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गर्भ में पता चल जाएगा बच्चों की जेनेटिक बीमारी के बारे में

नई दिल्ली (ईएमएस)। बच्चों में होने वाली जेनेटिक गड़बड़ी का आसानी से पता नहीं चल पाता। लेकिन अब ऐसा होना संभव हो सकेगा। दरअसल मेडजेनोम नामक शोध कंपनी ने गर्भावस्था में सटीक जांच के लिए नॉन-इनवैसिव प्रीनैटल टेस्टिंग (एनआईपीटी) पेश किया है जो गर्भस्थ शिशु के जन्म से काफी पहले ही होने वाली असामान्य बीमारियों के बारे में बताएगा।

ये टेस्ट डाउंस सिंड्रोम जैसी असामान्य क्रोमोसोम संबंधी गड़बड़ियों का पता लगाने का प्रभावी,सटीक और सुरक्षित तरीका साबित होगा। कार्यक्रम निदेशक प्रिया कदम ने इस जांच प्रक्रिया के महत्व के बारे में बताया कि ये नुकसानरहित हैं। इतना ही नहीं,ये एनआईपीटी किसी खास उम्र के लोगों के लिए नहीं है और इस बच्चे की सेहत सुनिश्चित करने के लिए सभी गर्भवती महिलाओं को मुहैया कराया जा सकता है। इसके अलावा इस गर्भावस्था के 9वें सप्ताह में ही कराया जा सकता है। एनआईपीटी टेस्ट देश की जेनेटिक गड़बड़ी के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कंपनी ने कहा कि मां के हाथ से लिए गए खून के मामूली नमूने से एनआईपीटी स्क्रीनिंग टेस्ट किया जा सकेगा। एनआईपीटी टेस्ट में भ्रूण के कोशिका मुक्त डीएनए का विश्लेषण और क्रोमोसोम संबंधी दिक्कतों की जांच की जाती है। यह परीक्षण पूरी तरह सुरक्षित है और इसमें कोई नुकसान नहीं होता है। ये टेस्ट 99 फीसदी से अधिक स्तर तक बीमारी का पता लगाने तक सटीक है।एनआईपीटी को जहां भी लागू किया गया वहां नुकसानदायक प्रक्रियाओं में 50-70 फीसदी तक की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।

इस रिसर्च में एनआईपीटी स्क्रीनिंग 516 गर्भवतियों पर की गई जिनमें पहली और दूसरी तिमाही में डबल मार्कर, क्वॉड्रपल मार्कर टेस्ट में अत्यधिक जोखिम की जांच की गई। जांच के परीक्षणों के लिए 98 फीसदी से अधिक मामलों में कम जोखिम और 2 फीसदी में अधिक जोखिम की जानकारी मिली। फिलहाल बेंगलुरू स्थित अपनी सीएपी प्रमाणित प्रयोगशाला में विभिन्न प्रमुख बीमारियों के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों की पेशकश कर रही है जिनमें एक्जोम सीक्वेंसिंग, लिक्विड बायोप्सी और करियर स्क्रीनिंग शामिल है।

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