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पुण्यतिथि : चाचा से प्रभावित होकर गायक बने थे ‘मन्ना डे’

मन्ना डे उन गायकों में से थे जिनका शास्त्रीय संगीत में कोई सानी नहीं हो सकता। 24 अक्टूबर को संगीत की दुनिया के चमकते सूरज ‘मन्ना डे’ ने अपनी आखरी सांस ली थी। आज वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन अपने गीतों के जरिये वह सदैव अमर रहेंगे। मन्ना डे का जन्म गुलाम देश में 1 मई 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम प्रबोध चन्द्र डे था। मन्ना डे को सब प्यार से मन्ना दा भी कहते थे।

पढ़ाई पूरी करने के बाद मन्ना डे दुविधा में थे कि वह आगे क्या करे। मन्ना डे की रुचि संगीत में थी, जबकि उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे। अंततः वह अपने चाचा कृष्ण चन्द्र डे से प्रभावित होकर तय किया कि वे गायक ही बनेंगे। उनके चाचा कृष्ण चन्द्र डे एक संगीतकार थे। मन्ना डे ने उनसे संगीत की शिक्षा ली और 1942 में हिंदी फिल्म ‘तमन्ना’ के गाने ‘ऊपर गगन विशाल’ से बतौर सिंगर अपने करियर की शुरुआत की। इस फिल्म में उन्हें सुरैया के साथ गाना गाने का मौका मिला।

इसके बाद मन्ना डे ने एक से बढ़कर एक कई गीत गायें, जिसमें ‘लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे’, “पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई!’, ‘सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं?’, ‘जिन्दगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये हंसाये कभी ये रुलाये!’, ‘ये रात भीगी भीगी, ये मस्त नज़ारे!’, ‘तुझे सूरज कहूं या चन्दा, तुझे दीप कहूं या तारा!’ या ‘तू प्यार का सागर है, तेरी इक बूंद के प्यासे हम’ और ‘आयो कहांं से घनश्याम?’ जैसे गीत ही नहीं, उनके गाये ‘एक चतुर नार, बड़ी होशियार!’, ‘यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिन्दगी!’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, ‘ऐ मेरी जोहरा जबीं!’ और ‘ऐ मेरे प्यारे वतन!’ शामिल हैं। उनके गाने आज भी लोगों के जुबान पर चढ़े हुए हैं।

मन्ना डे ने 18 दिसम्बर 1953 को केरल की सुलोचना कुमारन से शादी कर ली। मन्ना डे को 1969 में फिल्म मेरे हुजूर के लिये सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक, 1971 में बंगला फिल्म निशि पदमा और 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायन के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

भारत सरकार ने मन्ना डे को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिये 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्म भूषण और 2007 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया था। मन्ना डे ने हिंदी, बंगाली के अलावा और भी कई भाषाओ में गीत गायें। उन्होंने 1942 से 2013 तक लगभग 3000 से अधिक गानों को अपनी आवाज दी।

मन्ना डे ने बांग्ला भाषा में अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जो बांग्ला के अलावा अन्य भाषाओं में भी छपी। 24 अक्टूबर 2013 को मन्ना डे का निधन हो गया।

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