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गायिका शारदा सिन्हा की जिंदगी के इन अनमोल लम्हों के बारे में आप नहीं जानते होंगे…

पटना, सनाउल हक़ चंचल-

लोकप्रिय गायिका शारदा सिन्हा ने लोकगीतों के बारे में जो कहा है, उसे जानकर यह पता चलता है कि इतनी आसान नहीं थी उनकी उपलब्धियां. शारदा सिन्हा ने अपने दिल की बात मीडिया के सामने रखी हैं. उन्होंने साफ शब्दों में बताया है कि संस्कारी गीतों को सबके सामने रखना मुश्किल चुनौती थी.

दरअसल भोजपुरी, मैथिली, मगही, बज्जिका सहित आधा दर्जन से अधिक बोलियों और भाषाओं के लोकगीतों को लोकप्रिय बनाने वाली गायिका शारदा सिन्हा का कहना है कि लोक गीतों को गांव देहात की चारदीवारी से निकालना उनके लिए बहुत कठिन था.

बिहार के दरभंगा जिले की मूल निवासी शारदा सिन्हा ने कहा है कि संस्कार गीतों को आंगन की चारदीवारी से बाहर निकालकर आम जन तक लोकप्रिय बनाना ही उनका मकसद रहा है. उन्होंने कहा कि जब आज छठ पूजा जैसे लोकपर्व पर उनके गाये लोकगीतों को लोग गुनगुनाते हैं, तो उनके मन को ऐसा सुकून मिलता है कि जैसे बरसों की तपस्या सफल हो गयी हो.

दरअसल शारदा सिन्हा आकाशवाणी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भोजपुरी लोकगीतों की प्रस्तुति देने पधारी थीं. 65 वर्षीय सिन्हा वर्तमान में समस्तीपुर महाविद्यालय की संगीत विभागाध्यक्ष हैं. वैसे तो उन्होंने बचपन में शास्त्रीय नृत्य की भी विधिवत शिक्षा ली. लेकिन उनके शिक्षाधिकारी पिता ने जब यह महसूस किया कि नृत्य के दौरान गीतों के गाने में वे कुछ ज्यादा सहज नजर आती हैं, तो उन्हें गायन की तरफ मोड़ दिया. इस प्रयोग के परिणाम भी बेहद सकारात्मक निकले और वे कुछ ही वर्षों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के लोकगीतों का पर्याय बनकर उभरीं है.

लोकगीतों की वर्तमान स्थिति पर उन्होंने कहा, लोकगीतों के लिए यह समय संक्रमण काल के समान है. आज लोग सस्ते और सहज उपलब्ध संगीत के चक्कर में फूहड़ गायन को पसंद करने लगे हैं. जो हमारे समाज के लिए बेहद घातक है.

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