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तीन हजार करोड़ का सेल्स टैक्स बकाया, सीएसजेड कागजों पर हो रहा है साकार

मुंबई, 06 जनवरी (हि.स.)। एक तरफ महाराष्ट्र में टैक्स बकायादारों की बढ़ती संख्या से प्रशासन को बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान हो रहा है तो वहीं विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के मामले में भी ठोस योजनाओं को शुरू कर पाने में औद्योगिक संस्थान असफल साबित हो रहे हैं। राज्य सरकार का दावा है कि उसने विदेशों से निवेश के लिए बड़े पैमाने पर करार किया है और एफडीए लाने में उसने सबसे ज्यादा काम किए हैं, लेकिन सरकारी लापरवाही के कारण एसईजेड सहित साढ़े तीन हजार हेक्टर औद्योगिक जमीन को लेकर संभ्रम पैदा हो गया है। अधिकांश एसईजेड केवल कागजों पर ही दौड़ रही है। राज्य सरकार की ओर से मैग्नेटिक महाराष्ट्र निवेश परिषद का आयोजन किया जा रहा है। बता दें कि राज्य के व्यापारियों पर 2 हजार 860 करोड़ रुपए का विक्री कर (सेल्स टैक्स) बकाया है, जिसकी वसूली कर पाने में विभाग खुद को असमर्थ पा रहा है। नोटबंदी और जीएसटी के बाद अधिकांश व्यापारियों ने उद्योग व व्यवसाय को बंद कर दिया है। विक्री कर विभाग ने अब ऐसे व्यापारियों का पता लगाने के लिए पुलिस, राजस्व और व नगर विकास विभाग की मदद लेने की योजना बनाई है।

एक रिपोर्ट के अनुसार कर बकाया की अनुमानित रकम 12 हजार 334 करोड़ से ज्यादा हो सकती है। लेकिन इसमें पिछले वित्त वर्षों का बकाया रकम भी शामिल की गई है, जिसकी वसूली नहीं हो पाई थी। इसके बावजूद पिछले वित्त वर्ष का टैक्स 2 हजार 860 करोड़ 18 लाख रुपए दिखाया गया है। कर वसूल करनेवाले ऐसे कारोबारियों की पहचान के लिए अब तलाठी, तहसीलदार, नगर पालिका, महानगर पालिका, दुय्यम निबंधक (खरीदी-विक्री) के रिकॉर्ड की मदद से की जाएगी। इस संदर्भ में राज्य सरकार के राजस्व विभाग ने आदेश जारी किया है। राज्य सरकार के अंतर्गत आनेवाले राज्य विक्री कर विभाग की ऑडिट रिपोर्ट भी तैयार हो रही है। कैग ने भी इसे लेकर चिंता जताई है। कैग ने टैक्स वसूली के लिए राज्य में प्रभावी कार्य प्रणाली को लागू करने की सलाह दी है। 5 लाख से अधिक टैक्स बकाया होने के मामले में संबंधित कारोबारी के मौजूदा बैंक खातों व अन्य सूचनाओं की जांच करने के भी आदेश दिए गए हैं। 

राज्य सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि उसे शासन कार्य के दौरान बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशक महाराष्ट्र में निवेश के लिए आकर्षित हुए हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि एसईजेड के तहत उपलब्ध कराई गई जमीनों पर योजना को साकार कर पाने में संबंधित विभाग असफल साबित हुआ है। लगभग साढ़े तीन हजार हेक्टर जमीन का अधिग्रहण किया गया है। साल 2005 में देश में केवल सात एसईजेड विकसित किए गए थे। उसके बाद से अब तक राज्य में 57 एसईजेड प्रस्ताव को औपचारिक रूप से मंजूर किया गया था, जबकि 11 एसईजेड को केंद्र सरकार ने मंजूर किया था। इसमें से 50 एसईजेड अधिसूचित कर दिए गए हैं। लेकिन इसमें से केवल 28 एसईजेड ही कार्यरत हैं। यहां से केवल निर्यात हो रहा है। एमआईडीसी के सात में से पांच एसईजेड कार्यरत हैं। लातूर के कृषि प्रक्रिया उद्योग के साथ नवी मुंबई के ऐरोली आईटी से संबंधित एसईजेड को मंजूरी देने के बाद भी शुरू नहीं किया जा सका है।

इसके तहत 199.70 हेक्टर जमीन बिना किसी उपयोग के बेकार पड़ी हुई हैं। केंद्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट के पास मल्टी पर्पज डेवलपमेंट एसईजेड के प्रस्ताव को मंजूर किया था। लेकिन 277 हेक्टर जमीन पर इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के प्रस्ताव मंजूर किए जाने के बाद भी आगे कोई कमद नहीं उठाया जा सका है। हालांकि नवी मुंबई में विशेष ‘नैना’ प्रकल्प को सिडको के मार्फत शुरू किया जाना है और निजी कंपनी को नियुक्त किया है। लेकिन इस कंपनी को केवल उलवे में पांच, कलंबोली में दो और द्रोणगिरी में एक एसईजेड विकसित करने की मंजूरी दी गई है। नवी मुंबई में 1797.52 हेक्टर जमीन का अधिग्रहण किया गया है। अन्य निजी कंपनियों के पास भी 1264 हेक्टर जमीन एसईजेड के लिए अटकी पड़ी है। एमआईडीसी 199.70 हेक्टर, जेएनपीटी 277 हेक्टर, नवी मुंबई 1797.52 हेक्टर और निजी कंपनियों के पास 1264 हेक्टर जमीन एसईजेड के तहतत उपलब्ध कराई गई हैं। 

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