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पाकः आतंकी मोह बनेगा एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट का कारण

– डॉ. रमेश ठाकुर

पाकिस्तान का एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट होना अब तय है। टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग मसले पर विश्व को गुमराह करने वाला पाकिस्तान का एक और दांव उनके लिए मुसीबत बन गया है। कहते कि ‘गीदड़ अपनी मौत को खुद दावत देता है‘‘-ये कहावत पाकिस्तान पर मौजूदा वक्त में सटीक लागू होती है। बर्बाद होने की पटकथा खुद लिख दी है। अपने यहां के पालतू आतंकियों को बचाने के चक्कर में एफएटीएफ से ब्लैकलिस्ट होने के मुहाने पर भी पहुंच गया है लेकिन उनका आतंकी मोह कम नहीं हो रहा। विश्व द्वारा प्रदत्त वित्त सुविधाओं से बेदखली को लेकर उसने खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान को वैश्विक स्तर से मिलने वाली वित्तीय सहायताओं से कहीं ज्यादा अहम उनके लिए मुल्क में पनपने वाले आतंकी हैं। लंबे समय से पाकिस्तान और आतंकियों के बीच चोली-दामन जैसा साथ रहा है। आतंकियों के सहयोग के बिना उनकी हुकूमत का चलना कठिन होता है।

वर्षों पहले अंतरराष्ट्रीय पटल से प्रतिबंधित हुए हजारों आंतकियों को पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से माननीयों का दर्जा देकर अपने नापाक मंसूबों को जगजाहिर कर दिया है। ऐसा कर उसने वैश्विक वित्त नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाई है। इसके बाद शायद उसका एफएटीएफ की ‘डार्क ग्रे‘ सूची से बचना मुस्किल होगा? ‘डार्क ग्रे‘ सूची में पाकिस्तान छह माह पहले ही प्रवेश कर चुका था। पर, प्रतिबंध लगाने से पहले एफएटीएफ ने उसे सुधरने एक मौका दिया था जिसे भी गंवा दिया। इमरान खान का पैंतरा उल्टा पड़ा है। उन्होंने ये पैंतरा उस समय अपनाया जब वैश्विक एंटी मनी लाॅन्ड्रिंग संस्था एफएटीएफ दो माह बाद यानी आगामी जून में पाकिस्तान द्वारा आतंकियों के वित्तपोषण के विरुद्व उठाए कदमों की पड़ताल करने को है। उससे पहले ही पाकिस्तान ने अपना असली चेहरा दिखा दिया। आतंकियों के नाम निगरानी सूची से क्यों हटाए गए, इसका जवाब भी इमरान खान सरकार नहीं दे पा रही है।

गौरतलब है, फाइनेंशियल एक्शन टास्ट फोर्स यानी एफएटीएफ की ‘डार्क ग्रे‘ सूची से बेदखली से बचने के लिए पाकिस्तान ने चाल तो बड़ी खेली थी मगर पकड़ में आ गई। न्यूयाॅर्क की एलजोएक्स नियामक कंपनी ने ऑडिट के दौरान उसकी चालाकी को पकड़ लिया। पाकिस्तान ने यह खेल तब खेला जब पूरी दुनिया कोरोना संकट से कराह रही है। सोचा दुख की घड़ी में किसी का ध्यान नहीं जाएगा और मामला ज्यादा तूल भी नहीं पकड़ेगा। लेकिन उसकी नापाक चाल चारों ओर आग की भांति फैल गई। पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने गुपचुप तरीके से मुंबई हमले के मास्टरमाइंड व लश्कर आतंकी ऑपरेशन कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी समेत पौने दो हजार आतंकियों के नाम निगरानी सूची से हटाए दिए हैं।

