्तम है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यूरिया में नीम कोटिंग के लिए नीम, शहद और समुद्री सिवार के क्षेत्र में सहकारिता लाई जा सकती है। 

लक्ष्मण राव का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अखबारों की सुर्खियों और टीवी पर नहीं चमकते लेकिन फिर भी उनका समाज में एक बड़ा योगदान होता है। इनामदार ऐसे ही लोगों में से एक थे। 

उन्होंने कहा, ‘‘बहुत से लोगों ने उनका (लक्ष्मण राव) नाम नहीं सुना था| यही उनकी सबसे बड़ी कमाई थी। सहकारिता का पहला मंत्र यही है खुद को पीछे रखना और सबको आगे ले जाना। मेरे लिए वह प्रेरणास्रोत थे।’’

इस अवसर पर कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने घोषणा कि अब से लक्ष्मणराव इनामदार का जन्मदिन हर वर्ष मनाया जायेगा। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों में सहकारिता को ऋण और सब्सिडी के तौर पर 29 हजार करोड़ रुपये दिये हैं। इसके साथ उन्होंने गुड़गांव में उनके नाम पर एकेडमी स्थापित किए जाने की भी घोषणा की। 

इस अवसर पर राज्य, जिला और प्राथमिक स्तर पर सहकारिता पुरस्कार प्रदान किए गये और सहकारिता के विषय पर दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। 

सहकार भारती की अध्यक्ष जितेन्द्र मेहता ने सहकारिता को एक बिजनेस मॉडल बताया। उन्होंने कहा कि इनामदार अमीरी और गरीबी को लेकर सदैव चिंतित रहते थे और उनका मानना था कि केवल सहकार से ही इसे समाप्त किया जा सकता है। 

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