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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पढिये, क्यों हैं ये समाज की सबसे प्रेरणादायक मां

पटना, सनाउल हक़ चंचल, स्टेट हेड

सिर्फ पा कर ही नहीं, खो कर भी बनती हैं महिलाएं समाज के लिए प्रेरणा

सीवान । 8 मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश दुनिया में अलग अलग क्षेत्रो में अपनी मेहनत लगन समर्पण व हार नहीं मानते हुए कुछ कर दिखाने या कोई बडा मुकाम पा लेने वाली महिलाओ को केंद्र में रखकर कार्यक्रम आयोजित होते हैं। महिलाओ को सम्मानित किया जाता है क्योंकि वे महिलाएं समाज के लिए प्रेरणा बनती हैं। लेकिन इसी समाज में कुछ ऐसी महिलाएं हैं जो बेइंतहा दर्द सहती हैं, वे कुछ पाती भले नही लेकिन खोती बहुत कुछ हैं। जिनकी हिम्मत, परिश्रम व समर्पण को करीब से देखा जाए तो सहसा विश्वास न हो कि ऐसा भी हो सकता है लेकिन विश्वास करना पड़ता है और इन महिलाओ के बारे में पढ कर सुनकर इनसे प्रेरणा जरूर ली जा सकती है कि कितनी भी विकट परिस्थिति हो हार नहीं मानना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ऐसी ही दो महिलाओ से मुलाकात हुई सीवान शहर के नई बस्ती स्थित मुक बधीर विद्यालय में ।

इनमें एक महिला हैं बड़हरिया के लकडी निवासी व्यवसाई विजेश कुमार की पत्नी प्रियंका देवी। इनकी तीन संताने हैं। पढी लिखी हैं, कहीं भी किसी तरह की नौकरी कर सकती हैं, लेकिन इन्होंने नौकरी नहीं की। कारण है, तीन संतानो में सबसे बडा लड़क अभय कुमार। जन्म के बाद से ही जब पता चला कि अभय सुन बोल नहीं सकता है तो परिवार को मानो सदमा लगा। लेकिन यहीं पर प्रियंका ने अपनी मजबुती का परिचय दिया। अभय का लालन पालन बेहतर ढंग से करने लगीं। लेकिन इसके बाद दो और संताने शिवानी और कृष्ण का भी जन्म हो गया। बडी संतान मुक बधिर और दो छोटे छोटे बच्चे, परिस्थितियो ने मानो प्रियंका को तोडने का पुरा प्रयास किया लेकिन प्रियंका ने खुद को इसके अनुसार ढाला और तीनो को समान रूप से पालन पोषण प्रारंभ किया। प्रियंका ने सबसे बडे मुक बधीर बच्चे अभय का नाम मुक बधीर विद्यालय में लिखवाया । इसके बाद रूटीन बनाते हुए घर का सारा काम निपटाकर सुबह 8 बजे 18 किलोमीटर दूर लकडी से सीवान आती हैं और बच्चे को विद्यालय में छोडकर पूरे पांच घंटे खुद पढाई करती हैं। इसके बाद पुनः बच्चे को लेकर 3 बजे घर लौटती हैं। यही नहीं इशारो की भाषा भी सिख रही है ताकि बेटे को कम दिक्कत हो। घर में दो अन्य छोटे बच्चो और अभय को समान रूप से प्यार दुलार देकर ये महसूस नहीं होने देती कि बडी संतान बोल सून नहीं सकती है। गांव से लेकर शहर तक जो भी सुनता है और इन्हे जानता है हर कोई कहता है कि मां हो तो ऐसी।

महिला दिवस : तीन स्टेशन महिलाओं के हवाले

इसी से मिलती जुलती कहानी है पचरूखी के नैनपुरा निवासी संगीता मिश्रा की। सत्येंद्र मिश्र और संगीता मिश्र को तीन संताने हैं जिसमें सबसे बडी बेटी अंशिका उसके बाद कनिष्क तथा सबसे छोटा आर्यन मिश्र है। बडी बेटी डीएवी कॉलेज में इंटर की छात्रा है जबकि उसके बाद कनिष्क है जो जन्म से ही मुक बधीर है। सारे इलाज के बावजूद जब कहीं से भी ठीक होने की उम्मीद नहीं दिखी तो संगीता ने खुद जिम्मेदारी उठाई और कनिष्क का नामांकन मुक बधीर विद्यालय में कराया। एक तरफ तेजी से बडी हो रही बेटी की जिम्मेदारी और दूसरी तरफ दो छोटे बेटे जिसमें एक मुक बधीर है। तीनो की जिम्मेदारी पूरी समर्पण से उठाते हुए संगीता कहती हैं कि भगवान को जो देना था उन्होंन दे दिया। अब उसे बेहतर बनाना इंसान की जिम्मेदारी है। मैं प्रयास करती हुं कि तीनो बच्चे आगे बढे और समाज में परिवार का नाम बढाएं। मुझे इसके लिए जितनी भी मेहनत करनी पडे पिछे नहीं हटुंगी। पढी लिखी हुं जॉब कर सकती हुं लेकिन फिर बच्चो के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाउंगी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ऐसी मां को प्रणाम।

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