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कोरोना कालः गेहूं की कटाई का संकट

– रमेश ठाकुर

मार्च-अप्रैल ये दो माह किसानों के लिए खेतीबाड़ी के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन दो महीनों के दौरान रबी की फसलों की कटाई होती है और उसके तुरंत बाद दूसरी सीजनल फसलों की रोपाई-बुवाई होती है। पर इसबार सबकुछ गुड़गोबर हो गया। किसान हाथ पर हाथ धरे मजबूरन घरों में कैद हैं। खेतों में खड़ी फसलें अपने किसानों का इंतजार कर रही हैं लेकिन किसान खेतों तक पहुंचे तो पहुंचे कैसे? लॉकडाउन और कोरोना संकट से किसान मुसीबत में हैं। गेहूं की फसल खेतों में पकी खड़ी है और उसे तुरंत काटने की जरूरत है। पर, लॉकडाउन में यह संभव नहीं हो पा रहा है। हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ है।

महामारी से बचने के लिए समूचा देश लॉकडाउन है। नियमानुसार पुलिस शहरों के अलावा गांव-कस्बों में भी तैनात है, बाहर आने-जाने की सख्त मनाही है। कोई निकलने की कोशिश करता भी है तो पुलिस डंडों से उसका स्वागत कर रही है। फसल कटाई के अलावा बाजार भी संकट में है। फसल कटाई को लेबर नहीं है तो बाजारों से ग्राहक नदारद। मजदूरों, कंबाइन, हार्वेस्टर, थ्रेशर, ट्रैक्टर व अन्य उपकरणों की आवाजाही ठप होने के कारण गेहूं, दलहन, तिलहन जैसी रबी फसलों की कटाई रुकी हुई है। गेहूं कटाई को लेकर सरकार ने फौरी तौर पर किसानों से कहा है कि सामाजिक दूरियों का पालन करते हुए किसान अपने खेतों की कटाई-मड़ाई कर सकते हैं लेकिन गेहूं कटाई की मशीनें उपलब्ध नहीं हैं। इस कारण किसान अधर में फंसे हुए हैं। करें तो करें क्या? कुछ समझ में नहीं आ रहा। चिंता की लकीरें माथे पर लगातार खिंचती जा रही हैं।

बहरहाल, कुछ राज्यों में मध्य-मंझले किस्म के किसान चोरी-छिपे किसी तरह अपनी फसलें काटने में सफल भी हो रहे हैं तो उनके अनाज को खरीदने वाला कोई नहीं। इस कारण किसान औने-पौने भाव में अपनी फसल को अनाधिकृत आढ़तियों को बेचने पर मजबूर हैं। जबकि, संकट की इस घड़ी में उचित दामों पर केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा अधिकृत सरकारी मंडियों को खुद किसानों के पास उनका अनाज खरीदने जाना चाहिए। साथ ही भुगतान भी तत्काल प्रभाव से करना चाहिए। गेहूं के अलावा खेतों में इस समय गन्ना, सरसों और मसूर आदि की भी फसलें पकी खड़ी हैं लेकिन उनकी भी कटाई के लिए लेबरों का टोटा है। लाॅकडाउन की सख्ती देख मजदूर घरों से बाहर नहीं निकल रहे। मौसमी हरी सब्जियां भी खेतों में ग्राहकों के इंतजार में हैं। बिक्री न हो पाने से सब्जी किसान भी संकट में हैं।

गौरतलब है कि गेहूं की कटाई की आधुनिक मशीन जिसे कंबाईन कहते हैं, उससे विगत कुछ वर्षों से ज्यादा होने लगी है। क्योंकि जिस फसल को काटने में किसानों को कई दिन लगते थे, उसे कंबाईन कुछ मिनट में काट देते हैं। कंबाईन से फसलें सरल और सुगम तरीके से कटती हैं। दरअसल, गेहूं की फसल ऐसी है जिसे वक्त पर नहीं काटा गया तो बर्बाद होने का डर रहता है। क्योंकि गेहूं ज्यादा पक जाने से उसके दाने जमीन पर झड़ने लगते हैं। कई किसान गेहूं काटकर उसी खेत में गन्ने की नई फसल की बुवाई भी करते हैं, उसका भी कोरोना संकट और लाॅकडाउन ने गणित बिगाड़ दिया। कुल मिलाकर इस वक्त कोई भी किसानों की समस्याओं का अंदाजा नहीं लगा सकता। भयंकर संकट का सामना कर रहे हैं अन्नदाता। अभी कुछ दिन पहले उन्होंने बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का सामना किया। उसमें भी करीब-करीब आधी फसल नष्ट हो गई थी, जो शेष बच गई, उसमें रही-सही कसर कोरोना ने निकाल ली। चौतरफा संकट ने किसानों की कमर तोड़ दी है।

