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माँ अदरौना देवी में लक्ष्य प्राप्ति को पांडवों ने टेका था मत्था

महाभारत कालीन ऐतिहासिक आद्रवन में स्थित पूर्वांचल के ख्याति प्राप्त मंदिरों में महराजगंज जनपद के लेहड़ा स्थित अदरौना देवी मंदिर प्रमुख स्थान रखता है। बड़े बड़े राजनेता, मंत्री, पूंजीपति, प्रशासनिक अधिकारी एवं अनेक वर्गों का भक्तों की भारी संख्या में उपस्थिति ने इस मंदिर का महत्व देश ही नहीं विदेशों में भी बढ़ाया है। भक्तों के सहयोग से यह मंदिर दिन-प्रतिदिन अपनी अद्वितीय कलात्मकता दर्शा रहा है। हर वराह होने वाले निर्माण ने जहां मंदिर को भव्यता प्रदान किया है, वहीं भक्तों की श्रद्धा ने इसे सर्वमान्य बना दिया है।
हिमालय की तलहटी में पवहिया नदी के किनारे अदरौना देवी माँ का मंदिर हजारों वर्षो से भक्तों की आस्था और विश्वास की मिसाल बन गया है।

किवंदती के अनुसार इस शक्ति पीठ पर महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान माथा टेका था। अपने लक्ष्य सिद्धि के लिए माँ आद्रवन देवी से प्रार्थना की थी। मंदिर से जुड़ा घना वन क्षेत्र महाभारत काल से आद्रवन के नाम से जाना जाता है। अब इसका नाम बिगड़ते-बिगड़ते अदरौना हो गया। 

सत्तर के दशक तक यहां सिर्फ गर्भगृह था

सन् 1970 के दशक के शुरुआत में इस मंदिर के स्थान पर सिर्फ इसका गर्भगृह था। मंदिर तक पहुंचना भी काफी कठिन था। जंगल को पार करने के लिए 8 से 10 लोग एकत्रित होते थे। तब मंदिर के लिए प्रस्थान करते थे। मंदिर तक जाने वाले सिर्फ राहगीर थे।
वर्ष 1959 में गर्भगृह पर पड़ी छत
वर्ष 1959 में डॉक्टर महादेव प्रसाद सालड़ के प्रयास से चार पायों पर एक छत डालकर गर्भगृह को ढका गया। तीन दशक के बाद आज यहाँ एक विशाल भव्य मंदिर स्थापित हो गया है। 
नेपाल से भी आते हैं श्रद्धालु
यहां पूर्वी उत्तर प्रदेश से ही नहीं वरन मित्र राष्ट्र नेपाल के कोने-कोने से माता के भक्त दर्शन करने के लिये यहां आते हैं। अपमी मन्नतें पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते हैं और कुछ श्रद्धालु मन्नतें मांग समाज और परिवार के लिए सुख-समृद्धि की कल्पना करते हैं।
यहीं स्थित है महाभारतकालीन पौहारी बाबा का स्थान
महाभारत काल में उल्लिखित पौहरी बाबा का आश्रम भी मंदिर के समीप ही स्थित है। यहां का प्रसाद भभूत है। हर भक्त यहां तक आता है और प्रसाद के रूप में भभूत लेकर कृतार्थ होता है। कहते हैं कि पौहारी बाबा के दर्शन के बिना माता का दर्शन अधूरा होता है। यह भी मान्यता है कि घर के जानवरों को बीमार पड़ने पर भभूत लगाने पर उनकी बीमारी ठीक हो जाती है।
पांच, सात और नौ मंगलवार को दर्शन करने वाले की पूर्ण होती है मनोकामना
यह स्थान सैकड़ो वर्षो से दुर्गापुर अदरौना के नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। शारदीय और चैत्र नवरात्र में लाखों श्रद्धालु यहां आकर आद्रवन की पूजन-अर्चन करते हैं। 

मनोकामनाओं की सिद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि श्रद्धा और प्रेम से पांच, सात और नौ मंगलवार को लगातार माँ आद्रवन का दर्शन करने से सभी मुरादें पूरी होती हैं। यही वजह है कि हर मंगलवार को यहां हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। नवरात्र में यह संख्या आठ से दस गुनी हो जाती है।
ऐसे पहुंचे मंदिर

इस महाकाल कालीन आद्रवन माँ के मंदिर पर पहुंचने के लिए रेलवे और अन्य साधन की सुविधा उपलब्ध है। गोरखपुर से बढ़नी रेलखण्ड पर लेहड़ा स्टेशन के निकट हिमालय की तलहटी में पवहिया नदी के किनारे माँ अदरौना का मंदिर स्थित है।
चाक-चौबंद है सुरक्षा व्यवस्था
मंदिर पर शारदीय नवरात्र में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद है। 13 सीसी कैमरा मां के भक्तों की निगरानी कर रहे हैं। सुरक्षा में 3 एसओ, 10 एसआई, 1 महिला एसआई, 21 हेड कांस्टेबल, 15 महिला कांस्टेबल, 65 कांस्टेबल, 2 ट्रैफिक पुलिस, डेढ़ सेक्सन पीएसी, एक फायर ब्रिगेड को तैनाती दी गयी है।

रखें सावधानी
-समस्या होने पर तुरन्त सुरक्षाकर्मी या चौकी इंचार्ज को जानकारी दें।
-महिलाएं अपने आभूषण का ख्याल रखें।
-दर्शनार्थी अपने समान की सुरक्षा स्वयं करें।
-प्रशासनिक व्यवस्था न तोड़ें। प्रशासन की मदद करें।(बृजमनगंज थानाध्यक्ष ज्ञानेन्द्र राय की अपील)

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