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मिर्ज़ापुर के जेपी यादव ने बताई अपने फिल्मी सफर की कहानी, कहा- ‘मैं एक्सीडेंटल एक्टर हूं ’

भोपाल । OTT प्लेटफार्म पर अपनी एक अलग पहचान बना चुके प्रमोद पाठक से इस विशेष बातचीत में उनके सफर के बारे में विस्तार से जानते हैं । उनके फिल्मी सफर की बात करें तो उन्होंने बाटला हाउस, सिटी लाइट्स, रईस, राज़ी और गैंग्स ऑफ वासेपुर में छोटे छोटे रोल्स किए हैं। लेकिन उन्हें असल पहचान अमेजन प्राइम पर आई वेब सीरीज मिर्ज़ापुर से मिली, जिसमें उन्होंने भ्रष्ट और अय्यास नेता जेपी यादव की भूमिका निभाई।

इसके अलावा उन्होंने रक्तांचल वेब सीरीज में त्रिपुरारी के कैरेक्टर को भी बखूबी निभाया। इन दोनों वेब सीरीज से उन्हें दर्शकों का काफी प्यार मिला। इसके बाद वो महारानी वेब सीरीज में भी दिखे, इसमें वो बिहार के सीएम भीमा बाबू के राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं। फिर वे इस सीरीज में महारानी यानी कि हुमा कुरैशी के सहायक के रूप में नजर आए । इसी वेब सीरीज के दूसरे सीजन की शूटिंग के दौरान हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजेंसी से प्रमोद पाठक ने खास बातचीत की है।

भोपाल में शूटिंग के दौरान आपका अनुभव कैसा रहा?
भोपाल बेहद खूबसूरत शहर है। यहां बड़ी झील है, छोटे-छोटे तालाब हैं, शौर्य स्मारक, भारत भवन, भीमबैठका, शहीद भवन, बिड़ला मंदिर, वन विहार, वाटर पार्क और कई सारे दर्शनीय स्थल हैं । इन सब के अलावा यहां के लोगों का नवाबी रुतबा और लोगों का दोस्ताना व्यवहार मुझे भा गया। हमारी टीम में अक्सर ये बातें होती हैं मध्‍य प्रदेश चलो, भोपाल में शूटिंग करते हैं । वास्‍तव में इस शरह की यह तमाम खासीयत आज अनेक डारेक्‍टर एवं कलाकारों को यहां आने के लिए लुभाती हैं।

अपने व्‍यस्‍ततम समय में क्या आप कुछ समय अपने लिए भी निकाल पाते हैं ?
यकीन मानिए, मैं इस इंडस्ट्री में एक ऐसा एक्टर हूं जो एक दिन की भी फुरसत पाकर घूमने निकल जाता हूं। हालांकि शूटिंग में व्यस्तता बहुत रहती है, लेकिन मौका मिलते ही नई जगहों की सैर करता हूं। यहां भी भोपाल का शायद ही, नहीं-नहीं बल्‍कि यह कहना चाहिए कि मध्‍य प्रदेश का कोई ऐसा बड़ा पर्यटन केंद्र नहीं होगा जोकि मेरे द्वारा न देखा गया हो। जहां थोड़ा भी विश्राम मिला, अपन चल दिए प्रकृति को निहारने, एतिहासिक धरोहरों को देखने और कुछ समय के लिए अपने आपको अंतस से जानने तथा खोजने के लिए।

