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कुछ मिनटों में ही गिरा दी गई थी बाबरी मस्जिद , पढ़े अयोध्या विवाद की पूरी कहानी

नई दिल्ली: अयोध्या में भगवान राम का मंदिर  बनाने को लेकर एक बार फिर सियासत तेज हो गई है. भारतीय जनता पार्टी  समेत देश की कई राजनीतिक पार्टियां अयोध्या राम मंदिर  के निर्माण के लिए हुंकार भर रही हैं. उनके अनुसार अयोध्या में विवादित जमीन पर  बगैर किसी देरी के भगवान राम का ही मंदिर बनना चाहिए. आलम यह है कि राजनीतिक दल ही नहीं मंदिर निर्माण को लेकर बीजेपी के सांसद भी बगैर रोक-टोक बयान दे रहे हैं. खासकर तब जब यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में है और मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होनी है. पिछले दिनों सांसद साध्वी प्राची ने अगले महीने की छह तारीख को ही राम मंदिर का शिलांयास करने की बात कही थी. उन्होंने कहा कि रामलला भी शायद यही चाहते हैं कि जिस दिन बाबरी मस्जिद ढाही गई उसी दिन से मंदिर का निर्माण शुरू हो. 6 दिसंबर 1992 का दिन भारत के इतिहास में बाबरी मंदिर विध्वंस के रूप में जाना जाता है. इसी दिन कार्यसेवकों ने महज 17 से 18 मिनट के अंदर ही बाबरी मस्जिद को ढाह दिया था. आइये जानते हैं कि इस दिन आखिर हुआ क्या था.

बाबरी मस्जिद विध्यवंस से पहले 30 नवंबर 1992 को लालकृष्ण आडवाणी ने मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या जाने का एलान किया था. इसके बाद ही बाबरी मस्जिद के विध्यवंस को लेकर रूपरेखा तैयार होनी शुरू हो गई थी. हालांकि लालकृष्ण आडवाणी के इस दौरे की जानकारी राज्य और केंद्र सरकार दोनों की थी. 5 दिसंबर की शाम केंद्रीय गृह मंत्री शंकर राव चौहान ने कहा था कि अयोध्या में कुछ नहीं होगा. ऐसा कहा जाता है कि गृह मंत्री को अपनी खुफिया एजेंसियों की तुलना में यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर ज्यादा भरोसा था. पीएम पीवी नरसिम्हा राव को यूपी के सीएम कल्याण सिंह के उस बयान पर ज्यादा भरोसा था जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की बात कही थी. हालांकि इस दौरान खुफिया एजेंसियों ने कारसेवकों के बढ़ते गुस्से के बारे में बता चुकी थी. वे बता चुकी थी कि किसी भी वक्त कारसेवक बाबरी मस्जिद पर धावा बोल सकते हैं और ढांचे को ध्वस्त कर दिया जा सकता है. इसके बाद भी सावधानी नहीं बरती गई. और आखिरकार बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया. इसके कुछ घंटे बाद ही यूपी के सीएम कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था.

विवाद की ये है पुरानी कहानी

सुप्रीम कोर्ट की पीठ अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.बता दें कि राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए, जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई.

राम जन्मभूमि विवाद 
एक पक्ष ने कहा मामला संवैधानिक पीठ में जाए, अन्य ने कहा जल्द निपटाएं.सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला लंबित है.

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