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स्मार्ट : व्यक्ति और शहर

प्राचीन भारत के ऋषियों ने पिंड अर्थात शरीर और ब्रह्मांड के सम्बन्धों का गहन विश्लेषण किया। निष्कर्ष के रूप में यथा पिंड तथा ब्रह्मांड का विचार दिया। जो शरीर में है, उसी का विस्तार ब्रह्मण्ड में है। इस तथ्य को व्यापकता में समझ लें तो अनेक सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। व्यक्ति के सत, रज और तम गुण का विस्तार समाज में दिखाई देता है। 

व्यक्ति अपने को श्रेष्ठ बनाने के लिए जो प्रयास करता है, वैसे ही प्रयास देश व समाज के लिए अपरिहार्य होते हैं। तभी आदर्श समाज की स्थापना होती है। प्रत्येक युग में लोग इस दिशा में कार्य करते रहे हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक कि विकास यात्रा इसकी दास्तान है। सभ्यताएं बनीं। समय के साथ कई सभ्यताएं अपना अस्तित्व बचाने के विफल रहीं। कुछ आज भी कायम हैं। इसमें व्यक्ति और समष्टि का विचार महत्वपूर्ण था। जिसने बेहतर समाज को सतत संचालित किया।

आधुनिक स्मार्ट शब्द भी व्यक्ति के साथ-साथ समष्टि से भी संबंधित है। जिस प्रकार व्यक्ति अक्सर आकर्षक ढंग से रहने वाले या दिखने वाले को स्मार्ट कहते हैं। वैसे ही शहर भी स्मार्ट होते हैं। मतलब सजे, संवरे, स्वच्छ शहर को स्मार्ट माना जा सकता है। लेकिन इस स्मार्ट शहर की अवधारणा को व्यापक रूप में देखना होगा। अक्सर देखा जाता है कि आर्थिक रूप से विकसित शहर भी एक बरसात ठीक से नहीं झेल पाते है। जल भराव यहां के जन जीवन को तहस नहस कर देता है। ऊपर से ये शहर स्मार्ट दिखते हैं। ऐसे में स्मार्ट होने की परिभाषा भी बनानी होगी। यह कार्य केवल सरकार नहीं कर सकती। 

प्रत्येक व्यक्ति को इसमें अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा। क्या यह सही नहीं कि लोगों ने अपने घरों के सामने नालियों के ऊपर तक निर्माण करा लिए। सड़क को नहर का रूप दे दिया। जल भराव का यह भी प्रमुख कारण है। इसी प्रकार स्वच्छता में भी समाज की भागीदारी अनिवार्य है। इसके अभाव में किसी शहर को स्मार्ट नहीं बनाया जा सकता।

स्मार्ट शहर को आधुनिक अवधारणा माना जाता है। लेकिन हमारे महाभारत काल, सिंधुघाटी की सभ्यता, षोडश महाजनपद स्मार्ट नगर के ही उदाहरण हैं। काशी, कांची, अवंतिका, पूरी द्वारावती आदि उच्च कोटि के स्मार्ट सिटी थे। यहां विचार केंद्र, शिक्षण संस्थान, राजमार्ग, भवन आदि की सुनियोजित व्यवस्था थी। आधुनिक युग में सबसे पहले ब्रिटेन में स्मार्ट शहर का सूत्रपात हुआ। सन सत्रह सौ पचास के बाद लंदन, मैनचेस्टर आदि स्मार्ट शहर के रूप में विकसित हुए। इसके सौ वर्ष बाद फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका आदि में स्मार्ट शहर का निर्माण होने लगा। इसके सौ वर्ष बाद विकासशील देश इस दौड़ में शामिल हुए। सन 2000 में अफ्रीकी देश सेनेगल की राजधानी डकार में वैश्विक सम्मेलन हुआ था। इसमें पन्द्रह वर्षों में स्मार्ट सीटी बनाने के मापदंड तय किये गए। उन पर अमल का रोडमैप बना। लेकिन यह कार्य तय समय सीमा में पूरा नहीं हुआ। दो वर्ष पहले न्यूयार्क में पुनः समेलन हुआ। पहले आठ बिंदुओं का निर्धारण हुआ था। न्यूयार्क में इनकी संख्या ग्यारह हो गई। भारत में यूपीए सरकार ने इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाये।

नरेंद मोदी सरकार ने इसके लिए स्पष्ट योजना बनाई। इसके मद्देनजर ही उन्होंने स्वच्छता अभियान चलाया था। धीरे धीरे इसके प्रति जागरूकता बढ़ रही है। स्मार्ट शहर की प्राचीन काल से अवधारणा देखें तो ये सभी विचार, शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान आदि के केंद्र थे। आज इसमें डिजिटल तकनीक भी जुड़ गई है। फिर वही बात। जिस प्रकार डिजिटल तकनीक को अपनाने वाले व्यक्ति को स्मार्ट माना जाता है। वैसे ही शहर भी इस आधार पर स्मार्ट होते हैं। यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि विकास की इस दौड़ में गांवो की उपेक्षा न हो। उन्हें भी स्मार्ट बनाना होगा। वहां भी आधुनिक और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करानी होगी। वहां भी बाजार, शिक्षा, स्वास्थ, बिजली, सड़क, भंडारण आदि की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। तभी पलायन रुकेगा। विकास में सन्तुलन स्थापित होगा। यह अच्छी बात है कि वर्तमान सरकार स्मार्ट शहर और स्मार्ट गांव दोनों के निर्माण पर एक साथ ध्यान दे रही है। दोनां के लिए अलग अलग योजनाएं बनाई गई हैं। प्रत्येक गांव तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य पूर्णता की ओर है। सभी गांवों को खुले में शौच मुक्त करने, सभी गांव को सड़क से जोड़ने का कार्य भी अभूतपूर्व ढंग से आगे बढ़ा है। अंग्रेजां के आने तक भारत के सभी गांव स्वाबलम्बी थे।

अंगेजों ने कुटिलता से गांवों को बदहाल बनाया। वर्तमान सरकार गांवों को पुनः स्वावलम्बी बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। गांव के लोगों को वही जीवकोपार्जन के साधन उपलब्ध हों तो वह शहर नहीं आना चाहेंगे। जाहिर है कि स्मार्ट शहर के साथ स्मार्ट गांव का होना जरूरी है। सरकार इसका महत्व समझती है। ऐसे सन्तुलित विकास और स्मार्ट शहर, स्मार्ट गांव के निर्माण पर कई दशक पहले ध्यान दिया जाता तो इस दौड़ में हमारा देश पीछे नहीं रहता। डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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