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धर्म की परिभाषा क्या है = स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज

मुंबई =स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज कहते है कि  साथ ही साथ विशुद्ध धर्म-शास्त्र और उसकी वास्तविक व्याख्या के अभाव में यह विकृति बढ़ती गई। जब हम धर्म की वास्तविक परिभाषा को प्राप्त कर लेंगे तो समझ लेंगे, हम इस विकृति से अवश्य निकल जाएंगे। एक बात और समझ लेनी चाहिए कि यह संघर्ष किसी ने हम पर लादा नहीं है बल्कि धार्मिक भ्रांति के कारण यहीं जन्मा है। याद कीजिए उस समय को जब इस भूमि पर त्रिलोक विजयी, चक्रवर्ती सम्राट, दिग्विजयी और पराक्रमी राजा हुआ करते थे। उस समय खैबर दर्रे को पार करके सिन्धु घाटी से ऊंटों पर सवार होकर कुछ लुटेरे आए। उन्होंने न केवल मंदिर लूटे, अस्मत लूटी बल्कि दिल्ली पर भी अपना झण्डा गाड़ दिया। इस अनर्थ का कारण वे लुटेरे नहीं बल्कि हमारी धार्मिक भ्रांति थी। आखिर तब कहां गया था उन पराक्रमी चक्रवर्ती लोगों का बल? वे अपनी जगह थे पर धर्म के अज्ञान ने ही उन पर आघात किया। उनका धर्म कहता था कि केवल क्षत्रिय लड़ेगा, ब्राह्मण और वैश्य केवल तभी हथियार उठा सकते हैं जब दान दी हुई वस्तु कोई छीन ले अथवा गाय पर कोई विपत्ति आए। लेकिन शूद्र चाहे मर जाए, शस्त्र नहीं उठा सकता, अन्यथा नरक में जाएगा। यह था उनका तथाकथित भ्रांतिपूर्ण सनातन धर्म।

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इसी कारण जब विधर्मियों का आक्रमण हुआ तो यहां की जनता में लड़ने वाले 100 में से केवल 7 होते थे। इन 7 क्षत्रियों में भी स्त्री, बच्चे और वृद्ध होते थे, अर्थात् लड़ने वाले कुल 3 या 4। इन 3-4 पर कब्जा कर लिया तो बस, बाकी सब तमाशा देखते थे क्योंकि युद्ध करना उनका “धर्म” नहीं था इसलिए मुठ्ठी भर लोग चन्द क्षत्रियों पर कब्जा करके इन्हें भेड़-बकरियों की तरह उठा ले जाते और अपनी मण्डी में 2-2 रु. में बेच देते थे। यदि सम्पूर्ण समाज उन बर्बर आक्रांताओं से लड़ता तो कभी पराजित न होता। पर वह भीषण संकट इस तथाकथित धर्म भ्रांति की वजह से आया।

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