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रोहिंग्या मुसलमानों की याचिका पर 5 दिसंबर को सुनवाई

नई दिल्ली, 21 नवम्बर (हि.स.)। रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई टाल दी है। कोर्ट अब अगली सुनवाई 5 दिसंबर को करेगी । पिछले 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मानव अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की जरुरत है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि हमारा संविधान मानवतावादी और सुरक्षा करनेवाला है। हम बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की तकलीफों से बेखबर नहीं हो सकते हैं। सरकार को भी संवेदनशील होने की जरुरत है।

सुनवाई के दौरान जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सरकार को रोहिंग्या को वापस नहीं भेजना चाहिए तो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नहीं। अगर आप ऐसा करेंगे तो ये इंटरनेशनल हेडलाइन बन जाएगी। पिछले 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मसले पर मानवीय रवैया अपनाने को कहा था । सुनवाई के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों की तरफ से वरिष्ठ वकील फाली एस नरीमन ने अपने बारे में कहा था कि वे बर्मा के वास्तविक शरणार्थी हैं। उन्होंने कहा था कि वे ब्रिटिश बर्मा से भागकर ब्रिटिश इंडिया में शरणार्थी बने। उन्होंने कहा था कि ये स्पष्ट नहीं है कि एनडीए की सरकार ने शरणार्थियों को शरण देने की नीति रोहिंग्या मुसलमानों के लिए क्यों बदल दी। रोहिंग्या याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि सरकार शरणार्थियों पर बनाई अपनी गाइड लाइन से मुकर नहीं सकती है। केंद्र सरकार ने कहा था कि पहले यह तय हो कि ऐसे मामलों में कोर्ट विचार कर सकता है या नहीं।

याचिका दो शरणार्थियों ने दायर किया है। याचिका में न्यूज़ एजेंसी रायटर के 14 अगस्त के एक खबर को बनाया गया है जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को रोहिंग्या मुसलमानों समेत अवैध आप्रवासियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने का निर्देश दिया है। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ बौद्ध बहुल म्यामांर में कई मुकदमे लंबित हैं।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार का इन शरणार्थियों को वापस भेजने का फैसला संविधान की धारा 14, 21 और51(सी) का उल्लंघन है। उनको वापस भेजना अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों का उल्लंघन है। अंतर्राष्ट्रीय कानून इन शरणार्थियों की सुरक्षा की गारंटी देता है। याचिका में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की 2016 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि म्यामांर के अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों के जीने की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है।

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