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वार्षिकी : इंतजार होता रहा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का

नई दिल्ली, 28 दिसम्बर (हि.स.)। भारत को विश्व गुरू बनाने के इरादे की एक पहल के रूप में नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश की शिक्षा प्रणाली में समयानुकूल बदलाव के लिए वर्ष 2017 नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति निरूपित करने की ओर ठोस कदम उठाया। इसी वर्ष अप्रशिक्षित शिक्षकों को औपचारिक रूप से प्रशिक्षण हासिल करने के लिए एक वर्ष की और मोहलत दी गई तथा ऑनलाइन शिक्षा प्रकल्प ‘स्वयं’ शुरू किया गया। आर्थिक विश्व शक्ति के रूप में उभर रहे भारत में योग्य और कुशल मैनेजर तैयार करने के काम में लगे प्रबंधन संस्थानों को स्वायत्ता प्रदान की गई। वर्ष 2017 शिक्षा क्षेत्र में एक त्रासदी का भी साक्षी बना जब राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (नीट) को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने वाली दलित छात्रा की आत्महत्या का दुखद घटनाक्रम भी सामने आया। 

देश में लागू राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में बनी थी और इसमें वर्ष 1992 में संशोधन हुआ था। ऐसे में केंन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा पत्र पर अमल करते हुए 26 जून को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अंतिम प्रारूप तैयार करने के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्म विभूषण डॉ के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक नौ सदस्यीय समिति का गठन किया। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उस समय घोषणा की थी कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट दिसम्बर अंत तक आएगा उसके बाद उस पर संसद में चर्चा होगी और फिर वह अमल में आएगी। उन्होंने कहा कि 2020 से 2040 तक के दो दशकों के लिए एक आदर्श शिक्षा नीति तैयार की जा रही है। यह देश में शिक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। कस्तूरीरंगन के अनुसार, भारत ने दुनिया को ‘तक्षशिला’ और ‘नालंदा’ जैसे अनेक प्रभावशाली शिक्षा केन्‍द्र सुलभ कराए हैं। हालांकि आज के परिदृश्‍य में इस तरह के जुड़ाव का सख्‍त अभाव देखा जा रहा है। इस खाई को पाटकर भारतीय शिक्षा को आज की वैश्विक शिक्षा के उच्‍च स्‍तर के दायरे में लाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस वर्ष नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए ठोस पहल की है। सरकार ने उस समय इस समिति का पहला मसौदा दिसम्बर के अंत तक आने का दावा किया था लेकिन माना जा रहा है कि समिति ने तीन माह का और समय मांगा है। नई शिक्षा नीति को आलोचना का सामना न करना पड़े इसके लिए सरकार ने देश के 150 से अधिक शिक्षा विशेषज्ञों की इसमें राय ली और इसे तीन चरणों में लागू करने की योजना बनाई। नई शिक्षा नीति में सरकार ने पाठ्य सामग्री, परीक्षा प्रणाली, छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा में कौशल और रोजगार, स्कूली शिक्षा का स्तर, संस्कृत भाषा, उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार, नवाचार पर जोर और शिक्षकों को कौशल विकास के साथ ही छात्रों के अधिकार आदि सुनिश्चित करना भी शामिल है।

केंद्र सरकार का जोर ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने पर है ताकि कोई भी व्यक्ति कभी भी और कहीं से भी पढ़ाई कर सके। ‘स्वयं’ पोर्टल इस पूरी मुहिम को दिशा दे रहा है। 9 जुलाई को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने स्वयं पोर्टल लॉन्च किया था। स्वयं पोर्टल मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और अखिल भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) द्वारा माइक्रोसॉफ्ट की मदद से तैयार किया गया एक ऑनलाइन शिक्षा पोर्टल है। इस पर 9वीं कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर तक के कोर्स निशुल्क उपलब्ध हैं। इंजीनियरिंग, विज्ञान, मानविकी, भाषा, वाणिज्य, प्रबंधन, पुस्तकालय, शिक्षा भी हैं। स्वयं पोर्टल पर उपलब्ध पाठयक्रम के 4 भाग हैं – विडियो व्याख्यान, खास तौर से तैयार की गई अध्ययन सामग्री जो डाउनलोड और मुद्रित की जा सकती है, परीक्षा तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से स्व मूल्यांकन परीक्षा तथा अंतिम शंकाओं के समाधान के लिए ऑनलाइन विचार-विमर्श। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘स्वयं’ पोर्टल के माध्यम से सामाजिक विषय और विज्ञान क्षेत्र के लगभग 670 कोर्स संचालित किए जा रहे हैं। सरकार का दावा है कि इस साल अब तक पिछले पांच महीने से भी कम समय में लगभग 18 लाख छात्रों ने अलग-अलग पाठ्यक्रमों में अपना पंजीकरण कराया है। सरकार का लक्ष्य अगले साल तक देश-दुनिया के करीब एक करोड़ छात्रों को स्वयं पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा देना है। 