पारंपरिक खेतीबाड़ी करने वाले किसानों के अलावा दूसरे किस्म की खेती करने वाले किसान भी हलकान हैं। जैसे फल, फूल व सब्जी उगाने वाला किसान भी मौजूदा आफत से बेहाल है। लॉकडाउन के चलते उनकी सब्जियां मंडियों तक नहीं पहुंच रहीं। नतीजा सब्जी खेतों में सड़नी शुरू हो गई है। सब्जियां बेकार न जाए इसका ख्याल रखते हुए किसान फेरी वालों को सस्ते भाव में सब्जियां बेचने को मजबूर हैं। बहरहाल, गेहूं की कटाई का समय जैसे-जैसे बीत रहा है और तापमान की तपिश बढ़ रही है। वैसे ही किसानों चिंताएं बढ़नी शुरू हो गई हैं। ऐसे में किसान खुद से कटाई करने की सोचते हैं। चौक-चौराहों पर खड़े पुलिसकर्मी लाॅकडाउन का हवाला देकर उन्हें घरों में जबरन वापस भेज देते हैं। महाराष्ट्र के नासिक में बीते दिनों कुछ किसानों से पुलिसकर्मियों से अपने खेतों में जाने की इजाजत मांगी तो पुलिसवालों ने कहा, अगर ऐसे सबको परमीशन देने लगे तो लॉकडाउन का फिर क्या मतलब? कई तरह के तर्क दिए जा रहे हैं।

किसान वैसे ही विगत कुछ समय से तमाम परेशानियों से घिरा हुआ है। गन्ने का बकाया भुगतान अभीतक उनको नहीं मिला। रबी की फसल की बुवाई के लिए उन्होंने बैंकों से कर्ज लिया था, उसका भुगतान कैसे करेंगे। समय से कटाई नहीं हुई तो खेत खाली नहीं हो पाएंगे, खेत खाली नहीं होने पर दूसरी फसलें समय पर नहीं लगा पाएंगे। अगर अगली फसल की बुवाई समय पर नहीं हुई तो देश में खाद्यान की भी भारी कमी हो जाएगी। हम दूसरी समस्याओं से मुकाबला कर सकते हैं लेकिन खाली पेट नहीं रह सकते। इसलिए अन्नदाताओं के लिए रास्ता सुगम करना ही होगा। गेहूं की कटाई समय पर होनी चाहिए, दूसरी फसल की बुवाई के लिए केंद्र सरकार को मुआवजे आदि की व्यवस्था करनी चाहिए। खाद-बीज सस्ते दामों पर मुहैया कराने चाहिए।

गौरतलब है कि गेहूं कट जाने के बाद अनाज की सरकारी खरीद प्रत्येक वर्ष पहली अप्रैल से अमूमन शुरू हो जाती है। पर, इसबार लॉकडाउन के कारण पंद्रह अप्रैल से खरीद की घोषणा की गई है। यानी पंद्रह दिन देरी से इसबार खरीद शुरू होगी। हिंदुस्तान के कई राज्य ऐसे भी हैं जहां होली त्योहार के ठीक बाद से गेहूं की कटाई होने लगती है। लेकिन, इसबार उन राज्यों में भी कटाई नहीं हो सकी। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड ऐसे राज्य हैं जहां गेहूं जल्दी तैयार होता है। सरकारी गेहूं खरीद में हो रही देरी निश्चित रूप से अन्नदाताओं की चिंताओं को बढ़ाने का काम करेंगी। किसानों की तत्कालिक समस्याओं के निवारण के लिए केंद्र व राज्यों सरकारों को तुरंत कोई विकल्प खोजना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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