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दुर्गापूजा के रंग : बिलेश्वर देवालय में महानवमी पर दी जाएगी 45 भैंसों की बलि

नलबाड़ी, 27 सितम्बर (हि.स.)। निचले असम के नलबाड़ी जिले में स्थित ऐतिहासिक बिलेश्वर देवालय में परंपरागत तरीके से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ षष्ठी के दिन पूरे विधि-विधान के साथ हुआ। पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण, शंख, घंटा, ढोल ताल-ढाक और मांगलिक उरुली के बीच शारदीय दुर्गोत्सव की पूजा आरंभ हुई। 
प्रचलित मान्यता के अनुसार षष्ठी के दिन देवी दुर्गा को पूरे परिवार के साथ वेदी पर आसीन कराया जाता है। देवी दुर्गा के साथ ही भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमा को भी स्थापित किया जाता है। षष्ठी से लेकर दशमी के दिन विसर्जन तक भक्ति भाव से दुर्गा की आराधना की जाती है। मां दुर्गा को षष्ठी के दिन वेदी पर स्थापित किए जाने के साथ ही पूरे असम में भक्ति की धारा बह रही है। 
इस कड़ी में नलबाड़ी जिले में स्थित ऐतिहासिक बिलेश्वर देवालय में आयोजित दुर्गा पूजा का अपने आप में ऐतिहासिक महत्व है। देवालय में गत 21 सितंबर से परंपरागत रुप से दुर्गा पूजा का शुभारंभ हुआ है।

ऐतिहासिक बिलेश्वर देवालय में पूर्व की तरह इस बार भी अन्य पशुओं के साथ ही लगभग 45 भैंसों की बलि देने की तैयारी की गई है। महानवमी के दिन राज्य के विभिन्न हिस्सों के साथ ही अन्य राज्यों के भक्तों द्वारा चढ़ाए गए भैंसों की बलि दिए जाने की जानकारी मिली है।

देवालय के एक सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष भैंसों की बलि की संख्या में वृद्धि होने की पूरी संभावना है। शाक्त धर्मिक परंपरा के अनुसार इस देवालय में होने वाली बलि को लेकर समय-समय पर तर्क और वितर्क होते रहे हैं। बावजूद इसके देवालय प्रशासन पूर्व की परंपरा की दुहाई देते हुए बलि प्रथा को जारी रखे हुए हैं। तर्क और वितर्क के बावजूद इस बार भी पूर्व की तरह बिलेश्वर देवालय में भैंसों की बलि देने की तैयारी की गई है।

उल्लेखनीय है कि बिलेश्वर देवालय में आयोजित होने वाले शारदीय दुर्गा उत्सव पूजा के दौरान किसी भी प्रकार की प्रतिमा को स्थापित नहीं किया जाता है। यहां पर राम कोलगाछ (केले की किस्म) के तने से मां की प्रतिमा का रूप दिया जाता है। साथ ही उसे नया वस्त्र पहना कर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इस बार भी बिलेश्वर देवालय में राम कोलगाछ को देवी के रूप में प्रतिष्ठापित कर एक शोभायात्रा षष्ठी के दिन देवालय से निकाली गई। जिसमें भारी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। 

उल्लेखनीय है कि परंपरागत रुप से पूजा-अर्चना के दौरान षष्ठी और अष्टमी की मध्य रात्रि तक बकरी, कबूतर आदि जीवों की बलि दी जा रही है। ज्ञात हो कि इस देवालय में पूजा करने और पूजा देखने के लिए राज्य ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इसको देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए हैं। 

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