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प्लाज्मा थेरेपी ने जगाई उम्मीद

– जाहिद खान

सारी दुनिया फिलवक्त नोवेल कोरोना वायरस से जूझ रही है। इसकी रोकथाम के लिए सभी देशों में कोशिशें जारी हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक अपनी-अपनी प्रयोगशालाओं में, इस वायरस से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। कुछ देश वैक्सीन के परीक्षण में लगे हुए हैं। जाहिर है कि जबतक कोई वैक्सीन नहीं बन जाती और इसका सफलतापूर्वक परीक्षण नहीं हो जाता, तब तक इस वायरस से इंसान के लिए जंग जीतना मुश्किल ही रहेगी। चारों तरफ नाउम्मीदी के इस माहौल में ‘कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी’ ने उम्मीद की एक किरण जगाई है।

हाल ही में दिल्ली में इस थेरेपी से कोविड-19 के मरीजों के स्वास्थ में काफी सुधार देखने में आया है। यह थेरेपी इतनी कारगर रही कि मरीज, थेरेपी के चौथे दिन ही वेंटिलेटर से बाहर आ गए। न सिर्फ वेंटिलेटर से बल्कि आईसीयू से भी उन्हें सामान्य वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। अब ये मरीज ओरली लाइट डाइट ले रहे हैं और कोरोना की उनकी पहली जांच भी निगेटिव आई है। जिस तरह से इस थेरेपी के उत्साहवर्धक नतीजे सामने आए हैं, उससे इस ट्रायल में जुड़े डॉक्टर खासे उत्साहित हैं। अब कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी का वे बाकी संक्रमित मरीजों पर भी प्रयोग करना चाहते हैं। दिल्ली के अलावा राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों ने ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ (आइसीएमआर) से मंजूरी लेने के बाद अपने-अपने यहां इस थेरेपी का परीक्षण शुरू कर दिया है।

कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों पर कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण, सबसे पहले चीन में किया गया था। परीक्षण के सकारात्मक नतीजे आने के बाद, इसका विस्तार किया गया। दुनिया के कई अन्य देश अब अपने-अपने यहां इस थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। चीन के अलावा ईरान, अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की आदि देश भी इस थेरेपी पर विश्वास कर रहे हैं। जिन देशों ने कान्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण नहीं किया है, वे भी अब अपने यहां इसका परीक्षण करने की सोच रहे हैं। हमारे देश की यदि बात करें तो ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ (आइसीएमआर) से मंजूरी मिलने के बाद, दिल्ली के मैक्स अस्पताल में इसका सबसे पहले ट्रायल किया गया। कोरोना से जंग जीत चुके एक डोनर से प्लाज्मा लेकर, डॉक्टरों की एक टीम ने कोरोना वायरस से गंभीर तौर पर संक्रमित मरीज जो कि आइसीयू में भर्ती था, उसे दिया गया। नतीजे सकारात्मक आने पर दिल्ली के ही ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ में भर्ती चीर मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल किया गया। जिनमें में से दो मरीजों की हालत में सुधार होना शुरू हो गया। प्लाज्मा थेरेपी के बेहतर नतीजे आने के बाद, दिल्ली सरकार उन लोगों से संपर्क कर रही है, जो कोरोना की लड़ाई जीत चुके हैं। सरकार उनसे अपील कर रही है कि वे अपना प्लाज्मा डोनेट करें। जिससे बाकी संक्रमित मरीजों का भी बेहतर तरीके से इलाज हो सके। दिल्ली में एलएनजेपी हॉस्पिटल के अलावा राजीव गांधी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भी प्लाज्मा डोनेट करने वालों के लिए मशीनें लगाई गई हैं और उनके ब्लड से प्लाज्मा निकाला जा रहा है।

कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी इस धारणा पर काम करती है, वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं, उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर, इन एंटीबॉडीज के जरिए उनके शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जाता है। जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर कोई संक्रमित व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित करता है, तो वह वायरस से होने वाली बीमारियों से उबर सकता है। इसी धारणा के तहत कोविड-19 संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्ति से लिए गए रक्त का प्लाज्मा, बीमार व्यक्ति पर चढ़ाया जाता है। लेकिन इस थेरेपी का इस्तेमाल करते वक्त कुछ सावधानियां और एहतियात भी जरूरी हैं। मसलन किसी मरीज के शरीर से प्लाज्मा (एंटीबॉडीज) उसके ठीक होने के 14 दिन बाद ही लिया जा सकता है और उस रोगी का कोरोना टेस्ट एक बार नहीं, बल्कि दो बार किया जाएगा। इतना ही नहीं ठीक हो चुके मरीज का एलिजा टेस्ट भी किया जाएगा। ताकि यह पता चल सके कि उसके शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा कितनी है। इसके अलावा प्लाज्मा देने वाले व्यक्ति की पूरी जांच की जाती है कि कहीं उसे कोई और बीमारी तो नहीं है।

