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फिल्म समीक्षा- शेफ : पिता-पुत्र के रिश्तों की सौगात

रेटिंग 2.5 स्टार 

मुंबई, 06 अक्तूबर: राजा कृष्णा मेमन के निर्देशन में बनी सैफ अली खान की फिल्म शैफ इसी नाम से 2014 में आई हालीवुड की फिल्म का घोषित रीमेक है। मूल रुप से फिल्म पिता-पुत्र के रिश्तों पर आधारित है। फिल्म का विषय गंभीर है, जिसे गंभीर ही बनाए रखा गया। 

कहानी दिल्ली से शुरु होती है, जहां रोशन कालरा (सैफ अली खान) रहता है। उसे खाना बनाने का शौक है, लेकिन रोशन के पिता को अपने बेटे का ये शौक मंजूर नहीं। रोशन भागकर न्यूयार्क पंहुच जाता है और वहां कुकिंग का काम शुरु कर देता है और एक बड़े होटल में शैफ बन जाता है। रोशन की शादी राधा (पद्मप्रिया राधारमन) से होती है, जिनसे उनको एक बेटा अरमान (स्वर कांबले) होता है, लेकिन जल्दी ही पति-पत्नी में तलाक हो जाता है और राधा अपने बेटे के साथ केरल में अपने घर लौट आती है। अमेरिका में रोशन के साथ कुछ ऐसा होता है कि उसे भी भारत लौटना पड़ता है और यहां आकर रोशन को अपने बेटे के साथ कुछ वक्त बिताने का मौका मिलता है। बेटे को खुश करने के लिए रोशन यहां भी कुकिंग का काम शुरु करता है और शैफ बन जाता है। यहां से कहानी एक बार फिर ऐसा मोड़ लेती है कि रोशन की जिंदगी की दशा और दिशा बदलती चली जाती है। 

फिल्म का विषय अच्छा है। स्क्रीनप्ले अच्छा लिखा गया है। फिल्म में रफ्तार है और जिज्ञासा बनी रहती है। राजा कृष्णा मेमन ने विषय अच्छा चुना, लेकिन कुछ कमजोरियां बनी रहीं। कहानी में कई जगह दोहराव होते हैं और खिंचने की नौबत आ जाती है। क्लाइमेक्स का पहले ही अंदाज हो जाता है। दूसरे हाफ के मुकाबले पहला हाफ स्लो रहा है। तारीफ करनी होगी सैफ अली की, जिन्होंने जी-जान लगाकर अपने किरदार को निभाया है। पिता की भूमिका में सैफ प्रभावशाली हैं, तो उनके बेटे के रोल में स्वर कांबले ने भी उनका साथ दिया है। राधा के रोल में पद्मप्रिया राधारमन असर छोड़ती हैं। मिलिंद सोमन और चंदन राय सान्याल के किरदार भी दिलचस्प हैं और उनकी अदाकारी भी दिलचस्प है। फिल्म की एक बड़ी कमजोरी ये है कि संगीत कमजोर है। प्रोडक्शन वेल्यू औसत हैं। न्यूयार्क से लेकर केरल की लोकेशन शानदार हैं। 

फिल्म का कंटेंट अच्छा है, लेकिन ये फिल्म महानगरों के मल्टीप्लेक्स वाले दर्शकों के लिए ही है। आम मसाला फिल्मों के शौकीन ऐसी फिल्मों को समझ नहीं पाते। सैफ के चाहने वालों को ये फिल्म अच्छी लगेगी। एक बार देखी जा सकती है। बाक्स आफिस पर औसत सफलता की उम्मीद की जा सकती है।  (हिंस) ।

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