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जाने आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट ने दी 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति

नई दिल्ली, 03 जुलाई : सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की एक महिला की 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति दे दी है। कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल के सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला के पेट में पल रहे भ्रूण को दिल की गंभीर बीमारी है। मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि जन्म के बाद बच्चे को हर स्तर पर आपरेशन कराना पड़ेगा। आपरेशन से बच्चे की जान जा सकती है।

पिछले 29 जून को कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल के सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को महिला और उसके भ्रूण की मेडिकल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। 

पिछले 23 जून को सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को निर्देश दिया था कि वे महिला और उसके भ्रूण की जांच कर रिपोर्ट सौंपें। पिछले 21 जून को महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया था। महिला ने याचिका दायर कर मांग की है कि उसके पेट में पल रहे 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उनके भ्रूण में विकृतियां हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि उसके भ्रूण की कोलकाता के सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों के पैनल से जांच कराई जाए।

आपको बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिग्नेंसी एक्ट के मुताबिक बीस हफ्ते से ज्यादा का भ्रूण हटाया नहीं जा सकता है । 

पिछले 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के 27 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अर्जी को नामंजूर कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद कहा कि डॉक्टरों की राय के मुताबिक याचिकाकर्ता का स्वास्थ्य सामान्य है और कोई खतरा नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी को एक महिला को उसके 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी थी। उस भ्रूण में डाउन सिंड्रोम की समस्या थी। महिला के भ्रूण के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय थी कि भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को बचने की संभावना है। मेडिकल बोर्ड की इसी राय पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महिला को भ्रूण हटाने से मना कर दिया।

उसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी को मुंबई की एक 22 वर्षीया महिला के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत दी थी। मुंबई के केईएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला केगर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद कम है क्योंकि उसकी किडनियां नहीं थी। अस्पताल का रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने का आदेश दिया था।

16 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की एक 22 वर्षीय महिला को उसके गर्भ में पल रहे असामान्य भ्रूण केगर्भपात की इजाजत दी थी। उसका भ्रूण भी 24 हफ्ते का था। उक्त महिला की मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण की खोपड़ी विकसित नहीं हुई है और इसके जीवित बचने की उम्मीद बहुत कम है।

पिछले साल 25 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप पीड़िता को 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाज दी थी। उस महिला की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि गर्भ में कई जन्‍मजात विसंगतियों की वजह से पीड़िता की जान खतरे में है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर गर्भ को गिराया नहीं गया तो महिला की शारीरिक और मानसिक रुप से नुकसान उठाना पड़ सकता है। बोर्ड ने सलाह दी थी कि पीड़िता का गर्भ 24 सप्‍ताह का होने के बावजूद उसका सुरक्षित तरीके से गर्भपात किया जा सकता है।

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