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निवेशक आयेंगे तभी होगा विकास

– आर.के. सिन्हा

एक तरफ जब देश-दुनिया को कोविड-19 संक्रमण के कारण सिर्फ अशुभ समाचार ही मिल रहे हैं, उसी समय विभिन्न देशों के हजारों पेशेवर भारत आकर काम-धंधा शुरू करना चाह रहे हैं। वे भारत आने को बेताब हैं। ये जापान, साउथ कोरिया, अमेरिका और चीन से भी हैं। पर ये भारत क्यों नहीं आ पा रहे हैं। दरअसल भारत सरकार ने विगत 13 मार्च से संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों से जुड़े अफसरों और विदेशी राजनयिकों के अलावा अन्य सभी विदेशियों के भारत आने पर रोक लगा दी है। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया था, ताकि कोविड-19 के असर को बढ़ने से रोका जा सके। सरकार के फैसले के बाद भारत आने वाली सभी विदेशी उड़ानें स्थगित कर दी गई थी। अब इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार कर लेने में भलाई है कि सारी दुनिया के साथ हमें-आपको सबको कोविड-19 के साथ रहना होगा, जबतक इस वैश्विक महामारी की कोई वैक्सीन नहीं ईजाद होती। जबतक वैक्सीन नहीं आती तबतक इस संक्रमण से अपने को बचाना होगा। कैसे हम इससे बच सकते हैं, अब यह सबको पता है। शारीरिक दूरी कम-से-कम दो गज की।

कोविड-19 के कारण सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर हो रहा है। ये तबतक जारी रहेगा जबतक कोविड-19 पर विजय हासिल नहीं कर ली जाती। जब इस तरह की स्थिति हमारे सामने है, तब हम कबतक भारत में विदेशी पेशेवरों-निवेशकों की एंट्री रोक सकते हैं? देश को इस समय विदेशी पूंजी निवेश की सख्त दरकार है। इसी तरह देश को इस वक्त अधिक से अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे। नौकरियां तो चली ही जा रही हैं। बेरोजगारों के लिए अवसर तब ही बनेंगे जब हम विदेशियों को अपने यहां आकर काम करने की अनुमति फिर से देंगे। आखिर सरकार कबतक विदेशी नागरिकों की भारत में एंट्री पर रोक लगा सकती है। उसे अब इस लिहाज से विचार करना ही होगा। सरकार के शीर्ष स्तर पर इस बिन्दु पर विचार-विमर्श चल भी रहा होगा।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक, करीब दस हजार विदेशी पेशेवर, निवेशक, कॉरपोरेट एक्जीक्यूटिव, इंजीनियर और उद्यमी भारत आने के लिए बेताब हैं। ये भारत में पहले से काम कर भी रहे थे। इनके दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, मुंबई, बैंगलुरु, बावल आदि शहरों में अपने दफ्तर और औद्योगिक इकाइयां भी चल रही थीं, वे सब बंद हैं। इस कारण इनका भारी नुकसान हो रहा है। इनके भारतीय कर्मियों की क्या हालत होगी, ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है। निश्चित रूप से जब सरकार इन्हें देश में आने की हरी झंडी देगी तो कई स्तरों पर इसका लाभ भी होगा। इनके दफ्तरों और इकाइयों में काम भी चालू हो जाएगा। इस तरह लोगों को रोजगार मिलेगा, पगार भी मिलेगी। यानी जिंदगी पटरी पर वापस लौटेगी। अभी इस बात की ही तो सबसे अधिक जरूरत है। आपको स्मरण होगा कि भारत सरकार ने पिछली 5 फरवरी को चीन से आने वाली सभी उड़ानों पर रोक लगा दी थी। सरकार ने कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए यह कदम उठाया था। इससे भारत में काम करने वाले हजारों चीनी नागरिक जो चीनी नववर्ष मनाने गए थे वे अपने देश में ही फंस गए थे। अकेले दिल्ली-गुरुग्राम में तीन हजार से अधिक चीनी नागरिक अलीबाबा, हुआवेई, ओप्पो मोबाइल, मित्तु, बेडु जैसी कंपनियों में काम कर रहे हैं। हुआवेई में शायद सबसे ज्यादा चीनी पेशेवर हैं। इन सबकी इधर मोटी इनवेस्टमेंट भी है। इनके सामने वास्तव में दोतरफा संकट है। एक तो इन्हें कोविड-19 ने बर्बाद कर ही दिया और रही-सही कसर इनके अपने देश के धूर्त विस्तारवादी नीति ने पूरी कर दी। अभी चीनी नागरिकों को लेकर शायद ही भारत सरकार का रवैया नरम पड़े पर सरकार को जापान, साउथ कोरिया और अन्य देशों के नागरिकों को भारत में आने की इजाजत देने के संबंध में सोचना होगा। ये सबके सब भारत के मित्र राष्ट्र हैं।

सर्वविदित है कि भारत-जापान संबंधों का गौरवशाली इतिहास रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के घनिष्ठ संबंध भी हैं। इसके चलते भारत को लाभ भी हो रहा है। नरेन्द्र मोदी अपने जापानी समकक्ष को धर्मनगरी बनारस ले जा चुके हैं। दोनों ने दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में भाग भी लिया था। जापान भगवान गौतम बुद्ध के चलते अपने को भावनात्मक स्तर पर भारत के करीब पाता है। अब जापान भारत में बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट को लेकर आ रहा है। कहना न होगा कि बुलेट ट्रेन परियोजना भारत के लिए बेहद खास है।इस परियोजना के लिए जापान की तरफ से भारत को आसान शर्तों पर ऋण भी मिल रहा है। भारत- जापान संबंधों की तरह भारत के दक्षिण कोरिया से भी करीबी संबंध हैं। दक्षिण कोरिया भी भारत में भारी निवेश कर रहा है। अब राजधानी दिल्ली में एक कोरियन वार मेमोरियल भी बन रहा है। दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच 50 के दशक में हुए युद्ध में भारत समेत 22 देशों ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया था। इस तरह का कोरियाई युद्ध स्मारक सिर्फ भारत में ही नहीं था। अब यह कमी भी पूरी होने जा रही है।

भारत सरकार को जापान और दक्षिण कोरिया के नागरिकों को भारत में काम करने के लिए तुरंत वीजा देना होगा। भारत को अपने मित्र राष्ट्रों को पहचानना होगा। उन्हें हम चीन या पाकिस्तान जैसे देशों की श्रेणी में खड़ा नहीं कर सकते। इसके साथ ही, यदि हम चाहते हैं कि कोविड 19 के बाद चीन से बाहर जाने वाली कंपनियां हमारे यहां आए और निवेश करे, तो हमें भी कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। बातों से बात नहीं बनेगी। फिलहाल दक्षिण कोरिया की कंपनियां चीन से निकलकर वियतनाम का रुख करना अधिक पसंद कर रही हैं। भारत में विगत मार्च महीने तक 15 हजार दक्षिण कोरिया के नागरिक थे। अभी मात्र 2500 हजार के आसपास हैं। ये लॉकडाउन से पहले अपने देश गए थे, पर वापस नहीं आ पाए। अब ये तुरंत वापस आकर कामकाज चालू करना चाहते हैं। सरकार को इनकी मदद करने में देरी नहीं करनी चाहिए। सरकार की नीयत में कोई शक भी नहीं है पर आलसी और लापरवाह नौकरशाहों को कसना ही होगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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