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आपदा प्रबंधन को बनाएं जीवन का हिस्सा

– अरविन्द मिश्रा

इन दिनों देश न सिर्फ कोरोना संकट से जूझ रहा है, बल्कि आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से भूकंप, बिजली गिरने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समाचार सुनने को मिल रहे हैं। ऐसी स्थिति में आपदा प्रबंधन में सामाजिक सहभागिता के प्रयास और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश में आपदा प्रबंधन को सिर्फ सरकार, प्रशासन और संबंधित प्राधिकरणों की जिम्मेदारी मान लिया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक आपदा प्रबंधन के प्रशिक्षण के जरिए हर साल देश में एक करोड़ लोगों की जान बचाई जा सकती है। नीतिगत रूप से देखें तो आपदा प्रबंधन राज्य सरकार का विषय है। केंद्र सरकार नीतियां और गाइडलाइंस बनाती है। देश में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमओ) के साथ कई राज्य सरकारें और उनके विभाग प्राकृतिक व मनुष्य जनित विभीषिकाओं के दौरान पूरी दक्षता और संवेदनशीलता के साथ कार्य भी करते हैं लेकिन आज भी हमारे यहां आपदाओं से निपटने की तैयारी में जन सहभागिता का नितांत अभाव नजर आता है। दुर्भाग्य से स्कूल और कॉलेज के बच्चों को आपदा प्रबंधन का व्यावहारिक प्रशिक्षण देने की बजाय यह विषय कुछ कक्षाओं के पाठ्यक्रम में औपचारिकता स्वरूप ही नजर आता है। वहीं, जापान, इंडोनेशिया, इजरायल और यूरोप के कई देशों में आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण लोगों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। यही कारण है कि इन देशों में आपदाओं से होने वाला नुकसान भारत जैसे देशों की तुलना में काफी कम होता है।

आपदा प्रबंधन को समझने के लिए सर्वप्रथम उसके दायरे को समझना होगा। आपदाएं सामान्यत: दो प्रकार की होती हैं। पहला, प्राकृतिक तथा दूसरी मानवजनित। प्राकृतिक आपदाओं में तूफान, चक्रवात, भूकंप, बाढ़, जंगल की आग, बिजली गिरने जैसी घटनाएं प्रमुख हैं। मानव जनित आपदाएं तो कई बार प्राकृतिक आपदाओं से भी खतरनाक होती हैं। ईमारत का ढह जाना, गैस रिसाव, विस्फोट, सड़क, रेल हादसे, हवाई जहाज का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना तथा परमाणु हादसे व प्रदूषण आदि भी मानवजनित आपदाओं में शामिल हैं। यहां तक की अचानक किसी व्यक्ति के बेहोश होने से लेकर ह्दयघात या ऐसी बीमारियां भी आपदाओं की श्रेणी में आती है, जिसमें आकस्मिक स्थिति में उचित प्रबंधन से व्यक्ति की जान बचाए जाने की संभावना निहित है। अर्थात आपदाएं और मानवीय जीवन एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं।

आपदाओं का यदि उचित प्रबंधन न हो तो यह व्यक्ति, समाज और देश पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ती हैं। कई बार जान-माल की हानि इस कदर होती है कि उसकी भरपाई करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जरूरी है कि आपदा प्रबंधन के महत्व को समझते हुए प्रशिक्षण प्राप्त कर उसे जीवन में उतारा जाए। एक नजरिए से देखा जाए तो यह कार्य बेहद आसान है लेकिन उसे व्यवहार में लाते समय सावधानियों का तकनीकी प्रशिक्षण आवश्यक है। अन्यथा जरा-सी लापरवाही आपदा प्रबंधन के उद्देश्यों को धूमिल कर देगी।

आपदा प्रबंधन का प्राथमिक सिद्धांत कहता है कि सबसे पहले हमें यह पता होना चाहिए हम जिस क्षेत्र में रह रहे हैं, वहां किस प्रकार की आपदाओं का संकट अधिक है। भारत में 59 फीसदी भूमि भूकंप प्रभावित है, वहीं 12 प्रतिशत में बाढ़ का संकट बना रहता है। घर के पास स्थित तालाब, नदी, नाले, बड़ी आधारभूत संरचनाएं जैसे पुल, रेलवे ट्रैक, राजमार्ग आदि भी आपके आपदा प्रबंधन के प्रशिक्षण का हिस्सा होते हैं। हमें इन संरचनाओं को ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन को चरणबद्ध तरीके से अपनाना चाहिए।