इस वर्ष 3 अक्टूबर को सेवाकालीन अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) के एक उत्कृष्ट कार्यक्रम प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (डी.एल.एड) की शुरुआत की गई। यह शिक्षकों की प्रोफेशनल दक्षता बेहतर करने और सूचना एवं संचार आधारित क्षमता निर्माण सुनिश्चित करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) के ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल) मोड में एक पहल है। इस अवसर पर जावड़ेकर ने कहा कि सभी अप्रशिक्षित शिक्षकों को मार्च, 2019 तक प्रशिक्षित किया जाएगा। शिक्षक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा छात्रों के अधिकार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है और सरकार 31 मार्च 2019 तक लगभग 15 लाख अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण देगी और पाठ्यक्रम के सफल समापन के बाद शिक्षकों को डिप्लोमा मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि ‘स्‍वयं’ की शुरुआत के बाद पहले वर्ष में हमने ऑनलाइन प्रशिक्षण में विश्व रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि 31 मार्च, 2019 के बाद इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की अवधि का कोई और विस्तार नहीं किया जाएगा।

विपक्ष के गतिरोध के बीच संसद के शीतकालीन सत्र में 19 दिसम्बर को राज्यसभा में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) विधेयक 2017 पास हो गया। यह पिछले सत्र से ही राज्यसभा में अटका हुआ था। लोकसभा इसे जुलाई में ही पास कर चुकी थी। इस पर संसद की मुहर लगने के बाद देश के सभी 20 आईआईएम अब स्वायत्त हो गए हैं। इस वर्ष 24 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) विधेयक 2017 को मंजूरी दी गई थी। इससे आईआईएम अपने छात्रों को डिग्री प्रदान कर सकेंगे। इन्हें राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है। विधेयक की मुख्य विशेषताएं : आईआईएम अपने छात्रों को डिग्री दे सकेगा, विधेयक संस्थानों को पर्याप्त जवाबदेही के साथ पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करता है। इन संस्थानों के प्रबंधन को बोर्ड द्वारा संचालित किया जाएगा, जिसमें बोर्ड द्वारा चयनित एक अध्यक्ष और निदेशक होंगे। बिल के अनुसार बोर्ड में विशेषज्ञों और पूर्व छात्रों की एक बड़ी भागीदारी भी महत्वपूर्ण विशेषता होगी। बोर्ड में महिला, अनुसूचित जातियों व जनजातियों के सदस्यों को शामिल करने के लिए भी प्रावधान किया गया है। यह विधेयक स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा संस्थाओं के प्रदर्शन की आवधिक समीक्षा और सार्वजनिक डोमेन पर उस परिणाम को रखना होगा। संस्थाओं की वार्षिक रिपोर्ट संसद में रखी जाएगी और सीएजी उनके खातों का लेखा-परीक्षण करेगी। एक सलाहकार निकाय के रूप में आईआईएम के समन्वयन फोरम का भी प्रावधान है।

इस वर्ष शिक्षा जगत के लिए जो दुखद वाकया सामने आया है वह तमिलनाडु का है। जहां 17 वर्षीय दलित मेधावी छात्रा अनीथा सरकार की नीति के कारण अपनी रूचि के विषय में दाखिला लेने से वंचित रह गई। हालांकि उसने आसानी से हार नहीं मानी और सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के खिलाफ याचिका दायर कर चुनौती दी। उसका मानना था कि नीट ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के हितों के खिलाफ है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसके अपील को ख़ारिज कर दिया इसके बाद उसने आत्महत्या कर ली। अनीथा की मौत के बाद राजनेता और फिल्म अभिनेता सहित तमाम लोग एकजुट हो गए और केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किए। अनीथा ने तमिलनाडु स्टेट बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में 1200 में से 1176 नंबर हासिल किए थे। इस आधार पर उसे एमबीबीएस प्रवेश मिल जाता लेकिन नीट परीक्षा का नियम लागू होने से वह इससे वंचित रह गई। असल में वह नीट परीक्षा में केवल 86 नंबर प्राप्त कर सकी थी। 

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