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योगी ने गैर-यादव ओबीसी को लुभाने के लिए बनाई रणनीति

नई दिल्ली (ईएमएस)। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सपा बसपा के गठजोड़ से मुकाबले के लिए राजनीतिक तौर पर दो महत्वपूर्ण फैसले लेने वाली है। भाजपा सरकार राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा को तीन उप-वर्गों में विभाजित करने के अलावा 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करके सपा-बसपा गठबंधन द्वारा पेश चुनौती से मुकाबला करने की रणनीति बनाई है। राज्य सरकार ने यह निर्णय सन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की जातिगत चुनौती से निपटना है।

इस महीने की शुरुआत में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लखनऊ दौरे के समय उन्हें शिकायत मिली थी कि अफसर सांसदों, विधायकों और कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुन रहे हैं। राज्य के पिछड़ा कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने बुधवार को मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें 27 फीसदी के ओबीसी कोटा को पिछड़ा, अधिक पिछड़ा और अत्यधिक पिछड़ा में बांटने का प्रस्ताव है। राजभर ने बताया कि उन्हें शाह ने 11 अप्रैल को हुई बैठक में ऐसा करने का निर्देश दिया था। इससे भाजपा को विधानसभा चुनाव में समर्थन देने वाली गैर-यादव ओबीसी जातियों को फायदा मिलने की उम्मीद है।

एक अन्य प्रस्ताव ओबीसी कोटा से 17 जातियों को एससी कोटा में शामिल करने से जुड़ा है। यह योजना शुरुआत में राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के दौरान बनाई थी। इससे एससी कोटे में आने वाले जाटव दलितों की ताकत कम हो सकती है, जो बहुजन समाज पार्टी का बड़ा वोट बैंक माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बताया, ‘इन प्रस्तावों पर कोई अंतिम फैसला नहीं किया गया है, लेकिन भाजपा सैद्धांतिक तौर पर इनके पक्ष में है।

ओबीसी में सबसे अधिक पिछड़ों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, जबकि वे इसके लिए सबसे अधिक पात्र हैं। समाजवादी पार्टी ने ओबीसी में केवल यादवों को फायदा पहुंचाया है और मायावती एससी में केवल जाटवों के पक्ष में रही हैं। यह सरकार गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों सहित सभी जातियों को फायदा पहुंचना चाहती है। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 80 में से 73 सीटें जीती थी। लेकिन अब राज्य में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ आने से उसके लिए जाति की राजनीति को लेकर चुनौती बढ़ गई है।

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