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राहुल के बाद मोदी के भी हिंदुत्व पर सवाल

हिंदू केवल हिंदू होता है। वह या तो हिंदू होता है या नहीं होता। उसमें असली और नकली का सवाल ही पैदा नहीं होता। जो भी हिंदू है, वह जहां कहीं भी रहता है, हिंदू ही होता है। हिंदू गुण-कर्म-स्वभाव के आधार पर अच्छा या बुरा कहा जा सकता है लेकिन उसके हिंदू होने पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। कांग्रेस राहुल गांधी को तो सच्चा हिंदू मानती है लेकिन नरेंद्र मोदी को वह सच्चा हिंदू नहीं मानती। राहुल ने मंदिरों में दर्शन का काम गुजरात चुनाव के दौरान शुरू किया है और मोदी बचपन से ही मंदिरों में शिवाराधना करते रहे हैं, उन दोनों में कौन हिंदुत्व के ज्यादा नजदीक है, यह देश की जनता को तय करना है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सोमनाथ दर्शन ने हिंदुत्व की राजनीति को गर्म कर दिया है। सोमनाथ मंदिर में दर्शन से पूर्व राहुल गांधी और अहमद पटेल ने मंदिर के ऐसे रजिस्टर पर अपना नाम दर्ज कराया जो गैर हिंदुओं के लिए रखा गया है। हिंदुओं को मंदिर में जाने के लिए किसी भी आगंतुक रजिस्टर पर अपना नाम-पता दर्ज नहीं कराना होता। राहुल गांधी ने गैर हिंदू दर्शनार्थियों के लिए रखे रजिस्टर पर दस्तखत स्वेच्छया किए या इसके पीछे कोई रणनीति थी, यह तो जांच का विषय है लेकिन इस प्रक्रिया के चलते गुजरात की राजनीति में राहुल गांधी अचानक बैकफुट पर जरूर आ गए। भाजपा ने यह प्रचारित करने में देर नहीं लगाई कि राहुल गांधी हिंदू नहीं है। उसने राज्य की जनता को सोशल मीडिया पर यह बताने-जताने की कोशिश की कि राहुल गांधी ने खुद इस बात को स्वीकार कर लिया है कि वे हिंदू नहीं हैं। गैर हिंदू हैं। भाजपा सांसद स्वामी सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज ने अपने को गैर हिंदू प्रमाणित करने के लिए राहुल गांधी की सराहना की। सच तो यह है कि राहुल गांधी की इस गलती ने हिंदुओं के बीच पैठ जमाने की उनकी कोशिश पर पानी फेर दिया है।

हिंदुओं की नजदीकी हासिल करने के लिहाज से राहुल गांधी इन दिनों गुजरात के प्रमुख मंदिरों में जाकर दर्शन-पूजन कर रहे हैं। अयोध्या में उन्होंने हनुमानगढ़ी जाकर हनुमान जी के दर्शन किए थे। उनके रणनीतिकारों का मानना है कि भारतीय समाज में उनकी सर्वस्वीकृति नहीं है। इसके लिए उन्हें हिंदू मंदिरों में भी उसी तरह जाना चाहिए जिस तरह नरेंद्र मोदी जाते हैं। राहुल गांधी चुनाव में खुद को नरेंद्र मोदी का प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। वे अपने किसी भी चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी की आलोचना करना नहीं भूलते। उनके खिलाफ जमकर कीचड़ उछालते हैं। यह अलग बात है कि नरेंद्र मोदी इस कीचड़ में भी कमल खिलने का सकारात्मक भाव प्रकट कर जनता का दिल जीत लेते हैं। 

