Home Sliderखबरेदेशनई दिल्लीराज्य

उमर अब्दुल्ला की बहन सारा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को भेजा नोटिस

नई दिल्‍ली। सुप्रीम कोर्ट ने सारा अब्दुल्ला पायलट की उस याचिका पर सुनवाई पर सुनवाई की है, जिसमें उन्होंने अपने भाई एवं नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिए जाने को चुनौती दी थी। इस पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जवाब मांगा।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया है और मामले में दो मार्च तक जवाब देने के लिए कहा है। इससे पहले पायलट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से मामले को शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध करने की अपील की थी। पीठ ने अनुरोध पर सहमति जताई थी और मामले में सुनवाई के लिए 14 फरवरी की तारीख तय की थी।

सारा ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा कानून, 1978 के तहत अपने भाई को हिरासत में लिए जाने को चुनौती देते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिका में हिरासत के आदेश को गैरकानूनी बताया गया और कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था के लिए उनके खतरा होने का कोई सवाल नहीं उठता।

याचिका में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लेने संबंधी पांच फरवरी का आदेश निरस्त करने के साथ ही उन्हें अदालत में पेश किए जाने का अनुरोध किया गया। पायलट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत अधिकारियों द्वारा नेताओं समेत अन्य व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए शक्तियों का इस्तेमाल करना ‘साफ तौर पर यह सुनिश्चित करने की कार्रवाई है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान समाप्त करने का विरोध दब जाए।’

उनकी याचिका में कहा गया कि सत्ता का उपयोग अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के समूचे नेतृत्व के साथ साथ अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को कैद करने के लिए किया गया। इन नेताओं ने कई वर्षों तक राज्य एवं केन्द्र में सेवाएं दी हैं और जरूरत पड़ने पर भारत का साथ दिया है।

याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में नजरबंद कर दिया गया था। बाद में पता चला कि इस गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 107 लागू की गई। इसमें कहा गया, ‘संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का गंभीर उल्लंघन किया गया। हिरासत के इसी प्रकार के आदेश प्रतिवादियों (केंद्र शासित प्रदेश जम्मू -कश्मीर के अधिकारी) ने पिछले सात महीनों में अन्य बंदियों के साथ पूरी तरह सोचे-समझे तरीके से लागू किए, जो दिखाता है कि सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का मुंह बंद करने की लगातार कोशिश जारी है।’

याचिका में कहा है कि ऐसा व्यक्ति जो पहले ही छह महीने से नजरबंद हो, उसे नजरबंद करने के लिए कोई नयी सामग्री नहीं हो सकती और हिरासत के आदेश में बताई गईं वजह के लिए पर्याप्त सामग्री और ऐसे विवरण का अभाव है जो इस तरह के आदेश के लिए जरूरी है।

याचिका में कहा गया कि अब्दुल्ला को वे सामग्रियां भी नहीं उपलब्ध कराईं गईं जिनके आधार पर उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया गया और इन सामग्रियों की आपूर्ति नहीं किया जाना हिरासत को बेबुनियाद बताता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

इसमें कहा गया कि अपने राजनीतिक करियर के दौरान उन्होंने कभी भी अशोभनीय आचरण नहीं किया। उमर अब्दुल्ला को इस कानून के तहत नजरबंद किए जाने के कारणों में दावा किया गया है कि राज्य के पुनर्गठन की पूर्व संध्या पर उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों और अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने के फैसले के खिलाफ आम जनता को भड़काने का प्रयास किया।

Tags

Related Articles

Back to top button
Close