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गेहूं को ब्लास्ट रोग से जल्द मिलेगी निजात

लखनऊ, 03 अगस्त : गेहूं की फसल अच्छी होने पर भी उन्हें रोगों की मार खराब कर देती है। इससे निजात दिलाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च (एसीआईएआर) ने चार वर्षीय एक रिसर्च प्रोजेक्ट को फंड किया है जो गेहूं की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी किस्मों को विकसित कर रहा है। अगली पैदावार आने तक यह सही ढंग से काम करने लगेगा।

व्हीट ब्लास्ट का रोगाणु हवा के कणों के साथ मिलकर गेहूं को संक्रमित करता है। इस समय पूरे दक्षिणी एशिया में इसका प्रकोप फैला हुआ है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां चावल-गेहूं की फसल बहुतायत होती है और करीब 1.3 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती होती है। 

यह ब्लास्ट रोग ’मैग्नापोर्थे ओरिजी’ नामक कवक से होता है। व्हीट ब्लास्ट का पता सबसे पहले 1985 में ब्राजील और लातिन अमेरिका के कुछ देशों में चला था, जब 30 लाख हेक्टेयर में फैली फसल बर्बाद हो गई थी। सीआईएमएमवाईटी में गेहूं रोग विज्ञान के हेड पवन सिंह ने बताया कि इस रिसर्च प्रोजेक्ट का उद्देश्य प्रतिरोधकता के स्रोत की पहचान करना, प्रतिरोध की जींस को चिन्हित करना और प्रतिरोधक के निर्माण डीएनए मेकर्स को विकसित करने के साथ स्थानीय रूप से अनुकूलित गेहूं के किस्मों को किसानों के अनुकूल बनाना है।

उन्होंने बताया कि भारत में रहने वाला हरेक शख्स हर महीने औसतन 4 किलोग्राम गेहूं खाता है। इस बीमारी की मार को इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन खेतों में व्हीट ब्लास्ट पहुंच जाती है, वहां उपज करीब 75 फीसदी घट जाती है। इतना ही नहीं वहां बरसों तक दोबारा फसल नहीं हो पाती है।

इस प्रोजेक्ट को मेक्सिको आधारित इंटरनेशनल मेज़ एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर (सीआईएमएमवाईटी) लीड कर रहा है जिसमें दुनियाभर के करीब 23 संस्थानों के रिसर्चर मिलकर गेहूं की उच्च उपज वाली वैरायटी को विकसित करेंगे। 

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