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जन आक्रोश रैली में भीड़ न जुटने से कांग्रेस परेशान.

नई दिल्ली, 07 जनवरी,=  पांच राज्यों में चुनाव के ऐलान के बाद कांग्रेस ने प्रचार के लिए कमर कस ली है। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने दिल्ली के बड़े नेताओं पर ही अपना भरोसा जताया है और प्रदेश स्तर के नेता दूसरी पंक्ति में खड़े कर दिए गए हैं। हालांकि जानकार मानते हैं कि इस नीति का कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

इसकी एक नजीर तो सामने आ भी चुकी है। दरअसल, मेरठ की जनआक्रोश रैली में भीड़ जुटाने में ही कांग्रेस नेताओं को पसीने आ रहे हैं। पार्टी ने टिकट के दावेदारों को भीड़ लाने का जिम्मा तो सौंप दिया है, लेकिन दिक्कत यह है कि जिला स्तर पर संगठन नाम भर का है। उनके पास कार्यकर्ताओं का अभाव है।

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इससे पहले उत्तर-प्रदेश के लिए कांग्रेस ने तीन माह पहले जोर-शोर से चुनाव प्रचार शुरू किया था। राहुल-सोनिया गांधी का रोड शो, किसान यात्रा, रैली और संवाद तक कराए गए, लेकिन पिछले एक माह के दौरान कांग्रेस अचानक कुछ शांत-शांत और प्रचार की दौड़ में पीछे दिखने लगी है। पार्टी में इस बात को लेकर भी सुगबुगाहट है कि चुनाव की नैया पार कराने वाली लीडरशिप में लोकल लोग कम ही हैं। केंद्रीय राजनीति के हाथों में गठबंधन की बागडोर है।

कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा शीला दीक्षित भले ही खुद को यूपी की बहू कहें, लेकिन उनकी पहचान दिल्ली के बाशिंदे की है। वह लंबे वक्त दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। यूपी के जिला स्तर के पार्टी नेताओं से उनकी कोई नजदीकी नहीं है। यूपी में पार्टी के प्रभारी गुलाम नबी आजाद भी केंद्रीय राजनीति में रहे हैं। वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। वह कई बार यूपी संगठन से जुड़े मगर पार्टी में उनका बड़ा कद होने के कारण जिला संगठन खुलकर बात करने में संकोच करता है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का भी यूपी से जुड़ाव न के बराबर है। वह राज्यासभा सदस्य हैं और दिल्ली में रहकर राजनीति करते हैं। कांग्रेस नेता के रूप में यूपी में उनकी पकड़ कभी नहीं रही। उनके साथ भी यही दिक्कत है कि जिला स्तरीय संगठन में उनकी पहचान के कम ही लोग हैं। राजबब्बर कभी कांग्रेस संगठन में अन्य ऐसे पदों पर नहीं रहे, जिससे उनका सीधा संबध जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से रहा हो।

दूसरी ओर यूपी से जुड़े प्रमोद तिवारी, जतिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, निर्मल खत्री, संजय सिंह, प्रदीप माथुर आदि को एक तरह से मुख्यधारा से अलग कर दूसरी पंक्ति वाली जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिला स्तर पर संगठन तो है लेकिन उनके पास कार्यकर्ताओं का अभाव है।

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