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101 फीट ऊंची बांस से बनी दुर्गा प्रतिमा देखने के लिए टूट पड़े हैं श्रद्धालु !

गुवाहाटी, 27 सितम्बर :  101 फीट ऊंची बांस से निर्मित दुर्गा प्रतिमा को देखने के लिए षष्ठी यानि मंगलवार की रात से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। असम की राजधानी गुवाहाटी के विष्णुपुर पूजा समिति द्वारा तैयार की गई बांस से निर्मित 101 फुट ऊंची प्रतिमा खासी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। षष्ठी की रात को 12 बजे से ही वाहनों की लंबी कतारें विष्णुपुर में देखी गई, जिसके चलते लोग पूजा पंडाल तक पैदल चलकर जाने के मजबूर हुए। शहर के शराबभट्ठी से ही वाहनों की लंबी कतारें लग गई हैं। ट्रैफिक पुलिस तथा स्वयंसेवक भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। लोग वाहनों को सड़क किनारे पार्क कर पैदल चलकर दुर्गा मंडप तक पहुंच रहे हैं।

असम की राजधानी गुवाहाटी के विष्णुपुर विश्व में सबसे ऊंची दुर्गा प्रतिमा स्थापित करने का विष्णुपुर सार्वजनिक दुर्गा पूजा कमेटी ने कीर्तिमान स्थापित किया है। विष्णुपुर इलाके का नाम असम के पूर्व मुख्यमंत्री विषणुराम मेधी के नाम पर पड़ा है। यह इलाका जनसंख्या के लिहाज से काफी सघन है। इस इलाके में काफी संख्या में छोटे-छोटे व्यवसायिक प्रतिष्ठान हैं जिसे पार कर पूजा मंडप तक जाया जा सकता है। 

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रास्ता संकरा होने के चलते भीड़ काफी हो रही है। 101 फीट ऊंची मूर्ति को देखने के लिए शहर के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं। सभी लोगों की एक ही इच्छा है कि किसी तरह मूर्ति का दर्शन कर लें। माना जा रहा है कि सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन श्रद्धालुओं भारी भीड़ उमड़ने को देखते हुए काफी संख्या में लोगों ने पंचमी के दिन ही प्रतिमा का दर्शन कर लिया। 

विश्वकर्मा पूजा के दिन आए तूफान में मूर्ति गिर गई थी, जिसको मूर्तिकार ने एक चुनौती के रूप में लेते हुए एक सप्ताह से कम समय के अंदर फिर से तैयार कर दिया। इस मूर्ति का निर्माण नुरुद्दीन अहमद ने किया है। अहमद ने ही प्रतिमा का नक्शा बनाकर उसके अनुरूप प्रतिमा का निर्माण किया। इस प्रतिमा के निर्माण का उद्देश्य जहां श्रद्धालुओं को कुछ अलग दिखाना वहीं गिनिज बुक आफ रिकार्ड में नाम दर्ज करना थ।

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विश्वकर्मा पूजा के दिन आए तूफान के कारण मूर्ति पूरी तरह से गिर गई थी। जिसके चलते पूजा कमेटी और स्वयं मूर्तिकार काफी हतोत्साहित हो गए थे, लेकिन मूर्तिकार अहमद ने हार नहीं मानी और 24 घंटे काम करते हुए एक सप्ताह के अंदर फिर से प्रतिमा का निर्माण कर दिया। इस प्रतिमा को बनाने में पांच हजार बांस तथा बांस से बनी सारी चीजें जैसे कटोरी, गमला, जापी का इस्तेमाल किया गया है। असम की प्रमुख शिल्प कला यानि बांस से बनाने की कला को इस प्रतिमा के जरिए जीवित किया गया है। इसे देखने के लिए राजधानी के कोने-कोने से लोगों की भीड़ शुरुआती दिनों से ही उमड़ रही है।  (हि.स.)।

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