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राष्ट्रपति चुनाव : नीतीश के इस कदम से बौखलाया विपक्ष

नई दिल्ली, 21 जून = बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव और विपक्ष की एकजुट बैठक से ठीक पहले अलग राह पकड़ ली है। इससे विपक्ष में बेचैनी फैल गई है।

सूत्रों के अनुसार, नीतीश को मनाने और विपक्षी गुट की एकता कायम रखने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद पटना गए लेकिन बातचीत लगभग नाकाम साबित हुई।

दरअसल राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने बिहार में चुनाव के वक्त बने लालू-नीतीश और कांग्रेस के महागठबंधन में सेंध लगा दी है।

नीतीश कुमार की जेडीयू सांसदों-विधायकों से बातचीत के बाद पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह बिहार के गवर्नर रहे रामनाथ कोविंद को ही राष्ट्रपति चुनावों में समर्थन देगी। खास बात ये है कि जेडीयू ने इस ऐलान से पहले 22 जून यानी कल होने वाली कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों की बैठक तक का इंतजार नहीं किया। नीतीश के इस रुख से सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिहार में महागठबंधन अंतिम सांसें ले रहा है और नीतीश की एनडीए में घर वापसी हो सकती है?

कोविंद-नीतीश के बेहतर संबंध : जब से रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल बने, नीतीश कुमार से उनके बेहतर संबंध रहे हैं। एक भी ऐसा मौका नहीं आया जब बतौर राज्यपाल कोविंद ने नीतीश सरकार के लिए मुश्किल पैदा की। ऐसे समय जब शराबबंदी पर बना सख्त कानून विवादों में था और कानूनी स्तर पर इसकी आलोचना हो रही थी, राज्यपाल कोविंद ने इस पर अपनी सहमति बिना सवाल के दे दी। इसके अलावा कुलपतियों की नियुक्ति पर भी नीतीश की पसंद को अपनी सहमति दी। दोनों के बीच परस्पर संबंध बहुत अच्छे रहे।

महादलित दांव : नीतीश ने बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन महादलित वोट के सहारे ही पाई थी। यही वोट इनका सबसे बड़ा दांव भी है। ऐसे में नीतीश का तर्क है कि अगर वह कोविंद का विरोध करते हैं तो इसका गलत संदेश जा सकता है। नीतीश का यह भी मानना है कि ताक में बैठी भाजपा उनके विरोध का उपयोग यूपी की तर्ज पर राजनीति करने के लिए कर सकती है। जेडीयू बिहार में दलित और अति पिछड़े तबके को अपने पक्ष में रखने की पूरी कोशिश कर रही है।

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सभी विकल्प खुला रखने की कवायद : नीतीश अलग राह चुनकर बिहार की राजनीति में सभी विकल्प खुला रखना चाहते हैं। जब लालू प्रसाद और उनके परिवार पर करप्शन से जुड़े नए केस आए तो बीजेपी ने उन्हें खुला ऑफर दिया कि वह उनके साथ आ जाएं। लेकिन नीतीश कुमार ने इस प्रस्ताव को खारिज किया। लेकिन इस संभावना के बने रहने की बदौलत वह बिहार में राजनीतिक संतुलन भी बनाने में कामयाब रहे हैं।

हालांकि दिलचस्प ये है कि राष्ट्रपति पद पर विपक्ष को एकजुट करने की शुरुआती पहल स्वयं नीतीश कुमार ने की थी लेकिन उनके अलग राह पकड़ने का पहला संकेत तब मिला था, जब उन्होंने ऐन मौके पर 26 मई को विपक्ष की संयुक्त बैठक से खुद को अलग कर लिया था, जबकि उसके ठीक अगले दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी की ओर से आयोजित लंच में शामिल हो गए थे।

क्या कहते हैं बिहार के समीकरण : 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 विधायकों की संख्या चाहिए। इस समय जेडीयू के 71, आरजेडी के 80 जबकि कांग्रेस के 27 विधायकों वाली महागठबंधन सरकार चल रही है|यदि नीतीश आरजेडी से नाता तोड़कर एनडीए में जाते हैं तो कांग्रेस के 27 विधायक भी सरकार से हट जाएंगे। ऐसे में नीतीश को सरकार बचाने के लिए 51 और विधायकों की जरूरत होगी। विधानसभा में भाजपा के 53 विधायक हैं। इसके अलावा एलजेपी के 2, आरएलएसपी के 2, एचएएम के 1, सीपीआई एमएल लिब्रेशन के तीन और स्वतंत्र 4 विधायक हैं। यानी जेडीयू और बीजेपी मिलकर सरकार बना सकते हैं क्योंकि दोनों पार्टियों के विधायकों का आंकड़ा कुल मिलाकर 124 बैठता है।

महागठबंधन पर पड़ेगा असर : विपक्ष की ओर से अपना संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने के बावजूद नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार को सहयोग देने के संकेत के बाद महागठबंधन की सेहत पर असर पड़ सकता है। अब विपक्ष के सामने दो बिंदुओं पर मंथन हो रहा है। या तो दलित के बदले किसी दलित चेहरे को ही उतारे या फिर दलित के बदले किसान कार्ड खेले। यह भी मंशा है कि साथ ही ऐसे नाम को चुनें जिसे शिवसेना के अलावा दक्षिण के दलों का भी सपोर्ट हासिल हो।

कोविंद के नाम के ऐलान के साथ ही विपक्षी दलों में बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस ने तुरंत उन्हें सपोर्ट देने का ऐलान कर दिया था। नीतीश कुमार भी सपोर्ट दे सकते हैं। ऐसे में अब एनडीए के पास 60 फीसदी से अधिक वोट हैं। मंगलवार को विपक्षी दलों में आपसी मंत्रणा जारी रही। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की। गुलाम नबी आजाद ने दूसरे विपक्षी दलों से संपर्क साधा। फिलहाल कांग्रेस मीरा कुमार, एमसए स्वामीनाथन, सुशील कुमार शिंदे, प्रकाश आंबेडकर के नाम पर विचार कर रही है और बैठक में इन में से किसी एक नाम पर समर्थन जुटाने का प्रय़ास करेगी। जबकि भाजपा को दलित कार्ड खेलने पर नीतीश समेत दक्षिण की कई पार्टियों का समर्थन पहले ही मिल चुका है।

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