नीति कहती है कि आलोचना से आलोचक का व्यक्तित्व गौण हो जाता है। इससे उसके निषेधात्मक चिंतन का बोध होता है लेकिन प्रशंसा करने वाला अपनी नजरों में उठ जाता है। वह प्रशंसित व्यक्ति का प्रिय तो बनता ही है, उसका खुद का आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है। इस भारत देश में पहले निंदक को अपने पास रखने की परंपरा थी लेकिन अब कोई निंदा सुनना ही नहीं चाहता। आलोचना विवेक के साथ की जाए तो ही अच्छी लगती है। आलोचना के लिए आलोचना करना अथवा विरोध के लिए विरोध करना उचित नहीं है। गलत का विरोध होना चाहिए। इसके पीछे एकमेव ध्येय यही होना चाहिए कि सुधार हो। गलती ठीक हो लेकिन जब हम गलती सुधारने की बजाय कोई गलती करने वालों को नीचा दिखाने में जुट जाता है तो सुधार की बात गौण हो जाती है। गलती करने वाला गलती स्वीकारने की बजाय दोदने लगता है। वह गलती को छिपाने और महिमामंडित करने लगता है। 

राहुल गांधी हिंदू हैं या नहीं, यह उतना अहम नहीं है जितना यह कि वे आदमी हैं लेकिन राजनीति हमेशा अपनी सुविधा का संतुलन देखती है। उसके केंद्र में हमेशा वोट होता है और वोट को अपने पक्ष में करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। राहुल गांधी के गैर हिंदू होने वाले बयान के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही कांग्रेस के कान खड़े हो गए। उसके रणनीतिकारों ने अपने-अपने स्तर पर मोर्चा संभाल लिया। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राहुल गांधी हिंदू ही हैं। वे यज्ञोपवीतधारी हिंदू हैं। अच्छी बात है। हिंदू होना तो गौरव की बात है लेकिन रणदीप सुरजेवाला को राहुल गांधी के परनाना जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा पढ़नी चाहिए जिसमें उन्होंने लिखा है कि वे मुसलमान हो सकते हैं, ईसाई हो सकते हैं लेकिन वे हिंदू बाईचांस हैं।

मतलब उन्हें हिंदू होने पर गर्व नहीं था। हिंदू होना उनके लिए हिकारत का विषय था। इतिहास साक्षी है कि नेहरू जी नहीं चाहते थे कि सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हो, वह तो सरदार वल्लभभाई पटेल की जिद थी जो सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भव्य तरीके से हुआ। भारत में ‘बीति ताहि बिसारने’ की परंपरा रही है। सुरजेवाला जी को यह भी स्मरण होना चाहिए कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी जिसे कभी अटल जी ने दुर्गा कहा था, उन्होंने पारसी धर्म के फिरोज गांधी से शादी की थी। भारतीय संस्कृति में स्त्री की कोई जाति नहीं होती। वह जिस जाति-धर्म में ब्याही जाती है, उसी जाति-धर्म की हो जाती है। उसी तरह जैसे पानी जिस पात्र में भरा जाता है, उसकी पहचान पात्र के अनुरूप ही होती है। इस लिहाज से देखें तो राजीव गांधी के ही हिंदू होने पर सवाल है। सपा नेता शिवपाल यादव ने भी कहा है कि राहुल गांधी के अहिंदू कहने का विचार अप्रासंगिक हैं। यह सवाल तो तभी उठना चाहिए था जब राजीव गांधी जिंदा थे। 

