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समुद्र में चीन की हर हरकत पर नजर रखेगी इंडियन नेवी की ‘आसमानी आंख’ ‘रुक्मिणी’

नई दिल्ली(5 जुलाई): हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखल और सिक्किम में सीमा विवाद के बाद भारत बेहद चौकन्ना हो गया है। इंडियन नेवी की ‘आसमानी आंख’ यानी जीसैट-7 सैटलाइट के जरिए ड्रैगन की गतिविधियों पर पैनी नजर है।

>खास तौर पर मिलिटरी इस्तेमाल के लिए ही इस सैटलाइट को 29 सितंबर 2013 को अंतरिक्ष में भेजा गया था। 2625 किलो वजनी इस सैटलाइट का नाम है रुक्मिणी। इसके जरिए हिंद महासागर के विस्तृत जलक्षेत्र में 2000 किमी तक के दायरे में निगरानी करना भारतीय नेवी के लिए बेहद आसान हो गया है।

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>कम्युनिकेशन और सर्विलांस, दोनों ही काम में इस्तेमाल हो सकने लायक यह मल्टिबैंड सैटलाइट पृथ्वी से करीब 36 हजार किमी ऊंचाई पर धरती की कक्षा में मंडरा रहा है। यह जंगी बेड़ों, सबमरीन, समुद्री एयरक्राफ्ट की गतिविधियों का रियल टाइम अपडेट मुहैया कराता है। इस सैटलाइट की मदद से अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक पर नजर रखना मुमकिन हो सका है। इसकी मदद से फारस की खाड़ी से लेकर मलक्का जलसंधि तक सेना की संचार और निगरानी की ताकत में बड़ा इजाफा हुआ है।

> 2013 में भारत के पास 4 टन वर्ग के सैटलाइट को लॉन्च करने के लिए आधुनिक जीएसएलवी रॉकेट नहीं थे। इसकी वजह से भारत को 185 करोड़ रुपये कीमत वाले जीसैट-7 सैटलाइट को फ्रेंच गुएना से लॉन्च करवाना पड़ा था। इस लॉन्च से पहले नेवी किसी तरह के कम्युनिकेशन के लिए ग्लोबल मोबाइल सैटलाइट कम्युनिकेशन सर्विसेज इनमरसैट पर आधारित थी।

>अब भारतीय वायुसेना के लिए भी इसी तरह का एक अन्य सैटलाइट Gsat-7A विकसित किया जा रहा है। एक सूत्र ने बताया, ‘इस सैटलाइट का लॉन्च साल के आखिर में होना है।’ इसकी मदद से एयरफोर्स जमीन पर स्थित कई रेडार स्टेशनों, एयरबेसों और एयरबॉर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल (AWACS) एयरक्राफ्ट्स से सीधे जुड़ सकेगी। इसकी मदद से एयरफोर्स की कम्युनिकेशन संबंधित ताकत बढ़ेगी, साथ ही ग्लोबल ऑपरेशंस में विस्तार होगा।नई दिल्ली(5 जुलाई): हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखल और सिक्किम में सीमा विवाद के बाद भारत बेहद चौकन्ना हो गया है। इंडियन नेवी की ‘आसमानी आंख’ यानी जीसैट-7 सैटलाइट के जरिए ड्रैगन की गतिविधियों पर पैनी नजर है।

खास तौर पर मिलिटरी इस्तेमाल के लिए ही इस सैटलाइट को 29 सितंबर 2013 को अंतरिक्ष में भेजा गया था। 2625 किलो वजनी इस सैटलाइट का नाम है रुक्मिणी। इसके जरिए हिंद महासागर के विस्तृत जलक्षेत्र में 2000 किमी तक के दायरे में निगरानी करना भारतीय नेवी के लिए बेहद आसान हो गया है। – कम्युनिकेशन और सर्विलांस, दोनों ही काम में इस्तेमाल हो सकने लायक यह मल्टिबैंड सैटलाइट पृथ्वी से करीब 36 हजार किमी ऊंचाई पर धरती की कक्षा में मंडरा रहा है। यह जंगी बेड़ों, सबमरीन, समुद्री एयरक्राफ्ट की गतिविधियों का रियल टाइम अपडेट मुहैया कराता है। इस सैटलाइट की मदद से अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक पर नजर रखना मुमकिन हो सका है।

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> इसकी मदद से फारस की खाड़ी से लेकर मलक्का जलसंधि तक सेना की संचार और निगरानी की ताकत में बड़ा इजाफा हुआ है। – 2013 में भारत के पास 4 टन वर्ग के सैटलाइट को लॉन्च करने के लिए आधुनिक जीएसएलवी रॉकेट नहीं थे। इसकी वजह से भारत को 185 करोड़ रुपये कीमत वाले जीसैट-7 सैटलाइट को फ्रेंच गुएना से लॉन्च करवाना पड़ा था। इस लॉन्च से पहले नेवी किसी तरह के कम्युनिकेशन के लिए ग्लोबल मोबाइल सैटलाइट कम्युनिकेशन सर्विसेज इनमरसैट पर आधारित थी। -अब भारतीय वायुसेना के लिए भी इसी तरह का एक अन्य सैटलाइट Gsat-7A विकसित किया जा रहा है। एक सूत्र ने बताया, ‘इस सैटलाइट का लॉन्च साल के आखिर में होना है।’ इसकी मदद से एयरफोर्स जमीन पर स्थित कई रेडार स्टेशनों, एयरबेसों और एयरबॉर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल (AWACS) एयरक्राफ्ट्स से सीधे जुड़ सकेगी। इसकी मदद से एयरफोर्स की कम्युनिकेशन संबंधित ताकत बढ़ेगी, साथ ही ग्लोबल ऑपरेशंस में विस्तार होगा।

आगे पढ़े : राहुल गांधी से कैप्‍टन अमरिंदर की मुलाकात

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