आपका जन्म कानपुर में हुआ है, अपने बचपन के बारे में हम सभी को बताएं ।
कानपुर में मैं 5वीं कक्षा तक पढ़ सका था। उसके बाद मुझे होस्टल भेज दिया गया। कानपुर काफी खुला हुआ शहर है, अपने बचपन के दौर को याद करूं तो कहना होगा कि उस समय चारों ओर मैदान ही मैदान हुआ करते थे, आबादी इतनी सघन नहीं हुई थी, जितनी की आज वहां दिखाई देती है। खेलों में मेरी बहुत रुचि थी। मुझे क्रिकेट और फुटबॉल बेहद पसंद था। बचपन में दोस्तों के साथ घूमने का अलग ही आनंद था। कानपुर के बगल से ही गंगा गुजरती हैं। कानपुर काफी सुंदर शहर हुआ करता था लेकिन अब यह शहर जनसंख्या का काफी दबाव झेलता नजर आता है, भीड़भाड़ है, इसलिए यहां प्रदूषण भी बहुत है । बावजूद इसके मैं अभी भी कानपुर जाता-आता रहता हूं।

आपने अनेक फिल्मों में छोटे-छोटे अभिनय किए, लेकिन आज आप कई दमदार किरदार निभाते नजर आ रहे हैं। कैमियो रोल्स से बेस्ट सपोर्टिंग रोल्स का सफर कैसा रहा है और आप आज अपनी एक्‍ट‍िंग की लम्‍बी यात्रा को किस रूप में देखते हैं?
आपको हैरानी होगी, यह जानकर कि मैं ”एक्सीडेंटली एक्टर” बन गया। जब मैं मुंबई पहुंचा तो कभी ये सोचा नहीं था कि एक्टिंग के क्षेत्र में अपना भाग्‍य अजमाऊंगा या इसे एक केरियर मानकर इसमें काम करूंगा। जीवन के संचालन और वक्‍त की जरूरतों को देखते हुए मैंने शुरुआत के दिनो में अपने संघर्ष के काल में कई सारे रोजगार संबंधी कार्य किए । लेकिन जैसे हर कार्य मुझे कुछ सबक देता जा रहा था और पीछे छूट जा रहा था, फिर इसी बीच थिएटर में मेरी रुचि जगी। थिएटर या कहें रंगमंच देखना देखते ही देखते करने में बदलने लगा । मैं एक लोकल थिएटर ग्रुप ‘अर्पणा’ के साथ जुड़ गया।

यहां मैंने पंडित सत्यदेव दुबे जी और सुनील शानबाग जी से बहुत कुछ सीखा। वर्ष 2007-08 तक मेरा पेशेवर अभिनेता बनने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन तभी मेरी जिंदगी में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ आई। चूंकि अनुराग कश्यप मुझे थिएटर के दिनों से ही जानते थे, इसलिए उन्होंने मुझे ये रोल ऑफर किया। इस फिल्म के बाद मुझे लगा कि एक्टिंग को थोड़ा सा और गंभीरता से लेना चाहिए। मैं इससे भी बेहतर दे सकता हूं, कर सकता हूं। फिर उसके बाद तो सब कुछ आपके सामने है, मैं कई सारे छोटे-बड़े रोल जैसे मिले, वैसे करता रहा। फिर ओटीटी आ गया, इस नए जमाने में मिर्ज़ापुर आई। मिर्ज़ापुर में काम करने की वजह से लोगों को लगा कि इस एक्टर को थोड़े और दिलचस्प रोल दिए जा सकते हैं। इसके बाद मुझे वे तमाम ऑफर आने लगे हैं, जो अपने आपमें विलक्षण विविधता लिए हुए हैं। आज मैं सहजता से इन्‍हें निभाने का प्रसास भी कर रहा हूं।

आपका सुभाष कपूर के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मेरा सुभाष कपूर जी के साथ काफी पुराना जुड़ाव है। उनके साथ मैंने फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ में एक बहुत छोटा सीन करते हुए अपनी शुरुआत की थी । लेकिन 10 साल के बाद उनका अचानक से फोन आया और उन्होंने मुझे ‘महारानी’ में अहम किरदार (मिश्रा जी) दे दिया। मुझे बहुत खुशी हुई कि कई सारे डायरेक्टर्स ने मेरे साथ काम करने के बाद मुझे दोहराया और बेहतर किरदार दिया। मैं उनका शुक्रगुजार हूं।

