उत्तर प्रदेशखबरेराज्य

भारत के लिए अभिशाप हैं अमेरिकन गाजर घास , मंडराया खतरा

हमीरपुर, 16 अगस्त : यूपी के बुन्देलखण्ड सहित पूरे भारत में जहां झमाझम बारिश से भू-गर्भ जलस्तर बढ़ा है वहीं खेतों व खुले मैदानों पर बड़े पैमाने पर पारथ्रेनियम हिस्टोरेसफोरस (गाजर घास) लहराने से आम लोगों के स्वास्थ्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इस पारथ्रेनियम के पराग कण से ब्रान्कल अस्थमा, एलर्जी व श्वास सम्बन्धी अनेक रोगों ने पांव पसार लिया है।

गेहूं के साथ पारथ्रेनियम के बीज भी भारत को सौगात के रूप में मिल गए 

गौरतलब है कि वर्ष 1960 के दशक में भारत में खाद्यान्न के लाले पड़े गये थे तब तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका से मदद मांगी थी। अमेरिका ने भारत को लाखों टन गेहूं देने की डील की थी। भारत में खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के लिये अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं का आयात तो हुआ मगर गेहूं के साथ पारथ्रेनियम के बीज भी भारत को सौगात के रूप में मिल गये कि जिसका भारत आज भी खामियाजा भुगत रहा है।

बताया जाता है कि गुजरे पांच दशकों में भारत का कोई भी ऐसा क्षेत्र अछूता नहीं रहा जहां इस पारथ्रेनियम ने पांव न पसार लिये हो। इस गाजर घास के फैलाव को रोकने के लिये कृषि वैज्ञानिकों ने तमाम उपाय किये, मगर सारे उपाय हवा में उड़ गये। आज भी कृषि वैज्ञानिकों के लिये पारथ्रेनियम शोध का विषय बना हुआ है। इस गाजर घास से हमीरपुर ही नहीं पूरे प्रदेश और भारत में श्वास सम्बन्धी रोगों की गिरफ्त में लोग आ चुके हैं। 

स्वास्थ्य विभाग के डाक्टर भी पारथ्रेनियम से होने वाली श्वास सम्बन्धी बीमारियों को न सिर्फ खतरनाक मानते हैं बल्कि पारथ्रेनियम के पौधों से दूर रहने की सलाह भी देते हैं। बताया जाता है कि यह ऐसे पौधे हैं जिन्हें मवेशी भी खाने से परहेज करते हैं। बारिश के दौरान तो बुन्देलखण्ड के हमीरपुर जिले में हर जगह यह पौधे लहरा गये हैं।

विश्व प्रकृति निधि भारत की बुन्देलखण्ड इकाई में वर्ष 1990 के दशक में सेवायें दे चुके जलीस खान का कहना है कि जहां भी इस प्रकार के पौधे दिखायी दें तो उन्हें उखाड़कर जला देना चाहिये। हालांकि स्थायी तौर पर यह समस्या का हल नहीं है लेकिन अस्थायी तौर पर यह प्रयास तो किये ही जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हमीरपुर, जालौन, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर, कानपुर नगर, कानपुर देहात, फतेहपुर, उन्नाव, इटावा, इलाहाबाद, रायबरेली, हरदोई, बाराबंकी और प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा मध्यप्रदेश का हर भू-भाग इन दिनों खतरनाक पारथ्रेनियम पौधों से लहरा रहा है। उनका मानना है कि पारथ्रेनियम पौधे से आच्छादित इलाकों में जाने से पहले लोगों को अपने मुंह व नाक में रुमाल लगा लेना चाहिए क्योंकि इसके राग कण उड़कर सीधे नाक के रास्ते फेफड़े में पहुंच जाते हैं। 

कृषि वैज्ञानिक डा. एस.पी.सोनकर ने गाजर घास के दुष्प्रभाव को लेकर चिंता जताते हुये माना कि यह मनुष्यों व जानवरों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा है। और तो और जैव विविधता एवं पर्यावरण के लिये भी यह गाजर घास दुश्मन है जो धीरे-धीरे दुष्प्रभाव छोड़ रही है। उन्होंने बताया कि पार्कों, खेेतों, रेलवे लाइनों के किनारे, मार्गों व सामुदायिक तथा परती भूमि को भी इस खतरनाक घास ने अपनी चपेट में ले लिया है जिससे अब फसलों को इसके दुष्प्रभाव से झटका लग रहा है। 

डा. सोनकर ने कहा कि जाइक्रोडर्मा बाइक्रोरायट्रा नामक रसायन से ही इस खतरनाक घास से निजात पायी जा सकती है। यह रसायन खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय महाराजपुर जबलपुर (म.प्र.) से मंगाया जा सकता है। 
कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि गाजर घास को कांग्रेस घास भी कहा जाता है जिसके एक बीज से डेढ़ से दो हजार पौधे उग आते है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के परामर्शदाता संजीव कुमार की माने तो आम लोगों के स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बनी गाजर घास को फूल आने से पहले सामूहिक रूप से उखाड़कर जमीन में दफन कर दिया जाये तो काफी हद तक निजात पा सकता है। उनका कहना है कि इस घास के दुष्प्रभाव से किसानों की फसलों को काफी नुकसान हो रहा है। 

वरिष्ठ फिजीशियन डा. वीके श्रीवास्तव, एवं शिशु, बालरोग विशेषज्ञ डा. आरएस यादव की माने तो गाजर घास के कारण बड़ी संख्या में लोग एलर्जी, त्वचा, अस्थमा तथा अन्य श्वास सम्बन्धी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। उनके यहां इस तरह प्रतिदिन दस से पन्द्रह मरीज इलाज कराने आते हैं। होम्योपैथिक जिला अस्पताल के डा. अस्थाना का कहना है कि उनके चिकित्सालय में ही बीते कुछ साल के भीतर कम से कम तीन हजार मरीज गाजर घास के दुष्प्रभाव से इलाज कराने आये और इनमें त्वचा सम्बन्धी रोगियों की भी बड़ी संख्या शामिल है। 

Related Articles

Back to top button
Close