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी और केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा प्रसारित जागरुकता कार्यक्रम इस ओर हमें पर्याप्त बातें बताते हैं। जैसे, हमें हमेशा प्राकृतिक आपदाओं को लेकर एक फैमिली इमरजेंसी प्लान तैयार रखना चाहिए, जिसमें आपदा के समय परिवार के हर सदस्य द्वारा किए जाने वाले कार्य की भूमिका तय हो। ध्यान रहे आपातकालीन स्थिति में कौन कहां होगा, किस स्थिति में होगा, यह किसी को नहीं पता होता। ऐसे में आपात स्थिति में हम एक-दूसरे से कैसे और कहां संपर्क करेंगे, यह आवश्यक होता है। हम कैसे और कहां मिलेंगे, भूकंप या बाढ़ में हमारा मीटिंग प्वाइंट क्या होगा, इसकी जानकारी परिवार के सभी सदस्यों को होनी चाहिए। संपर्क का पहला स्थल घर के बाहर होना चाहिए, वहीं दूसरा मीटिंग प्वाइंट शहर से दूर रहे तो बेहतर होगा। परिवार के सभी सदस्य इस स्थल से परिचित हों, यह सुनिश्चित करें।

एक अन्य जानकारी जो घर के सभी सदस्यों को होनी चाहिए वह किन्हीं एक-दो रिश्तेदारों के फोन नंबर याद होना चाहिए। बच्चों को भी मोबाइल आदि से मैसेज भेजना सिखाएं। इससे आप विषम परिस्थिति में अपनी सही जानकारी उनतक पहुंचा सकेंगे। ऐसा देखने में आया है कि प्राकृतिक आपदाओं के समय आपदा स्थल के निकट की संचार व्यवस्थाएं नष्ट हो जाती हैं लेकिन कुछ किलोमीटर दूरी पर दूरसंचार व्यवस्थाएं अप्रभावित रहती हैं। आपदा प्रबंधन के दूसरे चरण में, आपके घर में हमेशा एक डिजास्टर किट तैयार होनी चाहिए। इस डिजास्टर किट में कुछ वस्तुएं जैसे पानी की बोतल, दवाएं, फर्स्ट एड की सामग्री, टॉर्च, रेडियो, बैटरी, आपके आवश्यक दस्तावेज आधार कार्ड, आपके स्वास्थ्य की जानाकारी देने वाले दवाओं के पर्चे आदि रखे हों।

इसके साथ ही मोबाइल पर अलर्ट सर्विस भी सब्सक्राइव करना चाहिए। आजकल भारत सरकार द्वारा बहुत सी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना की जानकारी मुहैया कराई जा रही है। घर से निकलते समय बिजली, गैस सिलेंडर आदि बंद कर ही घर से बाहर निकलना चाहिए। घर से निकलते समय पूर्व बनाई गई योजना में यह तय होना चाहिए कि कौन-सा व्यक्ति क्या करेगा। जैसे बिजली के स्विच बंद करने से लेकर, चाभी निकालने, डिजास्टर किट लेने तक की जिम्मेदारी बंटी होनी चाहिए। आपदाओं के समय हर एक क्षण कीमती होता है।

इन दिनों मानसून का सीजन है, देश के कई हिस्सों में बाढ़ और बिजली गिरने का का खतरा रहता है। ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में शिक्षित युवाओं को लोगों को छोटे-छोटे जागरुकता कार्यक्रम के जरिए ऐसी आपदाओं से बचाव के टिप्स देने चाहिए। यदि डूब क्षेत्र में घर हो तो बरसात के दिनों में समय रहते सुरक्षित स्थानों पर चले जाना चाहिए। घर से बाहर निकलते समय जूते पहनकर और हाथ में डंडा लेकर ही निकलें। रात के समय टॉर्च आदि अनिवार्य रूप से हाथ में होनी चाहिए। अक्सर हमने देखा है कि लोग बारिश के वक्त पेड़ों के नीचे खड़े रहते हैं, जबकि प्रयास करना चाहिए कि आप जितना जल्दी हो सके सुरक्षित व सूखे जगह पर खड़े हों।

इन दिनों जल आपूर्ति तंत्र बुरी तरह प्रदूषित हो जाता है, ऐसे में पानी में क्लोरीन की गोलियां डाल दें या फिर उबला हुआ जल ही पीना चाहिए। आज शहरों में जल निकासी के लिए जिस प्रकार नालियों का जाल बिछाया गया है, ऐसे में सड़क पर चलते समय सावधानी बरतें। सामान्यत: जल निकासी के लिए बनाई गई पाइपलाइन और गटर आदि के ऊपर पैर नहीं रखना चाहिए। यह छोटी बातें होती हैं, लेकिन आए दिन लोगों की मौत की वजह बन जाते हैं। आपका घर शहरी इलाके में हो या ग्रामीण हिस्से में, घर में अनिवार्य रूप से फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, पुलिस थाने आदि के नंबर चस्पा होने चाहिए।

यह कुछ ऐसी बातें और प्रशिक्षण हैं जिससे जुड़े तथ्य, सूचना और संचार के इस युग में हर जगह आपको आसानी से मिल जाएंगे। केंद्र और राज्य सरकारों के संबंधित विभाग सिविल सोसाइटी की मदद से आपदा प्रबंधन के विषय को जन-जन के जीवन का हिस्सा बनाएं। इसके साथ ही एक आदर्श नागरिक के रूप में हम सभी को आपदाओं से निपटने की छोटी-छोटी तकनीकी जानकारी अनिवार्य रूप से हासिल करनी होगी। आपदाओं से होने वाली व्यापक जन-धन की हानि को कम करने का यह सबसे सशक्त माध्यम है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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