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आतंक की राह पर बलूच

– प्रमोद भार्गव

जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, एकदिन वही उसमें गिरता है। पाकिस्तान का यही हश्र होता दिखाई दे रहा है। कराची में पाकिस्तान के सबसे पुराने और इकलौते ‘पाकिस्तान स्टॉेक एक्सचेंज’ पर आतंकियों ने बड़ा हमला बोला है। हमलावर पाक के मित्र चीन के सुरक्षा बलों द्वारा पहनने वाली वर्दी पहने हुए थे। कार से पहुंचे इन हमलावरों ने इमारत में दाखिल होने से पहले हथगोले फेंके और एके-47 से फायरिंग की। इस हमले में कुल 11 लोग मारे गए हैं। हमलावर बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की माजिद ब्रिग्रेड के सदस्य थे। पुलिस ने चारों हमलावरों को मार गिराया। इनके पास से बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री मिली है। बलूचिस्तान में बीएलए लंबे समय से पाकिस्तान से मुक्ति के लिए अलगाववादी आंदोलन चला रही है। लेकिन बलूचिस्तान से बाहर कराची जैसे शहर में आतंकी चेहरे के रूप में यह शायद पहली बार देखने में आई है।

महजबी गर्भ से उपजे आतंकवादियों ने पाकिस्तान के पेशावर में भी कुछ साल पहले बड़ा हमला बोला था। यह हमला सैनिक पाठशाला में बोला गया था। करीब डेढ़ सौ छात्रों को एक कतार में खड़ा करके मौत के घाट उतार दिया था। निर्दोष व निहत्थे बचपन को खून में बदलने वाले ये हत्यारे वाकई दरिंदे थे क्योंकि इन्होंने वारदात की जिम्मेदारी लेने में एक तो देरी नहीं की थी। दूसरे उन्होंने क्रूर मंशा जताते कह भी दिया कि ‘फौजियों के बच्चों को इसलिए मारा गया है, ताकि तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ वजीरिस्तान में पाक फौज जो मुहिम चला रही है, पाक सैनिक अपनों के मरने की पीड़ा को समझ सकें।’ जाहिर है, ये नए-नए आतंकी गिरोह खड़े करके अपने घिनौने और बर्बर मंसूबों को हिंसक वारदातों से साधने में लगे हैं। लिहाजा इस पागलपन का इलाज अब वैश्विक स्तर पर खोजना जरूरी है। कराची के पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में खेली इस खूनी होली को पाकिस्तान को एक बड़ी चेतावनी के रूप में लेने की जरुरत है। क्योंकि जिन्हें उसने भारत के खिलाफ खड़ा किया था, अब वे उसी के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं। हालांकि यह घटना उसी के बोए बीजों का परिणाम है। इन बीजों को जमीन में डालते वक्त पाकिस्तान ने यह कतई नहीं सोचा होगा कि ये कल विष-फल निकलेंगे। इनके विषैले होने का पाकिस्तान को अब पता चल रहा है। एक बार आतंकियों ने पाक सेना के कराची हवाई हड्डे पर हमला बोलकर उसे कब्जाने की कोशिश की थी।

दरअसल बलूचिस्तान ने 73 साल पहले हुए पाक में विलय को कभी स्वीकार नहीं किया। पाक की कुल भूमि का 40 फीसदी हिस्सा बलूचिस्तान में है। करीब 1 करोड़ 30 लाख की आबादी वाले इस हिस्से में सर्वाधिक बलूच हैं। पाक और ब्लूचिस्तान के बीच संघर्ष 1945, 1958, 1962-63, 1973-77 में होता रहा है। 77 में पाक द्वारा दमन के बाद करीब 2 दशक तक शांति रही। लेकिन 1999 में परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने बलूच भूमि पर सैनिक अड्डे खोल दिए। इसे बलूचों ने अपने क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश माना और फिर से संघर्ष तेज हो गया। इसके बाद यहां कई अलगाववादी आंदोलन वजूद में आ गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी है। इसी ने कराची के स्टॉक एक्सचेंज पर खूनी हमला बोला। साफ है, बलूचों का अलगाववादी आंदोलन अब आतंकी हमलों के रूप में आगे बढ़ रहा है। वैसे भी इस पूरे क्षेत्र मेंं अलगाव की आग निरंतर सुलग रही है। नतीजतन 2001 में यहां 50 हजार लोगों की हत्या पाक सेना ने कर दी थी। इसके बाद 2006 में अत्याचार के विरुद्ध आवाज बुलंद करनेवाले 20 हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को अगवाकर लिया गया था, जिनका आजतक पता नहीं है। 2015 में 157 लोगों के अंग-भंगकर दिए थे। फिलहाल बलूचिस्तान के जाने-माने एक्टिविस्ट बाबा जान इन मुद्दों को विभिन्न मंचों से उठाते रहते हैं। पिछले 18 साल से जारी दमन की इस सूची का खुलासा एक अमेरिकी संस्था ‘गिलगिट-बलूचिस्तान नेशनल कांग्रेस’ ने किया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में लोगों पर होने वाले जुल्म एवं अत्याचार के बाबत पाक को दुनिया के समक्ष जवाब देना होगा। कालांतर में उसे इस क्षेत्र को मुक्त भी करना होगा?

