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यह मराठाकालीन शिवालय पातालेश्वर के नाम से है विख्यात

हमीरपुर, 14 फरवरी (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिला मुख्यालय में यमुना नदी किनारे बने पातालेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग मराठा कालीन है। पूरे इलाके में प्रसिद्ध यह मंदिर यमुना और बेतवा नदियों की भीषण बाढ़ में पूरी तरह से डूब गया था, बावजूद मंदिर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। कई दिनों तक बाढ़ के पानी में मंदिर के डूबे रहने के बाद दीवालों का प्लास्टर तक भी उखड़ा। इस तरह के पांच मंदिर है जहां महाशिवरात्रि के दिन कोई भी पांचों मंदिर के दर्शन नहीं कर सकता है। मंदिर की लौकिक शक्ति से प्रभावित होकर स्थानीय लोगों ने मंदिर और उससे लगे क्षेत्र को विकास के नये आयाम दिये हैं।

यमुना और बेतवा नदी के बीच बसे इस हमीरपुर नगर में पातालेश्वर मंदिर का निर्माण मराठा काल में हुआ था। इसका गुंबद और मठ इतना मजबूत है कि दो साल पहले 20 फीट दूर जमीन पर गिरी आकाशीय बिजली की धमक से कोई असर नहीं पड़ा था जबकि आसपास के रिहायशी मकानों की दीवाले दरक गयी थी। पांच सौ मीटर की दूरी में रिहायशी घरों में लगे बिजली के उपकरण और महंगे सामान तक आकाशीय बिजली की तेज आवाज में फुंक गये थे लेकिन यह मंदिर सही सलामत रहा। इस मंदिर के अंदर शिवलिंग पताली बतायी जा रही है जिसके दर्शन करने के लिये दूर-दूर से लोग आते है। अंग्रेजी हुकूमत के समय में इस मंदिर अंग्रेज अफसर दर्शन करने आते थे। 

यहां के बुजुर्ग सतीश तिवारी ने बताया कि वर्ष 1978 व 1983 में यमुना बेतवा नदी में भीषण बाढ़ आयी थी तब यमुना नदी किनारे बसा पातालेश्वर मंदिर डूब गया था। कई दिनों तक बाढ़ के पानी में मंदिर डूबा रहा लेकिन मंदिर की दीवाले टस से मस तक नहीं हुयी थी। 1983 के बाद भी कई बार यमुना नदी उफनायी तो इस मंदिर में बाढ़ का पानी घुस गया था। पुजारी बाबा को भी ऊंचाई वाले स्थान पर भागकर शरण लेनी पड़ी थी। यहां के बुजुर्ग बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि हमीरपुर मुख्यालय से मात्र 10 किमी की परिधि में पतालेश्वर मंदिर की तरह यमुना बेतवा नदी के संगम तट पर संगमेश्वर, सिमनौड़ी में मनेश्वर बाबा, यमुना नदी पार सजेती में हाइवे किनारे बिहारेश्वर बाबा, चंदुलीतीर गांव के पास यमुना नदी किनारे शंकर जी का मंदिर बना है जो एतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इन पांचों मंदिर में शिव लिंग की स्थापना किसी ने नहीं करायी है। 

कालांतर में स्वप्न में जमीन के अंदर शिवलिंग होने के अहसास होते ही लोगों ने जमीन के अंदर कई मीटर तक खुदाई करायी थी तब पांचों स्थानों पर भव्य शिवलिंग मिले थे। इसीलिये इन शिवलिंगों को पताली कहा जाता है। उनका कहना है कि महाशिवरात्रि व सावन के महीने में कोई भी व्यक्ति एक ही दिन में इन सभी शिवालयों में शिवलिंग के दर्शन नहीं कर सकता है। ऐसी मान्यता है जो आज भी सच है। कई लोगों ने इस मान्यता को न मानते हुये पांचों मंदिरों तक पहुंचने की कोशिश की थी लेकिन दो तीन मंदिरों के दर्शन करने के बाद या तो उनके वाहन खराब हो जाते थे या फिर और कोई बाधायें सामने आ जाती थी। 

इतिहासकार डा.भवानीदीन का कहना है कि यह सभी मंदिर मराठा काल में बनवाये गये थे। यमुना नदी के किनारे होने के कारण इन शिवालयों में मीलों दूर से लोग दर्शन करने आते हैं । इस मंदिर में कोई भी पुजारी साल भर तक नहीं ठहर सकता है। शुरू में एक भगत बाबा नाम का पुजारी मंदिर में रहता था, जिसने मरते दम तक शिवलिंग की पूजा की थी। उसकी समाधि भी पातालेश्वर मंदिर के परिसर पर बनायी गयी। महाशिवरात्रि पर बुधवार को यहां कई धार्मिक अनुष्ठान आयोजित हो रहे है। भोर होते ही पातालेश्वर मंदिर में पूजन के लिये लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। जिलाधिकारी आरपी पाण्डेय सहित कई अधिकारियों ने भी शिवलिंग का जलाभिषेक किया। 

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