मिर्ज़ापुर के कलाकारों के साथ काम करना, उनके साथ बिताए पल के अनुभव को हमारे साथ आप आज किस रूप में बाटेंगे ।
मिर्ज़ापुर में कमाल की स्टार कास्ट थी। मुझे उनके साथ काम करके बेहद मज़ा आया। दिव्येन्दु, अली, श्‍वेता और पंकज इन सभी के साथ काफी अच्छा अनुभव रहा है । पंकज के साथ तो मेरे कई सारे सीन थे, उनके साथ दोनों सीजन में काम किया। मैं कास्टिंग टीम को इसका श्रेय देना चाहूंगा जो उन्होंने सभी श्रेष्‍ठ कलाकार को इकट्ठा किया। उन्होंने इसके पीछे बहुत मेहनत की, जो मिर्ज़ापुर में हर दर्शन को नजर भी आती है।

आनेवाले समय में क्या यह माना जाए कि आप निदेशन के क्षेत्र में उतरेंगे और कोई फिल्म डायरेक्ट करेंगे ।
ये बड़ा रोचक सवाल है। मैं मुंबई में अपने नाटक स्वयं लिखता और निर्देशित करता हूं। अब तक मैंने अनेक शॉर्ट फिल्म भी डायरेक्ट की हैं, जिसे यूट्यूब पर पर देखा जा सकता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि मैंने बच्चों के लिए एक फीचर फिल्म भी डायरेक्ट की है ‘पिंटी का साबुन’। अभी तो मेरी एक्टिंग की गाड़ी अच्छी चल रही है, लेकिन आगे कुछ प्रोजेक्ट हैं, जिन्‍हें मैं जरूर डायरेक्ट करना चाहूंगा।

मिर्ज़ापुर में आप एक नेता और सीएम के भाई की भूमिका में नजर आए। महारानी में भी आप मुख्‍यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार की भूमिका में दिखाई देते हैं । क्या आप वास्तविक जीवन में भी राजनीति में कदम रखना चाहेंगे?
नहीं, नहीं… बिल्कुल नहीं। मैं अराजनीतिक व्यक्ति हूं। राजनीति में जाना बहुत जिम्मेदारी भरा काम है। मुझे नहीं लगता कि आने वाले 10-15 वर्षों तक मैं राजनीति के बारे में सोच सकता हूं । अगर ईमानदारी से देखा जाए और कहा जाए तो सच यही है कि राजनीति बहुत कठिन कार्य है।

जो लोग फिल्मों में अपना जीवन बनाना चाहते हैं, लेकिन उनके परिवार वाले उनका सहयोग न कर रहे हों, ऐसे लोगों के लिए आपके सुझाव जरूर बताएं ।
मैं खुद एक हिन्‍दू ‘ब्राह्मण’ परिवार से आता हूं। जब मैं इस अभिनय के क्षेत्र में आया तो मेरे भी परिवार वालों में अनिच्छा थी। लोगों को अच्छा नहीं लगा कि मैं अभिनय करना चाहता हूं। इसलिए मैं समझ सकता हूं कि आज भी कुछ परिवार में इस इंडस्ट्री को अच्छा नहीं माना जाता होगा। लेकिन मैंने खुद की सुनी। यदि आपको दिल से लगता है कि आपको अभिनय करना चाहिए तो बेझिजक इस कला की दुनिया में आएं। कितु यदि किसी फिल्म या वेब सीरीज को देख कर आपको ऐसा लगता है कि आप सीधा प्रवेश करेंगे, तो इसमें जोखिम है। इस क्षेत्र में आने से पहले पूरी तैयार करनी चाहिए। किसी थिएटर या एक्टिंग क्लास से जुड़े। एक्‍टिंग या कहें नाट्य विधा के अपने कुछ नियम और गुण हैं, कम से कम प्रारंभिक तौर की जानकारी तो आपको होनी ही चाहिए । यदि आप तैयार होकर आयेंगे तो जरूर सफल होंगे।
(एजेंसी/हिस)

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