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अयोध्या समाधान चाहती है, विवाद नहीं.

अयोध्या का राम मन्दिर विवाद मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार इसके चर्चाओं में आने की वजह सियासी नहीं होकर सर्वोच्च न्यायालय से जुड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस.केहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने जिस तरह से इस मामले को बेहद संवेदनशील बताते हुए सभी पक्षकारों से मिल बैठकर समाधान निकालने की सलाह दी है, उससे एक बार फिर पूरे देश में बहस छिड़ गयी है कि जिस मामले का निपटारा लम्बे समय तक अदालत में नहीं हो सका, उसका समाधान क्या वह आपसी बातचीत से सम्भव है।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को दो दिन बीत चुके हैं। मुकदमें से जुड़े सभी पक्षों और अन्य लोगों की तरफ से अब तक कई प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं। धीरे-धीरे मीडिया भी इन खबरों को प्रमुखता से उठाने के बाद अब दूसरी खबरों को तरजीह दे रही है, लेकिन बड़ा सवाल अब भी यही है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय की राय कोई असर करेगी, क्योंकि इन सभी पक्षों की निगाहें दूसरे खेमों की ओर है, कि उनकी तरफ से क्या राय या सुझाव आता है। ऐसे में आगे आकर पहल कौन करता है, ये बड़ी बात है। वहीं अयोध्या विवाद को जब-जब शान्तिपूर्ण तरीके से सुलझाने की बात आयेगी, इसके मुद्दई हाशिम अंसारी का जरूर जिक्र आयेगा। हाशिम अंसारी चाहते थे कि उनके जिन्दा रहते इस मामले का हल निकल जाये। हालांकि यह सम्भव नहीं हुआ। अब उनके बेटे मोहम्मद इकबाल अंसारी अपने वालिद की इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे है। वह हाशिम की इच्छा को पूरा करना चाहते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार से सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह ने उनसे इस विषय में बातचीत की, पेश है बातचीत के प्रमुख अंश-

सवालः सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी के बाद क्या आपको लगता है कि आपसी बातचीत से मामला सुलझ सकता है?

इकबालः इस देश में ऐसी कई मिसाले हैं, जब बड़े-बड़े मुद्दे आपसी समझौते से सुलझे। इसलिए मन्दिर-मस्जिद विवाद का मामला भी हल हो सकता है और इसे सुलझाना बेहद जरूरी है। हालांकि अभी कोर्ट की टिप्पणी के बाद तुरन्त इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता। थोड़ा वक्त सभी को देना चाहिए।

सवालः क्या दूसरे पक्षों से आपकी फिलहाल कोई बातचीत हुई?

इकबालः हम अपने लोगों से मशविरा कर रहे हैं। उनसे बातचीत करेंगे। इसी तरह सभी पक्षों को अपने-अपने लोगों से बातचीत करनी चाहिए। हिन्दू महासभा को अपने लोगों से मिलकर एक आम राय बनानी चाहिए। इसके बाद अगर वह हमारे पास आते हैं तो हम भी उनकी बात सुनेंगे। इस बारे में बेहद जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं है।

सवालः इस मामले में सुब्रमण्यम स्वामी ने मस्जिद को सरयू पार बनाने की सलाह दी है?

इकबालः सुब्रमण्यम स्वामी के बयान से मुसलमान इत्तेफाक नहीं रखते। यह मामला उलझाने वाली बात है। क्या अयोध्या में और मस्जिदें नहीं हैं? अगर यही इकलौती मस्जिद होती तो हम मान लेते। मुसलमान पहले से यहां बसे हैं। इबादत करते हैं। समझौते में इस तरह के बयान नहीं आने चाहिए कि मुसलमान सरयू के उस पार जाकर मस्जिद बना लें। इस तरह तो हम भी सरयू के पार जाकर राम मन्दिर बनाने की बात कह सकते हैं।

सवालः नेताओं के इस मुद्दे पर अपनी राय जाहिर करना ठीक नहीं है?

इकबालः सवाल राय का नहीं है। मगर जब कोर्ट इस बारे में सुलह-समझौते की नसीहत दे रहा है तो इस तरह के बयानों का क्या मतलब है? इस तरह तो विवाद बढ़ेगा। सुब्रमण्यम स्वामी कौन होते हैं, इस मामले में बोलने वाले। अयोध्या समाधान चाहती है, विवाद नहीं।

सवालः विश्व हिन्दू परिषद ने शास्त्रीय सीमा के बाहर मस्जिद बनाने की सलाह दी गई है?

इकबालः देखिए, मैं बार-बार कह रहा हूं इस तरह के बयान सही नहीं हैं। इससे दूरियां बढ़ेंगी, मामला सुलझने के बजाय उलझेगा। क्या विहिप के सभी लोग खुद इस बयान से सहमत हैं। उन्हें समझना चाहिए कि बातचीत इस रवैये से आगे नहीं बढ़ेगी। सभी की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।

सवालः फिर आपकी नजर में सुलह-समझौता किस आधार पर होना चाहिए?

इकबालः देखिए कोई भी समझौता जब होता है, तो दोनों पक्षों को कुछ झुकना पड़ता है। दोनों पक्ष एक दूसरे की कुछ बातें मानते हैं, तभी समझौता सफल होता है। पहले से सरयू पार मस्जिद बनाने जैसे बयान से तो लगता है कि सारा फैसला पहले से तय कर लिया गया है और हमें जबरन मानना पड़ेगा। ऐसे तो कभी समझौता नहीं हो पायेगा।

सवालः केन्द्र में मोदी सरकार के बाद अब उप्र. में योगी सरकार बनने से अयोध्या क्या सोच रही है?

इकबालः उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी मुख्यमंत्री बने हैं, यह अच्छी बात है। योगी जी अयोध्या का कल्याण करें। यहां के विकास पर भरपूर ध्यान दें। यहां कई मन्दिर-मस्जिद हैं, लेकिन विकास पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अयोध्या एक विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी है, लेकिन यहां की हालत किसी देहात से भी खराब है। अगर प्रदेश सरकार यहां के विकास पर ध्यान देती है, तो माहौल बदलेगा। यहां विवादित स्थल से अलग कई प्राचीन मन्दिर-मस्जिद उपेक्षा का शिकार हैं। सरकार को चाहिए वह इनके विकास पर ध्यान दें।

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