गौरतलब है कि राजीव गांधी ने ईसाई महिला सोनिया गांधी से शादी की। राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया गांधी के विदेशी होने के नाते देश में कितनी चर्चा हुई,यह किसी से छिपा नहीं है। कई चुनाव देसी बेटी-विदेशी बहू के नाम पर लड़े गए। अगर देश में खासकर, कांग्रेस में ही सोनिया गांधी के विदेशी महिला होने का विरोध न हो रहा होता तो पीवी नरसिंहराव और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने का कभी सवाल ही नहीं उठता। अभी भी देश में सोनिया और राहुल की दोहरी नागरिकता पर सवाल उठते रहते हैं। इटली की नागरिकता में दोनों के धर्म ईसाई दर्शाए गए हैं। यह बात हर बौद्धिक व्यक्ति की जुबान पर है। पहले तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी को इटली की नागरिकता छोड़नी चाहिए अन्यथा उनके ईसाई या हिंदू होने का भ्रम हमेशा बना रहेगा। अगर सोमनाथ मंदिर के कार्यकर्ता उन्हें हिंदू मानते तो रजिस्टर में उनके नाम-पता दर्ज ही नहीं करते। दीपेंद्र हुड्डा ने तो रजिस्टर की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर में राहुल गांधी जी लिखा दिख रहा है। अगर राहुल अपना नाम लिखते, तो खुद अपने नाम के बाद जी क्यों लगाते। उनकी नजर में भाजपा असल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने की गरज से इस मामले को तूल दे रही है। 

दीपेंद्र को जी शब्द पर आपत्ति है। गुजरात में जी लिखना सामान्य शिष्टाचार है। मंदिर का कोई कर्मचारी ने अगर राहुल गांधी के साथ जी लिख दिया तो इसमें गलत क्या है? अगर रजिस्टर गलत है तो उसमें अहमद पटेल के हस्ताक्षर कैसे हैं तो इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि रजिस्टर में राहुल गांधी का नाम लिखने का काम अहमद पटेल ने किया हो। कांग्रेस जिस आक्रामक अंदाज में सोमनाथ मंदिर में गैर-हिंदू के रूप में राहुल गांधी का नाम दर्ज किए जाने का प्रतिवाद कर रही है, उससे तो यही लगता है कि चुनाव में हिंदुओं से अंतरंगता स्थापित करने की उसकी रणनीति विफल हो गई है। 

राहुल पर उठ रहे सवालों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोल दिया है। उन्होंने मोदी के हिंदू होने पर सवाल उठाया है। यहां तक कहा है कि नरेंद्र मोदी सच्चे हिंदू नहीं हैं। इसके लिए उन्होंने सवाल दागा है कि प्रधानमंत्री कितनी बार मंदिर जाते हैं। उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ दिया है और हिंदुत्व से जुड़ गए हैं जिसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह सच्चे हिंदू नहीं है। जो हर भारतीय को अपना भाई, बहन और मां समझता हो, वही सच्चा हिंदू है। कपिल सिब्बल को कैसे लगता है कि नरेंद्र मोदी हर भारतीय को अपना भाई, बहन और मां नहीं समझते? मंदिरों में ज्यादा दर्शन या कम दर्शन ही क्या हिंदू होने का प्रमाण है। जो मंदिरों में नहीं जा पाते,क्या वे हिंदू नहीं हैं? 

गौरतलब है कि गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अब तक करीब 18 मंदिरों में राहुल गांधी दर्शन कर चुके हैं। अगर वाकई राहुल गांधी हिंदू हैं तो अयोध्या जाकर भी उन्होंने रामलला के दर्शन क्यों नहीं किए। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर कांग्रेस का क्या स्टैंड है, इसे बिना एक पल गंवाए राहुल गांधी को स्पष्ट करना चाहिए। राहुल हिंदू हैं या नहीं, यह उन्हें स्थापित करना है। इसके लिए उन्हें कदाचित अपनी विदेशी नागरिकता छोड़नी है लेकिन मोदी इसी देश में पैदा हुए हैं। वे तन और मन दोनों से हिंदू हैं। सबका कल्याण ही उनका अभीष्ठ है। हिंदू और अहिंदू पर बेवजह बहस करने से बेहतर तो यह होगा कि देश के विकास और उसकी योजनाओं पर बहस हो। जनता को गुमराह करने से बेहतर तो यह होगा कि उसे अपने लिए अच्छे और बुरे का चयन करने दिया जाए, यही लोकहित का सफल मानदंड भी है। 

: सियाराम पांडेय ‘शांत’ 

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