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भवानी गौरी, शुभंकरी कालरात्रि के दरबार में उमड़ी भीड़

वाराणसी, 03 अप्रैल (हि.स.)। वासंतिक चैत्र नवरात्र में सातवें दिन सोमवार को नौ गौरी के दर्शन क्रम में श्रद्धालुओं ने भवानी गौरी के दरबार में हाजिरी लगाई। विश्वनाथ गली स्थित माता अन्नपूर्णा मंदिर के निकट राम मंदिर परिसर में भगवती के दरबार में अलसुबह से देर रात तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।

श्रद्धालुओं ने परा अम्बा के गौरी स्वरूप प्रतिमा के दर्शन के साथ उन्हें नैवद्य, फल फूल, नारियल और श्रृंगार सामग्री अर्पित की। माना जाता है कि माँ सभी बाधा व आपदाओं को हरने वाली है। भगवती के भव्य और अलौकिक आभा से परिपूर्ण इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से पापों का नाश हो जाता है। साथ ही भक्त द्वारा माता भगवती के दिव्य स्वरूप की आराधाना और उपासना से उसमें तप, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य भाव में निरन्तर वृद्धि होती है।

उधर आदि शक्ति स्वरूपा नवदुर्गा पूजन अर्चन के क्रम में सातवें दिन श्रद्धालु कालिका गली काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां कालरात्रि के दरबार में पहुंचे। कड़ी सुरक्षा के बीच भोर से देर शाम तक हजारों श्रद्धालुओ ने कतारबद्ध होकर मत्था टेका। इस दौरान देवी की स्तुति-वंदना पचरा के साथ दरबार माला-फूल, धूप-बत्ती और लोहबान की गंध से महकता रहा। भोर से लेकर देर शाम तक दरबार में गूंजती घंटियों की आवाज और रह-रहकर जयकारा-‘‘सांचे दरबार की जय से कालिका गली गुजांयमान रही। भगवती के इस रूप के बारे में मान्यता है कि उनके दर्शन-पूजन से अकाल मृत्यु नहीं होती हैं। साथ ही भक्तों की सारी कामनाएं पूरी हो जाती है। मां कालरात्रि भक्तों को सुख देने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। मां कालरात्रि का रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हैं। गले की माला बिजली की तरह चमकती है। इनके तीन नेत्र हैं। इनके श्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं। मां का वाहन गर्दभ है।

मंदिर के पुजारी पंडित राजीव तिवारी ने बताया कि मां कालरात्रि का मन्दिर इस स्थान पर सैकड़ों वर्षों से है। मंदिर के कारण ही इस गली को कालिका गली कहा जाता है। मंदिर में मां का दिव्य रूप है। असुरों के राज रक्तबीज का वध करने के लिए मां कालरात्रि की उत्पत्ति हुई थी। मां के तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। मां को नारियल बलि के रूप में चढ़ाने का विशेष महत्व है। मां को चुनरी के साथ लाल अड़हुल की माला व मिष्ठान का भोग लगाया जाता है जिससे मां अपने भक्तों को सद्बुद्धि व सुरक्षा देती है। बताया कि सभी देवियों से मां का यह रूप भयंकर है, लेकिन यह मां सब पर अपनी कृपा बरसाती है। इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। नवरात्र का यह दिन तंत्र-मंत्र के लिए अच्छा माना जाता है। सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कहा जाता है। मां के इस रूप के साथ चौसट्ठी देवी, मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर स्थित मां अन्नपूर्णा मंदिर, संकठा मंदिर, माता कालरात्रि देवी मंदिर, तारा मंदिर, सिद्धेश्वरी मंदिर और कमच्छा स्थित कामाख्या मंदिर में भी पूजन अर्चन के लिए श्रद्धालुओ की भारी भीड़ उमड़ती रही।

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