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युवा मन का भटकाव

– सुरेन्द्र किशोरी

युवा वर्ग आईना होता है, जिसमें देश का भूत, वर्तमान और भविष्य साफ-साफ दिखाई पड़ता है। उनमें हर चुनौती को स्वीकारने का दम होता है। आज भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि हमारे देश में असंभव को संभव में बदलने वाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। आंखों में उम्मीदों के सपने, उमंग और नयी उड़ानें भरता मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला युवा, देश के भविष्य को तय करता है। लेकिन बदलते दौर में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि युवाशक्ति वरदान है या चुनौती? महत्वपूर्ण इसलिए क्योंकि युवा अपनी शक्ति को सही दिशा में उपयोग नहीं करते तो इनका जरा भी भटकाव इनके भविष्य के साथ-साथ देश के भविष्य को भी दिशाहीन कर सकता है।

संचार क्रांति के प्रसार से जानकारियों की उपलब्धता और भी आसान हुई है। लेकिन यही माध्यम युवाओं में विकृति और भटकाव भी लाया है। आज से दो-तीन दशक पहले हर साधन सुविधाओं से दूर रहकर भी आम युवा धैर्यपूर्वक मेहनत कर अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करते थे और सफलता भी पाते थे। आज सुविधाओं से लैस होने के बावजूद अधिकांश युवा सूचना साधनों का दुरुपयोग कर लक्ष्यविहीन हो रहा है। युवाओं की ऊर्जा और जवानी को दिशा देने की जरूरत है। राजनीति में युवाओं की रुचि बढ़ी है और इनकी भागीदारी भी काफी महत्वपूर्ण है। शिक्षित युवा, लोगों के अधिकार के लिए कार्य कर बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। लेकिन अधिकतर युवा आज एक राजनीतिक साजिश के शिकार हैं, जहां उन्हें धर्म, लिंग, जाति, पार्टी के नाम पर बहलाया जा रहा है और आपस में लड़ाया जा रहा। इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग करने वाली युवा पीढ़ी धीरज खो रही है। ये अपनी पुरानी पीढ़ी के संस्कारों को भूल रही है। सोशल साइट्स पर बड़े-बुजुर्गों से सीख लेने के बजाय उनसे उलझना, जातिवादी टिप्पणी कर सुर्खियां बटोरना, महिलाओं के लिए अभद्र शब्दों का प्रयोग कर गौरवान्वित महसूस करना आम बात हो गई है। यह बहुत चिंतनीय है कि युवा पीढ़ी धैर्य, संस्कार, मर्यादा, महिलाओं का सम्मान भूलकर अपनी समय और शक्ति का दुरुपयोग कर रही है।

सामाजिक कार्यकर्ता रजनीकांत पाठक कहते हैं कि बढ़ता तनाव, बेरोजगारी और आधुनिकता का चलन, युवाओं की उम्मीदों और सपनों को मिटा रहा है। युवाओं को लड़ना है तो शिक्षा, सुविधा और रोजगार के अधिकारों के लिए लड़ें। विरोध करना है तो राजनीतिक पार्टियों के गलत फैसलों का विरोध करें। आवाज उठानी है तो दबे-कुचले वर्ग और महिलाओं के सम्मान में आवाज उठाएं। युवाओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि बदलाव लाने की जिम्मेदारी आप पर है इसलिए आपको धैर्य नहीं खोना है। बड़े बदलाव में कई पीढ़ियां गुजर जाती हैं और उम्र के एक पड़ाव में हर व्यक्ति की आने वाली पीढ़ी से ही उम्मीद होती है। युवा ही देश की दिशा को तय कर सकते हैं। युवा पीढ़ी समाज में फैली उन बुराईयों से बचे जो देश को कमजोर कर रही हैं, यकीनन देश और समाज का भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब आप अपनी ऊर्जा और जवानी खुद की तरक्की में लगाएंगे। आप बढ़ेंगे तो समाज बढ़ेगा, देश बढ़ेगा।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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