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कर्नाटक के नतीजों का लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर होगा असर

बेंगलुरु (ईएमएस)। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए संपन्न मतदान और उसके साथ ही शुरू हुआ आकलन मंगलवार को कितना सही साबित होता है, इसका इंतजार तो हर किसी को है। लेकिन यह तय है कि कर्नाटक के नतीजों का असर और संदेश बड़ा होगा। कांग्रेस और भाजपा जहां सीधे इस असर के जद में होगी, वहीं अन्य छोटे बड़े दलों की निर्णय प्रक्रिया यहीं से मूर्त रूप लेगी। अगर त्रिशंकु की स्थिति बनती है तो 2014 के बाद यह पहला बड़ा राज्य होगा, जहां एक बार फिर से जनता यह संदेश देगी कि वह किसी भी मापदंड पर किसी एक पार्टी से न तो खुश है और न ही उसके हाथ कमान देना चाहती है। सही मायनों में एक बार फिर से गठबंधन की राजनीति और मजबूत होती दिखेगी। एक्जिट पोल ने जो संकेत दिया है, उसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए खुश होने और छाती पीटने का पूरा कारण है।

दरअसल यह लड़ाई तय करेगी कि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे से शुरू हुआ भाजपा का विजय अभियान क्या रुकेगा? अगर कांग्रेस इसे रोकने में समर्थ रहती है तो यह न सिर्फ भाजपा से जीत होगी, बल्कि विपक्ष में खड़े उन दलों के सामने भी कांग्रेस को सिर उठाने का भरोसा देगी, जो अब तक कांग्रेस को अलग रखकर भाजपा विरोधी मोर्चा का नेतृत्व करने की मंशा जता रहे हैं। ममता बनर्जी, शरद पवार जैसे कुछ दलों की ओर से ऐसी ही कोशिश हो रही है। कुछ महीने पहले ही औपचारिक रूप से कांग्रेस की कमान संभालने वाले राहुल गांधी के लिए भी यह अवसर होगा कि वह पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को शांत करा सकें। हार का अर्थ कांग्रेस को बखूबी पता है।

वहीं कर्नाटक की जीत भाजपा की आगे की राह आसान या कठिन करेगी। अगले पांच महीनों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस का ही मुकाबला है। जाहिर है कि कर्नाटक की जीत हार का असर यहां दिखेगा। हालांकि ये तीनों राज्य इस मायने में कर्नाटक से अलग हैं कि वहां जदएस जैसा कोई तीसरा मजबूत दल नहीं है। अगर गठबंधन की जरूरत हुई तो उसका असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर दिखेगा। कुल मिलाकर माना जा सकता है कि नतीजा कुछ भी आए, कर्नाटक ऐसे वक्त बड़ा राजनीतिक संदेश देगा, जब हर गली नुक्कड़ पर 2019 को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।

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