खबरेहरियाणा

डा. कर्मचंद के अनुसार पीला रतुआ रोग से सुरक्षित है क्षेत्र की गेहूँ की फसल.

Haryana. शाहबाद, 08 फरवरी= गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कुरूक्षेत्र गेहूँ में लगने वाली घातक बीमारी पीला रतुआ को लेकर सतर्क है। बुधवार को उप-निदेशक डा. कर्मचन्द, सहायक पौधा संरक्षण अधिकारी डा. बलबीर सिहं भान व कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जेएन भाटिया की संयुक्त टीम द्वारा शाहाबाद व बाबैन खण्ड के दर्जनों गांवों का दौरा किया गया। इस दौरे का मुख्य उदेश्य गेहूँ की फसल में लगने वाले रोग व कीडों का पता लगाना तथा किसानों को सही व स्टीक जानकारी समय पर उपलब्ध कराना था ताकि किसान अपनी खून पसीने से सींची हुई फसल से ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सके।

उन्होंने कहा कि रबी मौसम में गेहूं एक मुख्य फसल है, जिसके अन्तर्गत कुरूक्षेत्र जिले में 1,14,500 हैक्टेयर में इसकी बिजाई की गई है। जिले के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत कृषि विकास अधिकारियों की रिपोर्ट व खुद टीम द्वारा गेहूं के खेतों का सर्वेक्षण करने पर पाया गया कि जिले में अभी तक कहीं भी गेहू की फसल में पीला रतुआ रोग के लक्षण नहीं मिले हैं, जो कि किसानों के लिए एक सुखद समाचार है।

हांलाकि पछेती गेहूं व गेहूं की फसल सफेदों व पापुलर में बोई गई है व जहां पर खाद का अधिक प्रयोग किया गया है, वहां पर एफिड (चेपा) कीडें का प्रकोप आर्थिक स्तर से ज्यादा पाया गया है। इसकी रोकथाम हेतू किसान भाई मैलाथियान 50 ईसी 400 मिलि दवा का प्रति एकड़ प्रयोग कर सकते हैं। डा. कर्मचन्द ने किसानों को बताया कि पिछले कई दिनों से मौसम में नमी, हल्की बुंदाबांदी व तापमान में उतार-चढ़ाव से गेहूँ में पीला रतुआ रोग के आने की सम्भावना ब-सजय़ गई है, क्योंकि यह रोग 15 से 20 डिग्री सैल्सीयस तापमान पर अधिक फैलता है।

उन्होंने किसानों को सलाह दी की वे लगातार अपने खेतों का निरीक्षण करते रहें ताकि समय पर इस रोग का उपचार किया जा सके। डा. भान ने बताया कि गेहूँ की फसल में पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ रोग के लक्षण नहीं है। पीला पत्ता होने का कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। पीला रतुआ बीमारी में गेहूँ के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है जिसे हाथ से छुने पर हाथ पीला हो जाता है।

यदि ऐसे लक्षण दिखाई दे तो किसान भाई तुरन्त 200 एमएल प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी दवाई का 200 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें। रोग के प्रकोप व फैलाव को दखते हुए दुसरा छिडकाव 15-20 दिन के अन्तराल पर करे। उप कृषि निदेशक कुरूक्षेत्र ने सर्वेक्षण करने पर आशा जताई कि यदि फरवरी व मार्च के पहले पखवाडे तक तापमान नहीं बढ़ा तो अबकी बार जिले में भरपूर फसल का उत्पादन होने की सम्भावना है। किसान भाई अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विकास अधिकारी, खण्ड़ कृषि अधिकारी, उप मण्ड़ल कृषि अधिकारी, सहायक पौधा संरक्षण अधिकारी या कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क कर सकते हैं।

Related Articles

Back to top button
Close