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HIV पॉजिटिव महिला की कोख में पल रहा 26 हफ्ते का भ्रूण, SC ने दिया जांच का आदेश

नई दिल्ली, 03 मई = सुप्रीम कोर्ट ने एक एचआईवी पॉजिटिव महिला का मेडिकल परीक्षण कराने का आदेश दिया है जिसके गर्भ में 26 हफ्ते का भ्रूण है । महिला ने अपने भ्रूण को हटाने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है । सुप्रीम कोर्ट ने एम्स को मेडिकल बोर्ड का गठन करने और शनिवार तक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है ।

सुप्रीम कोर्ट उस रिपोर्ट के आधार पर ये तय करेगा कि महिला को गर्भपात की इजाजत दी जाए या नहीं । पटना की रहनेवाली इस महिला को हवाई यात्रा से एम्स लाया जाएगा । इस हवाई यात्रा का खर्च केंद्र सरकार वहन करेगी । आपको बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिग्नेंसी एक्ट के मुताबिक बीस हफ्ते से ज्यादा का भ्रूण हटाया नहीं जा सकता है ।

27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला के 27 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की अर्जी को नामंजूर कर दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद कहा कि डॉक्टरों की राय के मुताबिक याचिकाकर्ता का स्वास्थ्य सामान्य है और कोई खतरा नहीं है ।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी को एक महिला को उसके 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी थी । उस भ्रूण में डाउन सिंड्रोम की समस्या थी । महिला के भ्रूण के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय थी कि भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को बचने की संभावना है । मेडिकल बोर्ड की इसी राय पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महिला को भ्रूण हटाने से मना कर दिया ।

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उसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी को मुंबई की एक 22 वर्षीया महिला के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत दी थी । मुंबई के केईएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद कम है क्योंकि उसकी किडनियां नहीं थी । अस्पताल की रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने का आदेश दिया था ।

16 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की एक 22 वर्षीय महिला को उसके गर्भ में पल रहे असामान्य भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी थी । उसका भ्रूण भी 24 हफ्ते का था । उक्त महिला की मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण की खोपड़ी विकसित नहीं हुई है और इसके जीवित बचने की उम्मीद बहुत कम है ।

पिछले साल 25 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप पीड़िता को 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाज दी थी। उस महिला की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि गर्भ में कई जन्‍मजात विसंगतियों की वजह से पीड़िता की जान खतरे में है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर गर्भ को गिराया नहीं गया तो महिला की शारीरिक और मानसिक रुप से नुकसान उठाना पड़ सकता है। बोर्ड ने सलाह दी थी कि पीड़िता का गर्भ 24 सप्‍ताह का होने के बावजूद उसका सुरक्षित तरीके से गर्भपात किया जा सकता है।

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