पाकिस्तान बीते कुछ महीने से इसलिए बिलबिला रहा है कि उसका नाम एफएटीएफ की ‘डार्क ग्रे‘ किसी भी तरह से बचे। अगर नहीं बचा तो उसे वित्तीय सुविधाओं से महरूम होना पडे़गा। अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान के क्या हालात होंगे, इस बात को प्रधानमंत्री इमरान बखूबी समझते हैं। पर, निगरानी सूची से आतंकियों के नाम हटाने से पाकिस्तान और फंस गया है। बात अंतरराष्ट्रीय हो गई है, अमेरिका ने कड़ा विरोध जताते हुए उनके निर्णय को अंतराष्ट्रीय मानकों के विरुद्व बताया है। वैसे, उनका विरोध कई मायनों में इसलिए भी जायज है क्योंकि इस तरह के निर्णयों की त्वरित सूचना पहले एफएटीएफ को देनी होती है जो नहीं दी गई। उनके बिना बताए इस कदम से एफएटीएफ को भी बड़ा धक्का लगा है। संस्था के लोग गुस्से में हैं। इसलिए माना जा रहा है कि अब पाकिस्तान का ‘डार्क ग्रे‘ में जाना निश्चित है।

बता दें पाकिस्तान पर आरोप लगा था कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स से मिलने वाली वित्तीय सहायता को आतंकियों में आंवटित करता है। धन का दुरुपयोग किया जाता है। जबकि, एफएटीएफ से मिलने वाला धन जनकल्याण योजनाओं और जनसहयोग के लिए दिया जाता है। पाकिस्तान उस धन को आतंकियों में बांट देता था। पूरे मसले की जांच हुई, तो आरोप सही पाए गए। तभी एफएटीएफ ने उसके वैश्विक वित्तपोषण पर रोक लगाने का फैसला किया। रोक के बाद पाकिस्तान ने सफाई दी थी कि जिन आतंकियों को उनके द्वारा एफएटीएफ का पैसा दिया गया था, उसे वापस लिया जाएगा और भविष्य में कोई सहायता राशि आतंकियों को नहीं दी जाएगी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता उन्होंने लखवी जैसे दुर्दांत आतंकी को आतंकी सूची से ही हटा दिया। उसे सामान्य नागरिक की मान्यता प्रदान कर दी। जबकि अमेरिका ने लखवी पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। ये वही आतंकी हैं जिन्होंने सन् 2008 में मुंबई पर हमला करवाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। लेकिन पाक हुकूमत उसे दोषमुक्त कर आतंकी सूची से हटाने की हिमाकत कर रही है।

गौरततलब है, एफएटीएफ का हंटर चलने के बाद पाक सरकार किसी तरह खुद को आतंक रहित घोषित करना चाहती है। उनकी कोशिश है मुल्क में आतंकी रहें भी और किसी को पता भी न चले। पाकिस्तान में आज भी कई जगहों आतंकी कैंप सक्रिय हैं, आईएसआई की मौजूदगी में बकायदा आतंकियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। एफएटीएफ के मुताबिक पाकिस्तान में दो वर्ष पूर्व तब 7,600 आतंकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधिति थे, जिनमें कईंयों पर लाखों-करोड़ों का ईनाम भी घोषित था। वाॅल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक बीते डेढ़ साल में प्रतिबंधित आतंकियों की सूची मात्र 3,800 रह गई, आधे गायब हो गए। शायद इमरान खान के दिमाग में यही रहा हो, जितने कम आतंकी दर्शायाएंगे काम उतना ही आसान होगा। लेकिन उन्हें क्या पता था उनका पैंतरा उल्टा पड़ जाएगा।

सर्वविदित है पाक हुकूमत बिना आईएसआई और पालतू आतंकियों की राय के बिना कोई कदम नहीं उठाती। निगरानी सूची से लखवी जैसे खूंखार आंतकियों का नाम हटाना भी उसी का परिचायक है। आतंकियों का नाम हटाना अकेले इमरान खान का फैसला नहीं है, यह कईंयों का सामूहिक निर्णय है। लेकिन इससे वह एफएटीएफ की ‘डार्क ग्रे‘ से नहीं बच सकता। उसकी हरकतें अब पूरी तरह से एक्सपोज हो चुकी हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान सरकार का अपने यहां के हजारों की सख्या में पालतू आतंकियों को बचाने का मोह ही उनका एफएटीएफ से बेदखली और ब्लैकलिस्ट का कारण बनेगा। इस समस्या का जिम्मेदार खुद होगा। हालांकि इसमें भी वह भारत को ही दोषी देगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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