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बीजेपी के लिए आसान नहीं दक्षिण विजय , अपनानी होगी खास रणनीति

चेन्नई (ईएमएस)। उत्तर भारत में पक रही गठबंधनों की ताजा खिचड़ी की तो खूब चर्चा हो रही है। लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति की सुध न लेना आश्चर्यजनक है। यहां भी कर्नाटक में नए नेताओं के उभार ने 2019 का आम चुनाव दिलचस्प रहने के आसार बना दिए हैं। राज्य में 2014 में 18 लोकसभा सीटें जीतने के बावजूद बीजेपी के सामने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की कन्नड़ गौरव और लिंगायतों को स्वतंत्र धर्म का दर्जा देने की राजनीति ने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। दक्षिण भारत में पांच राज्य हैं और यहां की 130 सीटें अगली लोकसभा में निर्णायक भूमिका निभाएंगी। उत्तर, पूरब और पश्चिमी भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा कमजोर पड़ने से लोकसभा में बीजेपी की सीटें घटने की अटकलों के बीच दक्षिण से उनकी भरपाई के लिए आरएसएस हाथ-पांव मार रहा है।

यहां कांग्रेस भी गठबंधन बनाने के फेर में है। केंद्र में साल 1998 और 1999 में वाजपेयी और 2004 और 2009 में कांग्रेस की सरकार इन्हीं राज्यों की बदौलत बनी थी। एनडीए को भी दक्षिण में अब जिताऊ राजनीतिक गठजोड़ करने होंगे। लेकिन आंध्र प्रदेश में तेलुगूदेशम से बीजेपी का पुराना गठबंधन टूटने पर एनडीए सरकार अपने 16 समर्थक सांसद और दो मंत्री खो चुकी है। उसे आंध्र की सत्ता में भागीदारी से भी हाथ धोने पड़े हैं। उसके चार विधायकों में से दो चंद्रबाबू सरकार में मंत्री थे। इधर, बीजेपी उपचुनावों में अपनी आठ सीटें गंवा चुकी है, जबकि स्वाभिमान पक्ष की एक सीट से एनडीए हाथ धो चुका है। लोकसभा में एनडीए की सदस्य संख्या 2014 में 336 से घटकर 311 रह गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में एनडीए की सीटें 2019 में घटने के कयास लगाए जा रहे हैं। इन्हीं राज्यों ने नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत देकर सरकार बनवाई थी। लेकिन बेरोजगारी, कृषि संकट और बढ़ते सामाजिक वैमनस्य के कारण अब जनता का बीजेपी से मोहभंग हो रहा है, जिसका इज़हार लोग लोकसभा के उपचुनावों में लगातार कर रहे हैं।

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हालांकि इसी दौरान बीजेपी ने अनेक राज्यों में सत्ता हासिल की है। मगर उनमें से अधिकतर में शासक दल की 10-15 या 25 साल से सरकार थी। इसलिए विकल्प मिलते ही लोगों ने निजाम पलट दिया। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और झारखंड अपवाद हैं, क्योंकि वहां हर पांच साल में सरकार पलटने की परंपरा है। तीन राज्यों में बीजेपी ने चुनाव हारने के बावजूद जोड़तोड़ से सरकार बना ली। लेकिन कर्नाटक में मोदी की छवि पर ग्रहण की आशंका से बीजेपी भयभीत है। चार राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में उसका कहीं भी ठोस आधार नहीं है। इनमें लोकसभा की कुल 102 सीटें हैं, जो सदन की 543 सीटों की करीब 19 फीसदी हैं। इसलिए इन राज्यों में बीजेपी को स्थानीय दलों से समझौता करके उन्हीं की साख पर चुनाव लड़ना होगा।

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