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डायलिसिस पर दिल्ली की बुनियादी सुविधाएं

नई दिल्ली (ईएमएस)। संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि दस वर्ष में दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर हो जाएगा। यह निराशाजनक है कि वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के बाद से दिल्ली में विकास की गति बहुत धीमी पड़ गई है। नई योजनाओं की कागजों से इंक मिटने लगी है और पुरानी योजनाएं अधर में लटकी हैं। यदि दिल्ली दुनिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर बन जाएगा तो एनसीआर के शहर भी इस जनदबाव से अछूते नहीं रहेंगे। एनसीआर के शहरों में तेजी से रिहायशी इलाके जरूर विकसित हो रहे हैं, लेकिन इन फ्लैटों में रहने वालों के लिए मूलभूत सुविधाओं की अब भी कमी है। यदि यही स्थिति रही तो दस वर्षों में दिल्ली के साथ ही एनसीआर के शहरों में भी बुनियादी सुविधाएं चरमरा जाएंगी।

अभी यहां की आबादी तकरीबन पौने दो करोड़ के आसपास है, लेकिन 2028 में यह चार करोड़ तक पहुंच जाएगी। ऐसे में ढांचागत विकास और बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो वह अब भी चरमरा रही हैं। 2028 में दिल्ली का हाल क्या होगा, यह यक्ष प्रश्न ही है। सरकारी आंकड़ों और हकीकत पर गौर करें तो दिल्ली की आबादी साल दर साल बढ़ती जा रही है। रोजगार की तलाश में आने वालों की हर साल संख्या बढ़ रही है, लेकिन इस बढ़ती आबादी के अनुपात में बुनियादी सुविधाएं उतनी ही हैं। आबादी और सुविधाओं में अंतर का ही नतीजा है कि जहां अनधिकृत कॉलोनियों का जंजाल फैलता जा रहा है, वहीं दिल्ली के कारोबारी सीलिंग की समस्या से त्रस्त हैं। सड़कों पर जाम आम हो गया है, तो परिवहन और पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। न तो सुरक्षित आवास हैं, न सांस लेने को स्वस्थ आबोहवा और न ही कंठ तृप्त करने को पर्याप्त शुद्ध जल। सड़कों पर वाहनों का ऐसा रेला कि पैदल चलना मुश्किल हो जाता है। दिल्ली की बढ़ रही जनसंख्या के लिहाज से बुनियादी ढांचे का विकास न होना चिंतित करने वाला है।

प्लानिंग का अभाव व सियासत ने विकास की गति को कुंद कर दिया है। दिल्ली को विश्व का सर्वश्रेष्ठ शहर बनाने की चर्चा तो खूब होती है। प्रत्येक चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जाता है, पर जमीनी स्तर पर इस दिशा में कोई प्रयास नहीं होता है। बढ़ती आबादी के लिए सुरक्षित आवास उपलब्ध कराने के बजाय पूरे शहर में अनधिकृत कॉलोनी व झुग्गी बस्तियां बसा दी गईं। इन्हें हटाकर नियोजित विकास में सियासत आड़े आ जाती है।

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