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शीर्ष अदालत में आधार पर सुनवाई कल, सरकार बताएगी क्यों जरूरी है आधार

नई दिल्ली (ईएमएस)। आधार की वैधानिकता पर देश के सर्वोच्च न्यायालय में चल रही बहस के बीच बुधवार को केंद्र सरकार आधार कार्ड की वैधता पर अपना पक्ष रखेगी। आधार कार्ड को अनिवार्य करने को लेकर बीते दो माह से विभिन्न पक्षों की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी है। याचिकाओं में बायोमीट्रिक डेटा एकत्र करने के चलते निजता का उल्लंघन होने को लेकर चिंता जताई जा रही है। 17 जनवरी से चल रही सुनवाई के दौरान 19 दिन हुई बहस में वरिष्ठ अधवक्ता श्याम दीवान, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, गोपाल सुब्रमण्यन, के.वी. विश्वनाथन, आनंद ग्रोवर, मीनाक्षी अरोड़ा, सजन पूवैय्या और सीयू सिंह ने आधार को लेकर अपने तर्क रखे हैं। आधार का विरोध करने वाले पक्ष के मुख्य अधिवक्ता श्याम दीवान ने सात दिनों तक बहस कर सुप्रीम कोर्ट को यह बताने का प्रयास किया कि यह किस तरह से सर्विलांस डिवाइस की तरह से काम करता है। उन्होंने कहा कि इसका सरकार की ओर से बेजा इस्तेमाल किया जा सकता है।

दीवान के तर्क को मजबूती देते हुए सिब्बल ने कहा था, ‘1947 के बाद से यह अब तक का सबसे महत्वपूर्ण मामला है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जो तय करेगा, वह इस पीढ़ी के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। यह भविष्य में नागरिकों की निजता को निर्धारित करेगा। सुप्रीम कोर्ट का आधार पर फैसला यह भी तय करेगा कि मूलभूत अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए या नहीं की जानी चाहिए। यही नहीं, पूर्ववित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा आधार विधेयक, 2016 को मनी बिल के तौर पर पारित किया गया है। इससे राज्यसभा इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकती और न ही राष्ट्रपति इस पर आपत्ति जताते हुए दोबारा विचार करने के लिए लौटा सकते हैं।

इसी मसले को एक नया मोड़ देते हुए मंगलवार को पूवैय्या ने कहा बायोमीट्रिक डेटा कलेक्शन में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जिस तरह से इसे स्टोर किया जा रहा है और उसे शेयर किया जा रहा है, वह नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। उन्होंने 25 साल पुराने जर्मनी की एक अदालत के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सेंसस ऐक्ट, 1983 को इसलिए खारिज कर दिया गया क्योंकि उसमें निजी डेटा को स्थानीय प्रशासन के साथ शेयर करने का प्रावधान था।

जर्मनी की अदालत ने कहा था कि हर नागरिक के पास सूचना को साझा करने या न करने का अधिकार है, जिसे खारिज नहीं किया जा सकता। पूवैय्या ने सुझाव दिया कि आधार कार्ड में भी क्रेडिट और डेबिट कार्ड की तरह एक चिप लगाई जा सकती है। इससे आम लोगों के पास यह अधिकार होगा कि वे अपनी जानकारी साझा करने के लिए उस कार्ड को स्वाइप करें या न करें।

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