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100 साल बेमिसाल: चांदी के सिक्कों को हटाकर बाजार में आया था 1 रूपए का नोट, 28 बार हुए बदलाव

पटना, सनाउल हक़ चंचल-

पटना : आजकल भारतीय बाजार में ज्यादातर 10, 50, 100, 500 और दो हजार के नोट ज्यादा दिखते हैं. बाकी तो ज्यादातर 1, 2 और 5 के सिक्के चलते हैं. शादी में भी 101 का लिफाफा देना हो तो एक रुपये का सिक्का ढूंढते हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले के जमाने में सिक्के को हटाकर एक रुपये का नोट लाया गया था. आजकल एक रुपये का नोट ढूंढने से नहीं मिलता. किसी को दे भी दिया जाए तो बड़े सहेज के रखता है ताकी आगे बता सके कि पहले ऐसे नोट चला करते थे. आज यानी 30 नवंबर को एक रुपये के नोट को 100 साल हो गए हैं. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं.

इसकी शुरुआत का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है. हुआ यूं कि दौर था पहले विश्वयुद्ध का और देश में हुकूमत थी अंग्रेजों की. उस दौरान एक रुपये का सिक्का चला करता था जो चांदी का हुआ करता था लेकिन युद्ध के चलते सरकार चांदी का सिक्का ढालने में असमर्थ हो गई और इस प्रकार 1917 में पहली बार एक रुपये का नोट लोगों के सामने आया.

इसने उस चांदी के सिक्के का स्थान लिया क्योंकि पहले विश्व युद्ध के बाद चांदी की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो गई थी. ठीक सौ साल पहले 30 नवंबर 1917 को ही यह एक रुपये का नोट सामने आया जिस पर ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम की तस्वीर छपी थी. विश्व युद्ध के समय तक चांदी के एक रुपये के सिक्के का प्रचलन था. दिलचस्प है कि विभाजन के बाद भी सालों तक पाकिस्तान में भी एक रुपये का नोट चलता रहा.

1926 में किया गया था बंद

भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट के अनुसार इस नोट की छपाई को पहली बार 1926 में बंद किया गया क्योंकि इसकी लागत अधिक थी. इसके बाद इसे 1940 में फिर से छापना शुरु कर दिया गया जो 1994 तक अनवरत जारी रहा. बाद में इस नोट की छपाई 2015 में फिर शुरु की गई. इस नोट की सबसे खास बात यह है कि इसे अन्य भारतीय नोटों की तरह भारतीय रिजर्व बैंक जारी नहीं करता बल्कि स्वयं भारत सरकार ही इसकी छपाई करती है. इस पर रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर नहीं होता बल्कि देश के वित्त सचिव का दस्तखत होता है.

आजादी के बाद भारतीय नोटों में ब्रिटेन के किंग की जगह भारत के राष्ट्रीय चिन्ह तीन शेर और अशोक चक्र को जगह दी गई। एक रुपये का नोट भी अपवाद नहीं था. मिंटेजवर्ल्ड के अनुसार, पिछले सौ सालों में एक रुपये के करीब 125 प्रकार के नोट चलन में आए, जिन पर 28 प्रकार की डिजाइन थी.

कानूनी भाषा में कहते थे ‘सिक्का’

इतना ही नहीं कानूनी आधार पर यह एक मात्र वास्तविक ‘मुद्रा’ नोट (करेंसी नोट) है बाकी सब नोट धारीय नोट (प्रॉमिसरी नोट) होते हैं जिस पर धारक को उतनी राशि अदा करने का वचन दिया गया होता है. दादर के एक प्रमुख सिक्का संग्राहक गिरीश वीरा ने पीटीआई से कहा, ”पहले विश्वयुद्ध के दौरान चांदी की कीमतें बहुत बढ़ गईं थी. इसलिए जो पहला नोट छापा गया उस पर एक रुपये के उसी पुराने सिक्के की तस्वीर छपी. तब से यह परंपरा बन गई कि एक रुपये के नोट पर एक रुपये के सिक्के की तस्वीर भी छपी होती है.” शायद यही कारण है कि कानूनी भाषा में इस रुपये को उस समय ‘सिक्का’ भी कहा जाता था.

पहले एक रुपये के नोट पर ब्रिटिश सरकार के तीन वित्त सचिवों के हस्ताक्षर थे. ये नाम एमएमएस गुब्बे, एसी मैकवाटर्स और एच. डेनिंग थे. आजादी से अब तक 18 वित्त सचिवों के हस्ताक्षर वाले एक रुपये के नोट जारी किए गए हैं. वीरा के मुताबिक एक रुपये के नोट की छपाई दो बार रोकी गई और इसके डिजाइन में भी कम से कम तीन बार आमूल-चूल बदलाव हुए लेकिन संग्राहकों के लिए यह अभी भी अमूल्य है.

अब ऑक्शन में लाखों की कीमत

बंद हुए एक रुपये के नोट की आज लाखों में कीमत है. ईबे सहित अन्य कई ऑनलाइन वेबसाइट पर इसकी कीमत इतनी है कि आपको इसे खरीदने के लिए अपना लाख रुपये का सामान बेचना पड़ेगा. अगर आपके पास यह नोट है तो लखपति भी बन सकते हैं. इसी साल की शुरुआत में क्लासिकल न्युमिसमैटिक्स गैलरी में 1985 में छपा एक रुपये का नोट दो लाख 75 हज़ार रुपये में बिका था. टोडीवाला ऑक्शन में 1944 में छपे एक रुपये के 100 नोटों की एक गड्डी एक लाख 30 हज़ार रुपये में बिकी.

तब पहली बार बना था अशोक स्तंभ

इस नोट की छपाई साल 1940 में फिर शुरू बुई लेकिन फिर 1994 में रोक दी गई. आजादी के बाद साल 1949 में एक रुपया के नोट पर से ब्रिटिश सिंबल को हटा दिया गया था. इसकी जगह रिपब्लिक भारत का सिंबल अशोक स्तंभ बनाया गया था. एक रुपया के नोट के बारे में एक मजेदार बात ये है कि साल 1917 से लेकर 2017 तक इसके डिजाइन में 28 बार बदलाव आ चुका है.

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