बहरहाल इस तकनीक में ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से खून निकाला जाता है। इस विधि में खून से सिर्फ प्लाज्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर, बाकी खून को फिर से उस डोनर के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। एक व्यक्ति के खून से 800 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जा सकता है। वहीं कोरोना से बीमार मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज डालने के लिए लगभग 200 मिलीलीटर तक प्लाज्मा चढ़ाया जा सकता है। इस तरह कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति का प्लाज्मा, चार लोगों के इलाज में मददगार साबित हो सकता है।

एक बात और, प्लाज्मा सभी रोगियों को देने की जरूरत नहीं हैं। जिन रोगियों की तबीयत ज्यादा खराब होती है या वे जो ज्यादा गंभीर हैं, उन्हीं पर कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जाए, तो बेहतर। जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है, तो पहली स्टेज में वायरस शरीर में जाता है। दूसरी स्टेज में यह फेफड़ों तक पहुंचता है और तीसरे स्टेज में शरीर इससे लड़ने (एंटीबॉडी ही वायरस से लड़ाई करता है) और इसे मारने की कोशिश करता है, जो सबसे खतरनाक स्टेज होती है। यहां शरीर के अंग लंग्स आदि खराब हो जाते हैं। प्लाज्मा थेरेपी से इलाज करने के लिए सबसे सही वक्त दूसरी स्टेज होती है। क्योंकि पहली स्टेज में इसे देने का कोई फायदा नहीं और तीसरी में यह कारगर नहीं रहेगा। कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी मरीज को तीसरी स्टेज तक जाने से रोकती है। और ज्यादातर मामलों में मरीज ठीक भी हो जाते हैं।

गंभीर बीमारियों से बेहतर तरीके से निपटने और उसका इलाज करने के लिए प्लाज्मा थेरेपी, कोई नई थेरेपी नहीं है, बल्कि इस थेरेपी से पहले भी इलाज होता रहा है। आज से 120 साल पहले जर्मन वैज्ञानिक एमिल वान बेहरिंग ने टेटनस और डिप्थीरिया का इलाज प्लाज्मा पद्धति से सफलतापूर्वक किया और प्लाज़्मा के सक्रिय पदार्थ का नाम ‘ऐंटीबाडी’ दिया। तब से वायरस से संबंधित कई गंभीर बीमारियों का इस थेरेपी से इलाज किया जा चुका है। साल 2002 में ‘सार्स’ नाम के वायरस ने कोरोना वायरस की तरह ही कई देशों में तबाही मचाई थी। इस वायरस के खात्मे के लिए प्लाज्मा थेरेपी का ही इस्तेमाल किया गया था। सार्स के बाद साल 2009 में खतरनाक ‘एच-1एन-1’ इंफेक्शन को रोकने के लिए भी प्लाज्मा थेरेपी से इलाज किया गया था, जिसमें काफी हद तक कामयाबी भी मिली थी। इसी तरह साल 2014 में इबोला जैसे खतरनाक वायरस को रोकने के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया। उस वक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इबोला के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल करने की इजाजत दी थी। साल 2015 में मर्स और उसके बाद कोरोना वायरस कोविड-19 से मिलते-जुलते ‘एमईआरएस’ और ‘एसएआरएस’ के इलाज में भी प्लाज्मा थेरेपी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है।

प्लाज्मा थैरेपी कोई ज्यादा मुश्किल भी नहीं। जो मरीज अपनी प्रतिरोधी क्षमता से खुद ठीक हो गए हैं, बस उनके रक्त प्लाज्मा को गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों को देने से उनके स्वास्थ्य में सुधार होना शुरू हो जाता है। कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी की इतनी कामयाबियों के बाद भी, कोरोना वायरस कोविड-19 से निपटने या इस बीमारी के इलाज के लिए यह थेरेपी आखिरी समाधान या सभी मरीजों पर कारगर नहीं है। लेकिन जबतक कोई वैक्सीन नहीं बन जाती और उसका सफलतापूर्वक परीक्षण नहीं हो जाता, तब तक मौत के ऐन मुहाने पर खड़े मरीजों के ऊपर, कॉन्वालेसंट प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल करने में क्या हर्ज है?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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