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भीमा कोरेगांव केसः पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को किया गिरफ्तार

फरीदाबाद. भीमा कोरेगांव मामले में आरोपित सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इससे पहले शनिवार सुबह ही उनकी गिरफ़्तारी के लिए पुणे पुलिस फ़रीदाबाद पहुंच चुकी थी। सुधा के दोस्त और साथी उनके घर के बाहर जमा थे। जैसे ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन का फैसला आया, तभी पुणे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दौरान उनके घर के बाहर समर्थक भी आए थे, उनका कहना है कि सुधा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उनका इससे यानी भीमा कोरेगांव से कोई लेना-देना नहीं है। 
गौरतलब है कि पुणे की एक विशेष अदालत ने माओवादी कार्यकर्ताओं सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वर्नन गोंजाल्विस की जमानत अर्जी ठुकरा दी थी। इसके तुरंत बाद अरुण फरेरा एवं वर्नन गोंजाल्विस को गिरफ्तार कर लिया गया थी। कहा भी जा रहा था कि सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी शनिवार को हो सकती हैं।
पुणे के एलगार परिषद मामले में तीनों नजरबंद थे। पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को सुधा, फरेरा और गोंजाल्विस के साथ हैदराबाद से वरवर राव एवं दिल्ली से गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन्हें उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया था।
सुधा, अरुण और वर्नन की नजरबंदी 26 अक्टूबर को खत्म हो रही है, इसलिए इन्होंने जमानत याचिका दायर की थी। कोर्ट द्वारा तीनों की जमानत याचिका खारिज करने के बाद बचाव पक्ष के वकीलों ने फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा। लेकिन जज के समय देने से इन्कार के बाद तीन में से दो माओवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया। 
पुणे की जिला एवं सत्र अदालत में विशेष जज केडी वदने ने कहा कि सुधा भारद्वाज नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। फरेरा वकील व काटरूनिस्ट हैं जबकि वर्नन गोंजाल्विस मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। तीनों मानवाधिकारों के लिए काम भी करते हैं। लेकिन समाजसेवा एवं मानवाधिकारों के लिए संघर्ष की आड़ में तीनों प्रतिबंधित संगठन (भाकपा-माओवादी) के लिए भी काम करते रहे हैं। उनकी ये गतिविधियां भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं।
जांच अधिकारी के इकट्ठा किए गए सबूतों के आधार पर प्रथमदृष्टया यह साबित भी होता है। जज के अनुसार इनकी गतिविधियां, न सिर्फ कानून-व्यवस्था को बिगाड़ सकती हैं, बल्कि देश की एकता-संप्रभुता एवं इसकी लोकतांत्रिक नीतियों के लिए भी खतरा बन सकती हैं।

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