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सामाजिक समावेशन के लिए नई रणनीतियों की जरूरतः मंत्री हरदीप पुरी

नई दिल्ली (ईएमएस)। आवासन और शहरी कार्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप पुरी ने शहरों में आर्थिक और सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करने के लिए नई रणनीतियों और प्रगतिशील शहरी नीति की जरूरत पर जोर दिया। स्वच्छता पर एक डीएवाई-एनयूएलएम राष्ट्रीय कार्यशाला के शुभारंभ के अवसर पर उन्होंने उम्मीद जताई कि राज्यों में इन्हें लागू किए जाने से नवीन समाधान और जानकारियां मिलेंगी, जिससे ज्यादा समावेशी और मुक्त शहरी अर्थव्यवस्थाएं तैयार करने की नई संभावनाएं पैदा होंगी। कार्यशाला के दौरान आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय में सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा, मिशन निदेशक, कई राज्यों के पुरस्कार विजेता और कई पक्षधारक भी मौजूद रहे है। मंत्री ने कहा कि डीएवाई-एनयूएलएम के प्रमुख उद्देश्यों में गरीबी उन्मूलन, समावेशी आर्थिक विकास, उत्पादक रोजगार और लिंग समानता हासिल करना शामिल है। विशेषकर शहरी गरीब महिलाओं के स्व सहायता समूहों (एसएचजी) और उनके क्षेत्र स्तरीय संगठन जमीनी स्तर के संस्थानों के तौर पर सामने आए हैं, जिनमें शहरी विकास के प्रति नजरिए में बदलाव लाने की भी संभावाएं हैं।

आज यहां दिए गए पुरस्कारों का विवरण देते हुए मंत्री ने कहा कि मंत्रालय ने जुलाई, 2017 में स्वच्छता उत्कृष्टता पुरस्कारों की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य खुले में शौच को खत्म करना, स्वच्छता की स्वस्थ प्रक्रियाओं को अपनाने की दिशा में व्यवहारगत बदलाव, स्वच्छता के प्रति जागरूकता पैदा करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य से इसको जोड़ना, आधुनिक और वैज्ञानिक ठोस कचरा प्रबंधन सहित स्वच्छता के क्षेत्र में पहलों के लिए क्षेत्र स्तरीय संगठनों (एएलएफ) को मान्यता देना और प्रोत्साहन देना है। पुरस्कारों के लिए राज्यों द्वारा भेजे गए नामांकनों में विजेता एएलएफ का चयन किया गया है। उन्होंने कहा कि पुरस्कार लेने के लिए यहां आए एएलएफ प्रतिनिधियों को देखकर मैं काफी खुश हूं। स्वच्छ भारत मिशन- शहरी (एसबीएम-यू) के अंतर्गत व्यापक स्वच्छता बुनियादी ढांचा तैयार किया है। इस बुनियादी ढांचे के प्रबंधन और रखरखाव के लिए खासे संसाधनों की जरूरत है। डीएवाई-एनयूएलएम में मांग पूरी करने के लिए कुशल कार्यबल तैयार करने की क्षमता है। डीएवाई-एनयूएलएम और एसबीएम-यू के दिशानिर्देश स्वच्छता की इस व्यवस्था में आजीविका पैदा करने के उद्देश्य से तैयार किए गए हैं। इसमें स्वच्छता के क्षेत्र में औपचारिक रोजगार के साथ ही उद्यमों को बढ़ावा देकर आजीविका बढ़ाने पर जोर दिया है, जो इस क्षेत्र में बढ़ती कुशल कार्यबल की मांग को पूरा करके संभव होगा। इसे लागू करने के लिए राज्यों द्वारा दिशानिर्देशों को अपनाया जा सकता है।

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