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क्या आप ने सुने हैं मिर्ज़ा ग़ालिब के ये मशहूर शेर , जो रोजाना …….

नई दिल्ली: आज गूगल ने शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के 220वीं जयंती पर उन्हें डूडल समर्पित किया है. गूगल ने Mirza Ghalib’s 220th Birthday शीर्षक से डूडल बनाया. अपने डूडल के जरिये उन्होंने इस शायर को श्रद्धांजलि दी. मिर्ज़ा ग़ालिब का असली नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग खान था. उनका जन्म उस दौर में हुआ जब मुगल कमजोर हो चुके थे और अंग्रेजों का पूरे देश पर शासन था. मिर्ज़ा ग़ालिब को मुगल काल का आखिरी महान शायर कहा जाता है.

बॉलीवुड में बन चुकी हैं कई फिल्मे ………

बॉलीवुड और टेलीविजन पर उनके ऊपर ज्यादा काम नहीं हुआ है. बॉलीवुड में सोहराब मोदी की फिल्म ‘मिर्ज़ा ग़ालिब (1954)’ यादगार थी और टेलीविजन पर गुलजार का बनाया गया टीवी सीरियल ‘मिर्ज़ा ग़ालिब (1988)’ जेहन में रच-बस गया. फिल्म में जहां भारत भूषण ने लीड किरदार को निभाया तो टीवी पर नसीरूद्दीन शाह ने मिर्ज़ा ग़ालिब को छोटे परदे पर जिंदा किया. आइए उनकी फिल्म और सीरियल में आए कुछ ऐसे शेर जो हम रोजाना की जिंदगी में इस्तेमाल तो करते हैं लेकिन जानते नहीं ये मिर्ज़ा ग़ालिब की ही देन हैः

गूगल ने डूडल बना महान शायर मिर्जा गालिब को दी श्रद्धांजलि

ये हैं मिर्ज़ा ग़ालिब की …………  

तुम सलामत रहो हजार बरस
हर बरस के हों दिन पचास हजार
 
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

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