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नमामि गंगे कार्यक्रम को सुदढ़ बनाने के लिए जीआईएस प्रोद्यौगिकी का उपयोग

नई दिल्ली (ईएमएस)। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्रौद्योगिकी का उपयोग करके गंगा कायाकल्प कार्य को पूरा करने के उद्देश्य से 1767 में गठित भारत के सबसे पुराने विभाग, भारतीय सर्वेक्षण विभाग को अपने साथ जोड़ा है। इस परियोजना को कार्यकारी समिति की बैठक में मंजूर किया था और इसकी अनुमानित लागत 86.84 करोड़ रूपये है। एनएमसीजी का लक्ष्य राष्ट्रीय/राज्य/स्थानीय स्तर पर योजना निर्माण तथा इसका कार्यान्वयन है। परियोजना में डिजीटल इलिवेशन मॉडल (डीईएम) प्रौद्योगिकी का उपयोग शामिल है जो सटीक आंकड़ा संग्रह सुनिश्चित करता है।

यह नदी-बेसिन प्रबंधन योजना का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। डीईएम प्रौद्योगिकी पूरे क्षेत्र की स्थलाकृति की पहचान करता है। इससे नीति निर्माता आसानी से उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण कर सकते हैं। इस प्रकार यह नीति निर्माण प्रक्रिया को सहायता प्रदान करता है। इस तकनीक से महत्त्वपूर्ण स्थानों की पहचान की जा सकती है। जीआईएस प्रोद्योगिकी का उपयोग विकेंद्रीकरण भी सुनिश्चित करेगा। संग्रह किये गए आंकड़ों तथा सरकार द्वारा उठाए गये कदमों की जानकारी पोर्टल व मोबाईल एप के माध्यम से स्थानीय लोगों के साथ साझा की जा सकती है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में गंगा बेसिन राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को सुदृढ बनाने से संबंधित एक परियोजना को मंजूरी दी है ताकि वे समय-समय पर जल की गणवत्ता सत्यापित कर सकें। प्रदूषण मूल्यांकन और जल गुणवत्ता निगरानी के लिए प्रयोगशालाओं में आधुनिक उपकरण लगाए जाएंगे तथा प्रशिक्षित विज्ञानकर्मियों को नियुक्त किया जाएगा। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को सुदृढ बनाने की परियोजना की अनुमानित लागत 5 वर्षों के लिए 85.97 करोड़ रू है।

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