यह सही है कि जब राजा हरि सिंह कश्मीर के शासक थे, तब पाकिस्तानी कबाइलियों ने अचानक हमला करके कश्मीर का कुछ हिस्सा कब्जा लिया था। तभी से पाकिस्तान उसे अपना बताता आ रहा है, जो पूरी तरह असत्य है। गोया, पाक अधिकृत कश्मीर न केवल भारत का है, बल्कि वहां के लोग गुलाम कश्मीर को भारत में शामिल करने के पक्ष में भी आ रहे हैंं। पाक अधिकृत कश्मीर में पाक सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन लगातार होते रहते हैं। इसकी वजह, वहां हो रहे नागरिकों का शोषण और दमन है। इस दमन की तस्वीरें व वीडियो निरंतर मीडिया में सुर्खियां बनते रहते हैं। गिलगित और बलूचिस्तान पर पाक ने सेना के बूते अवैध कब्जा कर लिया था, तभी से यहां राजनीतिक अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक समाज का दमन किया जा रहा है। यह आग अस्तोर, दियामिर और हुनजासमेत उन सब इलाकों में सुलग रही है, जो शिया बहुल हैं। सुन्नी बहुल पाकिस्तान में शिया और अहमदिया मुस्लिमों समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यक प्रताड़ित किए जा रहे हैं। अहमदिया मुस्लिमों के साथ तो पाक के मुस्लिम समाज और हुकूमत ने भी ज्यादती बरती है। 1947 में उन्हें गैर मुस्लिम घोषित कर दिया गया था। तबसे वे पाकिस्तान में न केवल बेगाने हैं, बल्कि मजहबी चरमपंथियों के निशाने पर भी हैं।

पीओके और बलूचिस्तान पाक के लिए बहिष्कृत क्षेत्र हैं। पीओके की जमीन का इस्तेमाल वह, जहां भारत के खिलाफ शिविर लगाकर गरीब व लाचार मुस्लिम किशोरों को आतंकवादी बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है, वहीं बलूचिस्तान की भूमि से खनिज व तेल का दोहनकर अपनी आर्थिक स्थिति बहाल किए हुए है। अकेले मुजफ्फराबाद में 62 आतंकी शिविर हैं। यहां के लोगों पर हमेशा पुलिसिया हथकंडे तारी रहते हैं। यहां महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं है। गरीब महिलाओं को जबरन वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। 50 फीसदी नौजवानों के पास रोजगार नहीं है। 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। 88 प्रतिशत क्षेत्र में पहुंच मार्ग नहीं है। बावजूद पाकिस्तान पिछले 73 साल से यहां के लोगों का बेरहमी से खून चूसने में लगा है। जो व्यक्ति अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है उसे सेना, पुलिस या फिर आइएसआई उठा ले जाती है। पूरे पाक में शिया मस्जिदों पर हो रहे हमलों के कारण पीओके के लोग मानसिक रूप से आतंकित हैं। दूसरी तरफ पीओके के निकट खैबूर पख्तूनख्वा प्रांत और कबाइली इलाकों में पाक फौज और तालिबानियों के बीच अक्सर संघर्ष जारी रहता है, इसका असर गुलाम कश्मीर को भोगना पड़ता है। नतीजतन यहां खेती-किसानी, उद्योग-धंधे, शिक्षा-रोजगार और स्वास्थ्य-सुविधाएं तथा पर्यटन सब चौपट हैे। गोया यहां के लोग पाकिस्तान से स्वतंत्रता की राह तलाश रहे हैं। कराची में लिखी गई खूनी इबारत इसी मंशा की पर्याय है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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