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जानिए आखिर क्या है ‘राफेल डील’ , इसे लेकर क्यों छिड़ा हैं बीजेपी-कांग्रेस में विवाद

नई दिल्ली : लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भारत – फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान के सौदे का मुद्दा जोरशोर से उठाया और सरकार पर करारा हमला बोला. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बारे में देश से झूठ भी बोला है.

हालांकि बाद में राहुल गांधी के इस बयान पर हंगामा हुआ. रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने तथ्य पेश किये और थोड़ी देर में ही फ्रांस सरकार ने भी बयान जारी कर अपना पक्ष रखा. फ्रांस ने कहा कि भारत के साथ 2008 में किया गया सुरक्षा समझौता गोपनीय है और दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों की संचालन क्षमताओं के संबंध में इस गोपनीयता की रक्षा करना कानूनी रूप से बाध्यकारी है. आपको बता दें कि राफेल डील के मुद्दे पर पहले से ही कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग चलती रही है. कांग्रेस लगातार लड़ाकू विमानों की कीमत में बढ़ोतरी और अपारदर्शिता का आरोप लगाती रही है. जबकि भाजपा ने इससे इनकार किया है.

आइये आपको बताते हैं कि आखिर क्या है ‘राफेल डील’  और क्यों छिड़ा है इस पर विवाद. 

  1. भारत को सुरक्षा के मोर्चे पर तमाम पड़ोसी देशों से मिल रही चुनौतियों के बीच वायुसेना की ताकत को बढ़ाने का निर्णय लिया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक इसकी पहल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की और 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा. हालांकि यह प्रस्ताव कांग्रेस की अगुवाई वालीयूपीए सरकार में परवान चढ़ा. 
  2. यूपीए सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई वालीरक्षा खरीद परिषद ने अगस्त 2007 में 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी दे दी. फिर बिडिंग यानी बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया.
  3. रिपोर्ट्स के मुताबिक लड़ाकू विमानों की रेस मेंअमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे, लेकिन राफेल ने बाजी मारी. 
  4. कहा गया कि राफेल की कीमत दौड़ में शामिलबाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी और इसका रख-रखाव भी काफी सस्‍ता था. दूसरी तरफ, ये 3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है. यही वजह थी कि डील राफेल के पाले में गई. उसके बाद भारतीय वायुसेना ने कई विमानों का तकनीकी परीक्षण और जांच किया. यह प्रक्रिया 2011 तक चलती रही. 
  5. वायुसेना ने जांच-परख के बाद 2011 में कहा कि राफेल उसके पैरामीटर पर खरे हैं. अगले साल यानी 2012 में राफेल को बिडर घोषित किया गया और इसके उत्पादन के लिएडसाल्ट ए‍विएशन के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि तमाम तकनीकी व अन्य कारणों से यह बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. 
  6. रिपोर्ट्स की मानें तो 2012 से लेकर 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला. कहा गया किडसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी.
  7. मामला अटका रहा. साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए तो दोबारा राफेल को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई. वर्ष 2015 में पीएम मोदी फ्रांस गए और उसी दौरान राफेल लड़ाकूविमानों की खरीद को लेकर समझौता किया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द उड़ान के लिए तैयार 36 राफेल लेने की बात की थी. 
  8. पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे. वहीं लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ.
  9. भारत-फ्रांस के बीचसमझौता होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू होने की बात थी. लेकिन इसी बीच ‘राफेल डील’ को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षियों के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई. खरीद में अपारदरर्शिता के आरोप लग रहे हैं. 
  10. कांग्रेसनेताओं का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ चुका रही थी. वहीं अब मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये रही है. कांग्रेस का आरोप है कि अब एक विमान का दाम 1555 करोड़ रुपये हैं. जबकि कांग्रेस ने 428 करोड़ रुपये में डील तय की थी. कांग्रेस लगातार डील की रकम को सार्वजनिक करने की मांग पर अड़ी है. जबकि भाजपा दोनों देशों के बीच हुए सुरक्षा समझौते की गोपनीयता का हवाला दे रही है. 

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