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सनातन धर्म का सर्वोच्च पद विवादों में: दण्डी समिति

इलाहाबाद, 26 जून = हमारे सनातन धर्म का सर्वोच्च पद जगद्गुरू शंकराचार्य का विवादों के घेरे में पड़ा हुआ है, इसका मूल कारण कोई और नहीं स्वयं में मुख्य पीठों पर बैठे शंकराचार्य ही हैं।

यह बात अखिल भारतीय दण्डी सन्यासी प्रबंधन समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम एवं राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी ब्रह्माश्रम ने संयुक्त रूप से कही। उन्होंने कहा कि यदि इन महापुरुषों के अंदर पद, मान एवं धन सम्पत्ति की महत्वाकांक्षा न बढ़ती तो सभी पीठें निर्विवादित ही रहती और न ही कोई फर्जी या स्वयं भू-शंकराचार्य बन पाते। इसका दोष न ही विद्वत समाज का है और न ही अखाड़ा परिषद् का। जब हम अपनी गलतियां समाज के सामने ला देते हैं तो सभी को बोलने का अवसर प्राप्त हो जाता है।

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उन्होंने आगे कहा कि जब हम चारों गुणों को देखते हैं तब पता चलता है कि सतयुग में चार अक्षर का राक्षस हिरणाक्ष, त्रेता युग में तीन अक्षर का राक्षस रावण, द्वापर में दो अक्षर का राक्षस कंस हुआ और कलियुग में एक अक्षर का राक्षस ‘मैं’ हुआ। उन्होंने कहा कि जब मेरी दृष्टि में स्वयं ही अपने को सब प्रकार से योग्य एवं गरिमा से युक्त कोई मानने लगता है, उसी समय ‘मैं’ रूपी राक्षस का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। दोनों पदाधिकारियों ने अपील की है कि सभी महापुरुष एक आम राय समाज में (दण्डी सन्यासी प्रबंधन समिति के तत्वावधान) बनायें और सम्पूर्ण सनातन धर्मावलम्बियों को शुभ संदेश देकर सर्वोच्च पद की गरिमा बनायें।

अंत में उन्होंने कहा कि जिन महापुरुषों द्वारा सनातन धर्म के समस्त विवादों का निराकरण किया जाना चाहिए, वह स्वतः ही विवादित होकर न्यायालय से आशा लगाकर बैठे हैं। इसलिए न्यायालय छोड़कर समाज के न्यायालय में रहकर आम राय बनाई जानी चाहिए।

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