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संत रविदास जयंती पर CM योगी ने प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं

लखनऊ, 31 जनवरी (हि.स.)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरु संत श्री रविदास की जयंती पर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि गुरु संत श्री रविदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। 

उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने भी रविदास जंयती पर बधाई देते हुए ट्वीट कर कहा कि भक्ति संप्रदाय पर गहरा प्रभाव डालनेवाले गुरु रविदास जी की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि! आज विद्यालय व अन्य विभागों में संत रविदास के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन एक अच्छी पहल है। इसके अलावा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अपने ट्वीट किया, ‘‘सामाजिक समरसता की अलख जगाने वाले श्रेष्ठ दार्शनिक कवि एवं समाज सुधारक संत परंपरा का निर्वहन करने वाले महान संत पूज्य गुरु रविदास जी की जयंती पर कोटि कोटि नमन।

संत गुरु रविदास का जन्म तथ्यों के आधार पर 1377 के आसपास माना जाता है। उनका जन्म माघ महीने की पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन देश में महान संत गुरु रविदास की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। आज देश भर में हर्षोल्लास से रविदास जयंती मनायी जा रही है। देश में ऊंच-नीच, जाति-धर्म भेदभाव जैसी समाज में फैली बुराईयों, कुरूतियों को दूर करते हुए सच्चे मार्ग पर चलते हुए भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बाधने में संत गुरू रविदास लगे रहे। उनका जन्म वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गाव में हुआ था। इनके पिता संतो़ख दास जूते बनाने का काम करते थे। रविदास को बचपन से ही साधू संतो के प्रभाव में रहना अच्छा लगता था जिसके कारण इनके व्यवहार में भक्ति की भावना कूटकूट भरी हुई थी, लेकिन वह भक्ति के साथ अपने काम पर भी विश्वास करते थे। इस कारण जूते बनाने का काम निष्ठापूर्वक करते थे। 

कहा जाता है कि किसी त्यौहार पर इनके गांव वाले सभी लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो सभी ने रविदास जी से भी गंगा स्नान जाने का निवेदन किया, लेकिन उन्होंने गंगा स्नान करने जाने से मना कर दिया क्योंकि उसी दिन रविदास जी ने किसी व्यक्ति को जूते बनाकर देने का वचन दिया था। रविदास जी ने ग्रामीणों से कहा कि यदि मान लो कि मैं गंगा स्नान के लिए चला भी जाता हूं तो मेरा ध्यान तो अपने दिए हुए वचन पर लगा रहेगा। यदि मैं वचन तोड़ता हूं तो फिर गंगा स्नान का पुण्य कैसे प्राप्त हो सकता है। यदि मेरा मन सच्चा है मेरी इस जूते धोने वाली कठौती में ही गंगा है। तब से यह कहावत प्रचलित हो गयी, ‘‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’’

रविदास जी हमेशा से ही जाति-धर्म के भेदभाव के खिलाफ थे और जब भी मौका मिलता वे हमेशा सामाजिक कुरूतियो के खिलाफ हमेसा आवाज़ उठाते रहते थे। रविदास जी जाति व्यवस्था के सबसे बड़े विरोधी थे। उनका मानना था कि मनुष्यों द्वारा जाति-पाती के चलते मनुष्य मनुष्य से दूर होता जा रहा है और जिस जाति से मनुष्य मनुष्य में बटवारा हो जाये तो फिर जाति का क्या लाभ? संत गुरु रविदास ने अपने जीवन के व्यवहारों से यह प्रमाणित कर दिया था की इन्सान चाहे किसी भी कुल या जाति में जन्म ले ले लेकिन वह अपने जाति और जन्म के आधार पर कभी भी महान नहीं बनता है। जब इन्सान दूसरां के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव रखते हुए लोगों के प्रति अपना जीवन न्योछावर कर दे, तभी वह सच्चे अर्थां में महान होता है और ऐसे ही लोग युगों-युगों तक लोगां के दिलों में जिन्दा रहते हैं।

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